‘अलौकिक और आधुनिक अयोध्या’ की थीम पर पौराणिकता एवं नवीनता के संगम को साकार करने के लिए केंद्र व प्रदेश की भाजपा सरकार के प्रयासों का दर्शन कराते छठे दीपोत्सव के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भविष्य के एजेंडे को साफ कर दिया। उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर पूजन-अर्चन तथा वहां बन रहे भव्य राममंदिर के निर्माण का गहराई से निरीक्षण कर यह संदेश देने की कोशिश की कि वे न तो भूले हैं और न कभी भूलेंगे कि उनको मिल रही सफलता एवं समर्थन में भगवान राम से जुड़े करोड़ों लोगों की जनभावना का बड़ा योगदान है। इसलिए सनातन संस्कृति की आस्था के स्थलों एवं आध्यात्मिक नगरियों का दिव्यता एवं भव्यता से पुनर्निर्माण का कार्य तेजी से आगे बढ़ता रहेगा। चाहे कोई कुछ भी कहे।
मोदी ने कोरोना काल की दो वर्ष की विभीषिका के बाद हुए इस समारोह के जरिए देश व प्रदेशों की पहचान एवं जनसरोकारों के कामों में आए बदलाव को समझाने की कोशिश की। विरासत एवं आस्था के स्थलों की दुर्दशा के जिक्र के साथ गैर भाजपा दलों को कठघरे में खड़ा करते हुए अयोध्या के दीपोत्सव एवं भगवान राम के सहारे सियासत में हिंदुत्व के समीकरणों को दुरुस्त करने का भी प्रयास किया।
करीब दस माह पहले दिसंबर 2021 में वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण से विरासत के स्थलों की अनदेखी के लिए विपक्ष पर शुरू मोदी का हमला अयोध्या की धरती पर भी जारी रहा। उन्होंने यह कहते हुए विपक्ष को कठघरे में खड़ा किया कि एक समय वह भी था जब राम और अपनी संस्कृति एवं सभ्यता पर बात करने से लोग बचते थे। राम के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाए जाते थे। अतीत में अयोध्या के रामघाट की दुर्दशा जैसे प्रतीकों के सहारे लोगों को यह समझाया कि उन्होंने सनातन संस्कृति के प्रतीक स्थलों को सम्मान व सरोकारों के विस्तार पर काम करके हिंदुओं में भर दी गई हीन भावना को तोड़ा है। एक तरह से मोदी ने अयोध्या की धरती से देश व दुनिया में रह रहे हिंदुओं को यह संदेश देने की कोशिश की कि सनातन सांस्कृतिक चेतना के पुनर्जागरण का कार्य अभी काफी आगे जाना है। थोड़ी सी चूक देश की तस्वीर बदलने वाले इन कार्यों पर रुकावट ही नहीं लगाएगी, बल्कि देश की पहचान एवं सनातन संस्कृति को मानने वालों के अस्तित्व को भी खतरे में डालेगी।
आस्था से आर्थिक मुद्दों तक पर संदेश श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण स्थल पर पीएम मोदी का सीएम योगी के साथ एक-एक कार्य की बारीकी से पूछताछ, कुछ सलाह देना और सुविधाओं के बारे में समझना। फिर एक आस्थावान हिंदू की तरह गर्भगृह वाले निर्माण स्थल पर नंगे पैर जाना एवं वहां लगाए गए स्तंभ की पूजा करना, मंदिर के निर्माण में लगे श्रमिकों से संवाद करना, फिर भगवान राम के राज्याभिषेक में पूरे भक्तिभाव से शामिल होना, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं राममंदिर आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के संतों में जीवित सबसे वरिष्ठ महंत नृत्यगोपाल दास का चरणस्पर्श एवं सरयू आरती तथा दीपोत्सव में शामिल होने की तस्वीरें बिन बोले देश के लोगों को भाजपा सरकार की सनातन संस्कृति के सरोकारों पर समर्पण तथा सम्मान का संदेश देने वाली रही। इसके साथ प्रधानमंत्री ने अयोध्या के विकास में योगी सरकार के कामों का उल्लेख कर यह संदेश देने का भी प्रयास किया कि आध्यात्मिक स्थलों को उनकी गरिमा लौटाने के काम सिर्फ आस्था को ही मजबूत नहीं करेंगे, बल्कि धार्मिक पर्यटन के नए अवसर मुहैया कराकर लोगों को आर्थिक रूप से भी स्वावलंबी बनाने में सहायक होंगे।
सीधे तौर पर न सही, लेकिन सांकेतिक रूप से मोदी ने दीपोत्सव से रामराज्य की कसौटी पर अपनी तथा योगी सरकार को कसते हुए लोगों को यह भी समझाने का प्रयास किया कि उनका प्रयास राम के आदर्शों की कसौटी का राज बनाना है। जहां न कोई भूखा हो और न बीमार। न कोई विपन्न हो न किसी को जरूरत के सामान का अभाव हो। तभी तो सीएम योगी आदित्यनाथ ने जहां ‘दैहिक, दैविक भौतिक तापा, राम राज नहिं काहुहि ब्यापा…’ से प्रधानमंत्री के जनकल्याणकारी कार्यों का उल्लेख किया तो वहीं प्रधानमंत्री ने ‘सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ को राम राज का आधार बताते हुए इन्हीं कसौटियों पर काम करने का संकल्प जताकर राम के सरोकारों से खुद को जोड़ा। साथ ही उन लोगों को राम की धरती से ही जवाब देने की कोशिश जो उन पर या भाजपा की अन्य सरकारों पर सांप्रदायिक या मुस्लिम विरोधी अथवा दलित, शोषित एवं वंचित लोगों की उपेक्षा का आरोप लगाते हैं। उन्होंने यह कहने में भी कोताही नहीं बरती कि राम से जितना सीख सकते हैं उतना सभी को सीखना चाहिए। राम न तो किसी को पीछे छोड़ते हैं और न किसी को हीन समझते हैं।
सियासी समीकरण भी साधे अयोध्या देश में सियासत की धारा में बदलाव की धुरी रही है। यह बदलाव जिस अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर की मुक्ति आंदोलन एवं अभियान के सहारे हुआ है, 90 के दशक में इस अभियान के प्रमुख चेहरे लालकृष्ण आडवाणी के सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा की बागडोर मोदी ने ही संभाली थी। स्वाभाविक है कि उन मोदी की नजरों से राम के सरोकारों से सियासत में मिले विस्तार एवं मजबूती के समीकरण कैसे ओझल होते। इसलिए उन्होंने सरोकारों के साथ सियासी समीकरणों पर भी नजर रखने में चूक नहीं की। उन्होंने संकेतों से ही सही, लेकिन सियासत में भाजपा के सरोकारों को विस्तार देने की कोशिश की। उन्होंने यह उल्लेख करते हुए कि राम वन गए तो सबको साथ लिया।
शबरी के आश्रम गए और प्रेम को सम्मान देते हुए जूठे बेर खाए। सबको साथ लेने तथा सबके प्रयास की ही ताकत थी जो वह स्वर्णमयी लंका देखकर भी हीन भावना से ग्रस्त नहीं हुए बल्कि वनवासियों, गिरिवासियों, रीछ एवं वानरों के साथ रावण को पराजित किया। लंका विजय के बाद जब राज गद्दी संभाली तो भी इन सबको सम्मान दिया। राम के लिए सब अपने हैं कहते हुए एक तरह से मोदी ने राम को आदर्श मानने के कारण उनके लिए दलित, शोषित, वंचित, पिछड़े भी उतने ही सम्मानीय हैं जितने दूसरे।
राजनीतिक शास्त्री प्रो. एसके द्विवेदी कहते हैं कि प्रधानमंत्री की ये बातें विभिन्न प्रांतों, भाषा-भाषी एवं जातियों खासतौर से दलित, शोषित, वंचित एवं पिछड़ी जाति के लोगों को यह विश्वास दिलाने कोशिश है कि हिंदुत्व के सरोकारों को साकार करने के कार्य में इनका भी कल्याण जुड़ा हुआ है। हिंदुत्व के दर्शन पर काम करने वाली सरकारें ही उनके सरोकारों का भी सही मायने में सम्मान कर सकती हैं। इसलिए इन्हें किसी जाति, पंथ जैसे समीकरणों में न उलझकर भाजपा को मजबूत करना चाहिए।
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‘अलौकिक और आधुनिक अयोध्या’ की थीम पर पौराणिकता एवं नवीनता के संगम को साकार करने के लिए केंद्र व प्रदेश की भाजपा सरकार के प्रयासों का दर्शन कराते छठे दीपोत्सव के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भविष्य के एजेंडे को साफ कर दिया। उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर पूजन-अर्चन तथा वहां बन रहे भव्य राममंदिर के निर्माण का गहराई से निरीक्षण कर यह संदेश देने की कोशिश की कि वे न तो भूले हैं और न कभी भूलेंगे कि उनको मिल रही सफलता एवं समर्थन में भगवान राम से जुड़े करोड़ों लोगों की जनभावना का बड़ा योगदान है। इसलिए सनातन संस्कृति की आस्था के स्थलों एवं आध्यात्मिक नगरियों का दिव्यता एवं भव्यता से पुनर्निर्माण का कार्य तेजी से आगे बढ़ता रहेगा। चाहे कोई कुछ भी कहे।
मोदी ने कोरोना काल की दो वर्ष की विभीषिका के बाद हुए इस समारोह के जरिए देश व प्रदेशों की पहचान एवं जनसरोकारों के कामों में आए बदलाव को समझाने की कोशिश की। विरासत एवं आस्था के स्थलों की दुर्दशा के जिक्र के साथ गैर भाजपा दलों को कठघरे में खड़ा करते हुए अयोध्या के दीपोत्सव एवं भगवान राम के सहारे सियासत में हिंदुत्व के समीकरणों को दुरुस्त करने का भी प्रयास किया।
करीब दस माह पहले दिसंबर 2021 में वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण से विरासत के स्थलों की अनदेखी के लिए विपक्ष पर शुरू मोदी का हमला अयोध्या की धरती पर भी जारी रहा। उन्होंने यह कहते हुए विपक्ष को कठघरे में खड़ा किया कि एक समय वह भी था जब राम और अपनी संस्कृति एवं सभ्यता पर बात करने से लोग बचते थे। राम के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाए जाते थे। अतीत में अयोध्या के रामघाट की दुर्दशा जैसे प्रतीकों के सहारे लोगों को यह समझाया कि उन्होंने सनातन संस्कृति के प्रतीक स्थलों को सम्मान व सरोकारों के विस्तार पर काम करके हिंदुओं में भर दी गई हीन भावना को तोड़ा है। एक तरह से मोदी ने अयोध्या की धरती से देश व दुनिया में रह रहे हिंदुओं को यह संदेश देने की कोशिश की कि सनातन सांस्कृतिक चेतना के पुनर्जागरण का कार्य अभी काफी आगे जाना है। थोड़ी सी चूक देश की तस्वीर बदलने वाले इन कार्यों पर रुकावट ही नहीं लगाएगी, बल्कि देश की पहचान एवं सनातन संस्कृति को मानने वालों के अस्तित्व को भी खतरे में डालेगी।
आस्था से आर्थिक मुद्दों तक पर संदेश
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण स्थल पर पीएम मोदी का सीएम योगी के साथ एक-एक कार्य की बारीकी से पूछताछ, कुछ सलाह देना और सुविधाओं के बारे में समझना। फिर एक आस्थावान हिंदू की तरह गर्भगृह वाले निर्माण स्थल पर नंगे पैर जाना एवं वहां लगाए गए स्तंभ की पूजा करना, मंदिर के निर्माण में लगे श्रमिकों से संवाद करना, फिर भगवान राम के राज्याभिषेक में पूरे भक्तिभाव से शामिल होना, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं राममंदिर आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के संतों में जीवित सबसे वरिष्ठ महंत नृत्यगोपाल दास का चरणस्पर्श एवं सरयू आरती तथा दीपोत्सव में शामिल होने की तस्वीरें बिन बोले देश के लोगों को भाजपा सरकार की सनातन संस्कृति के सरोकारों पर समर्पण तथा सम्मान का संदेश देने वाली रही। इसके साथ प्रधानमंत्री ने अयोध्या के विकास में योगी सरकार के कामों का उल्लेख कर यह संदेश देने का भी प्रयास किया कि आध्यात्मिक स्थलों को उनकी गरिमा लौटाने के काम सिर्फ आस्था को ही मजबूत नहीं करेंगे, बल्कि धार्मिक पर्यटन के नए अवसर मुहैया कराकर लोगों को आर्थिक रूप से भी स्वावलंबी बनाने में सहायक होंगे।