Cheetah: राजस्थान के भरतपुर में एक ऐसा परिवार भी, जो पालतू जानवर की तरह पालता था चीतों को

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर नामीबिया से लाए गए चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया है। तब से ही देशभर में चीते चर्चा का विषय बने हुए हैं। बात करें राजस्थान के भरतपुर की तो यहां एक ऐसा परिवार भी है, जो आजादी से पहले चीतों को पालतू जानवर की तरह गले में पट्टा बांध कर पाला करता था।

भरतपुर शहर के मुख्य बाजार में गंगा मंदिर के पास चीते पालने वाला परिवार रहता है। उस गली का नाम भी सरकारी रिकॉर्ड में चीते वाली गली के नाम से दर्ज है। भरतपुर में आजादी से पहले इस परिवार में चीतों को पालतू जानवरों की तरह पाला जाता था। वर्ष 1936 से 1945 तक भरतपुर राजघराने के निवास मोती महल के गेट पर भी हमेशा चीता बंधा रहता था। 

चीते वाली गली का लगा बोर्ड 

शहर के चौबुर्जा बाजार स्थित चीते वाली गली का जब जायजा लिया गया तो नजर आया कि वहां रहने वाले परिवार के घर के बाहर नेमप्लेट्स पर नाम के बाद चीते वाला प्रमुखता से लिखा हुआ था। साथ ही गली के प्रवेश द्वार पर भी चीते वाली गली का बोर्ड लगा रखा था। 

इस परिवार के पास रियासत काल के प्राचीन फोटोग्राफ भी हैं, जिनमें उनके पूर्वज चीतों के साथ नजर आ रहे हैं। चीते वाली गली में रहने वाले सुल्तान खान ने बताया कि उनके पिताजी डॉक्टर गुलाम हुसैन दक्ष शिकारी माने जाते थे। भरतपुर के महाराजा कृष्ण सिंह जब भी शिकार खेलने जाते थे, उनके पिता को अवश्य साथ में लेकर जाते थे। 

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सुल्तान खान ने बताया कि उनके पिता जब बाजार में निकलते थे तो हमेशा चीता उनके साथ रहता था। उनका कहना था कि घरों में चीते इस तरह घूमा करते थे जैसे आजकल कुत्ते और बिल्ली घरों में पाले जाते हैं। उन्होंने बताया कि दशहरा के मौके पर निकलने वाली महाराजा की सवारी में भी उनके पिता चीता लेकर निकलते थे।

विस्तार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर नामीबिया से लाए गए चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया है। तब से ही देशभर में चीते चर्चा का विषय बने हुए हैं। बात करें राजस्थान के भरतपुर की तो यहां एक ऐसा परिवार भी है, जो आजादी से पहले चीतों को पालतू जानवर की तरह गले में पट्टा बांध कर पाला करता था।

भरतपुर शहर के मुख्य बाजार में गंगा मंदिर के पास चीते पालने वाला परिवार रहता है। उस गली का नाम भी सरकारी रिकॉर्ड में चीते वाली गली के नाम से दर्ज है। भरतपुर में आजादी से पहले इस परिवार में चीतों को पालतू जानवरों की तरह पाला जाता था। वर्ष 1936 से 1945 तक भरतपुर राजघराने के निवास मोती महल के गेट पर भी हमेशा चीता बंधा रहता था। 

चीते वाली गली का लगा बोर्ड 

शहर के चौबुर्जा बाजार स्थित चीते वाली गली का जब जायजा लिया गया तो नजर आया कि वहां रहने वाले परिवार के घर के बाहर नेमप्लेट्स पर नाम के बाद चीते वाला प्रमुखता से लिखा हुआ था। साथ ही गली के प्रवेश द्वार पर भी चीते वाली गली का बोर्ड लगा रखा था। 

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