पहले जानिए चुनाव में क्या हुआ?
आजमगढ़ : यहां उपचुनाव में भाजपा ने मशहूर भोजपुरी गायक दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ पर एक बार फिर भरोसा जताया। 2019 में भी निरहुआ इस सीट से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए थे। तब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उन्हें हराया था। इस बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अखिलेश ने आजमगढ़ की लोकसभा सीट छोड़ दी। उपचुनाव में उन्होंने अपने भाई धर्मेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया। हालांकि, धर्मेंद्र अखिलेश की जीत बरकरार नहीं रख पाए और चुनाव हार गए।
रामपुर : यहां उपचुनाव में भाजपा ने घनश्याम लोधी को प्रत्याशी बनाया। घनश्याम एक समय सपा के दिग्गज नेता आजम खां के करीबी थे। वह सपा से एमएलसी भी रह चुके हैं। 2022 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लोधी ने सपा का दामन छोड़कर भाजपा जॉइन कर ली थी। तब वह पार्टी से टिकट पाने की कोशिश में लगे थे, लेकिन नहीं मिल पाया।
आजम खां के लोकसभा सीट छोड़ने पर उपचुनाव का एलान हुआ तो भाजपा ने घनश्याम लोधी को उम्मीदवार बना दिया। दूसरी तरफ सपा ने आजम खां के करीबी आसिम रजा को टिकट दिया। जेल से बाहर आने के बाद खुद आजम खां ने ही आसिम के नाम का एलान किया था, लेकिन घनश्याम लोधी ने 42 हजार मतों से जीत हासिल की।
आगे पढ़िए भाजपा की जीत और सपा की हार के कारण…
1. जातीय समीकरण सफल : आजमगढ़ लोकसभा सीट के तहत मेंहनगर, आजमगढ़ सदर, मुबारकपुर, सगड़ी और गोपालपुर विधानसभा सीटें आती हैं। यहां यादव और मुस्लिम वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है। दलित और कुर्मी वोटर्स भी निर्णायक भूमिका में हैं। आमतौर पर यादव वोटर्स सपा के साथ जाते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी स्थानीय स्तर पर निरहुआ जनता के बीच रहकर काम कर रहे थे। इसका फायदा उन्हें मिला और सपा के कोर वोटर्स भी भाजपा में शिफ्ट हो गए। वहीं, मुस्लिम वोट शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली और सपा के धर्मेंद्र यादव में बंट गए।
रामपुर में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। इसके बाद लोधी, सैनी और दलित मतदाताओं की संख्या भी काफी है। कहा जाता है कि घनश्याम लोधी इन जातियों पर अच्छी पकड़ रखते हैं। इसके अलावा अन्य ओबीसी और सामान्य वर्ग ने भी भाजपा का साथ दिया। चूंकि इस बार बसपा और कांग्रेस ने भी चुनाव नहीं लड़ा, इसलिए हिंदुओं का वोट भी एकजुट हो गया और लोगों ने भाजपा को समर्थन दे दिया। वहीं, कांग्रेस नेता और 2019 लोकसभा में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे नवाब काजिम अली खान ने भी भाजपा के समर्थन का एलान किया था। ऐसे में उनके समर्थक भी भाजपा के लिए प्रचार कर रहे थे।
2. अखिलेश-आजम की लड़ाई का असर : आजम खां और अखिलेश यादव के बीच मतभेद की खबरें खूब सामने आईं। इसके चलते दोनों के समर्थक भी कई बार खुलकर एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए दिखे। विधानसभा चुनाव के बाद आजम खां के समर्थकों ने आरोप लगाया कि यादव वोटर्स ने सपा को वोट ही नहीं दिया। वहीं, बुलडोजर व अन्य मामलों में मुस्लिमों का साथ न देने का भी आरोप सपा पर लगा। यूपी की राजनीति पर अच्छी पकड़ रखने वाले प्रो. अजय सिंह कहते हैं कि इसके चलते मुस्लिमों का सपा से मोह भंग हुआ। आजमगढ़ में मुस्लिमों ने बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली पर ज्यादा भरोसा जताया। इसके चलते मुस्लिम वोट बंट गए। वहीं, निरहुआ पर यादव के साथ-साथ दलित और कुर्मी वोटर्स ने भी विश्वास जताया।