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काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू)
– फोटो : अमर उजाला
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काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के चिकित्सकों ने कालमेघ के इस्तेमाल से फैटी लीवर रोग को दूर करने में सफलता हासिल की है। संस्थान के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और आयुर्वेद संकाय के द्रव्य गुण विभाग के सहयोग से कालमेघ का क्लीनिकल ट्रायल सफलता पूर्वक हो गया है। भारत सरकार की पहल पर बीएचयू ने गैर अल्कोहल फैटी लीवर रोग (एनएएफएलडी) की चिकित्सा के क्लीनिकल ट्रायल को शुरू किया था। इससे इलाज के खर्च में कमी आई और दुष्प्रभाव भी नहीं मिला। इससे चिकित्सक उत्साहित हैं।
आईएमएस बीएचयू के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार के निर्देशन में चार चिकित्सकों की टीम ने जनवरी 2022 में 94 मरीजों पर क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया। भारत सरकार ने एनएएफएलडी को 2021 में राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल किया था। इसके पीछे हालिया के अध्ययनों में मिला था कि देश में एनएएफएलडी के केस में 24 से 32 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो रही है। चिकित्सकों ने परीक्षण के दौरान 47 कालमेघ और मानक आहार व व्यायाम की सलाह दी। वहीं दूसरे बाकी मरीजों को प्लेसबो दवा के साथ मानक आहार और व्यायाम कराया गया।
तीन महीने तक चले परीक्षण के दौरान एक महीने में ही कालमेघ खाने वाले मरीज के यूएसजी और फाइब्रोस्कैन स्कोर में भी महत्वपूर्ण बदलाव आया। उनकी यकृत की विकृति ठीक होने लगी और गैर अल्कोहल फैटी लीवर रोग के मामले में कालमेघ के उपचार का सकारात्मक प्रभाव भी पता चला। इसका कोई बड़ा दुष्प्रभाव भी नहीं था। टीम में डॉ. डी.पी. यादव, डॉ. बिनय सेन और जेआर डॉ. संकेत नांदेकर शामिल थे। डॉ. सुनील कुमार ने बताया कि इस अध्ययन का उद्देश्य एनएएफएलडी के उपचार की लागत की गणना करना भी था। कालमेघ के मामले में एक दिन के इलाज का खर्च महज 2.04 रुपये था, जबकि मानक इलाज का खर्च 38.53 रुपये था।
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