गोरखपुर जिला अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन खराब होने का खामियाजा मारपीट में गंभीर घायल होने वालों को भुगतना पड़ रहा है। वहीं, इसका फायदा उन लोगों को मिल रहा है जो मारपीट में जानलेवा हमले के आरोपी हो सकते हैं और जमानत से वंचित हो सकते हैं। घायल के सिर की सीटी स्कैन नहीं हो पाने की वजह से पुलिस आरोपी पर शांतिभंग की धारा लगाती है और वह जमानत पर छूट जाता है। जबकि पीड़ित मेडिकल रिपोर्ट के लिए अस्पताल का चक्कर काटता रह जाता है। एक तरह से इससे अपराध को भी बढ़ावा मिल रहा है।
बताया जा रहा है कि 10 सितंबर-2022 से (50 दिनों से अधिक) जिला अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन खराब है। इस वजह से आम मरीजों को तो दिक्कत हो ही रही है, पुलिस को भी केस दर्ज करने में परेशानी हो रही है। वहीं, मारपीट के पीड़ितों के सिर का सीटी स्कैन नहीं होने से उनका केस कमजोर पड़ जा रहा है, जिसका लाभ आरोपी उठा रहे हैं। इस तरह स्वास्थ्य विभाग न केवल मरीजों का दर्द बढ़ा रहा है बल्कि मारपीट के पीड़ितों के घावों पर भी मरहम नहीं लगा पा रहा है। इसका फायदा उन आरोपियों को मिल रहा है जो गंभीर केस में जेल में हो सकते हैं।
दरअसल, मेडिकोलीगल के मामलों में सरकारी जांच रिपोर्ट ही मान्य होती है। इस वजह से मंडल के सभी जिले गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर और महराजगंज से मारपीट के केस में जांच कराने के लिए लोग गोरखपुर जिला अस्पताल आते हैं। लेकिन सीटी स्कैन मशीन खराब होने की वजह से किसी की भी जांच नहीं हो पा रही है। दूसरी ओर, पुलिस मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेती है और दर्ज केस में मामूली धारा में चालान कर देती है। इससे आरोपी तुरंत जमानत पर बाहर आ जाता है और दोबारा से पीड़ित को परेशान करता है। इस तरह जिला अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन खराब होने से कानून के हाथ भी छोटे साबित हो रहे हैं।
मारपीट के मामलों में, खासकर सिर में चोट लगने पर, पुलिस आमतौर पर मारपीट, धमकी (धारा 147, 323,504,506) का केस दर्ज कर लेती है। इसके बाद मेडिकल कराया जाता है। सीटी स्कैन से सिर पर घाव साबित होता है। फिर पुलिस मानव जीवन को संकट में डालने की धारा 308 बढ़ाती है। ऐसा करने पर आरोपी को जमानत नहीं मिल पाती है। जमानत की प्रक्रिया बढ़ जाती है। लेकिन, 308 नहीं लगने पर पुलिस 151 (शांतिभंग) में चालान कर देती है। इसमें मजिस्ट्रेट के सामने पेश होकर एक निश्चित राशि का अनुबंध देने पर तत्काल जमानत मिल जाती है।
मेडिकल के डॉक्टरों से हुई मारपीट तो बदल गया नियम बीआरडी मेडिकल कॉलेज में सीटी स्कैन की सुविधा है, लेकिन पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीटी) मॉडल होने की वजह से मेडिको लीगल के मामले करने से पल्ला झाड़ दिया जाता है। न तो जिला अस्पताल रेफर करता है और न ही जैसे तैसे रेफर होने के बाद मेडिकल कॉलेज सीटी स्कैन करने के लिए तैयार होता है। जब बात अपनों की आती है तो सारा नियम कानून बदल जाता है। पिछले दिनों डॉक्टरों से मारपीट होने के मामले में मेडिकल कॉलेज पीपीपी मॉडल भूलकर मेडिकल लीगल करने से पीछे नहीं हटा, लेकिन आम आदमी के लिए इस सुविधा पर ताला लगा दिया गया है।
कोर्ट में नहीं हो पाएगा साबित सिविल कोर्ट पूर्व बार एसोसिएशन कृष्ण बिहारी दुबे ने कहा कि अगर पुलिस धारा-307 (हत्या की कोशिश) में चार्जशीट करती है। मजबूत साक्ष्यों के साथ जांच होगी तो मामला चल सकता है, लेकिन धारा-308 में बिना जांच रिपोर्ट के कोर्ट में चोट साबित कर पाना संभव नहीं होगा। विपक्षी सीधे पुलिस की रिपोर्ट को खारिज कर फर्जी चोट की बात साबित कर लेगा। इस वजह से जांच रिपोर्ट की भूमिका किसी भी केस में सजा के लिए अहम होती है।
डीआईजी जे. रविंद्र गौड़ ने कहा कि पुलिस को निर्देशित किया जाएगा कि विवेचना में विधिक सलाह और साक्ष्यों के आधार पर गंभीर धारा लगाएं, ताकि आरोपी को सजा मिल सके। चाकू से या किसी गंभीर हथियार से हमले के मामले में पुलिस विधिक सलाह लेकर पीड़ित की मदद करेगी।
महराजगंज जिले के परसामलिक थाना क्षेत्र के एक कस्बा निवासी संतोष अग्रहरि से दिवाली के दिन मारपीट हुई थी। आरोप है कि उनके सिर में लोहे के पंच से हमला किया गया। पुलिस ने मारपीट का केस दर्ज कर मेडिकल के लिए भेज दिया। दो बार जिला अस्पताल में सीटी स्कैन कराने आ चुके हैं, लेकिन मशीन खराब होने का हवाला देकर लौटा दिया जाता है। पुलिस गंभीर धारा के लिए मेडिकल रिपोर्ट मांग रही है, तो पीड़ित जिला अस्पताल के चक्कर काट रहा है। उधर, आरोपी शांतिभंग में चालान होने के बाद छूट गए हैं और दोबारा सुलह करने की धमकी दे रहे हैं।
केस-दो खजनी थाना क्षेत्र के उनवल के संग्रामपुर निवासी सुमित्रा देवी 15 सितंबर को मारपीट की घटना में गंभीर रूप से घायल हो गई थीं। डॉक्टरों ने सीटी स्कैन की सलाह दी थी, लेकिन उनका सिटी स्कैन नहीं हो सका है। पुलिस ने मारपीट का केस तो दर्ज कर लिया, लेकिन आज तक गंभीर धारा नहीं लग पाई। सुमित्रा बताती हैं कि पुलिस आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के लिए मेडिकल रिपोर्ट मांगती है। जांच हो नहीं हो रही है। अब तो घाव भी ठीक हो चुके हैं। ऐसे में जांच कराने के बाद क्या रिपोर्ट आएगी, इसे समझा जा सकता है।
फैक्ट फाइल
जिला अस्पताल में निशुल्क
मेडिकल कॉलेज में 800 रुपये
प्राइवेट पैथोलॉजी में 1700 से 3500 रुपये तक
रोजाना मेडिकल लीगल के लौटते हैं 15-16 मामले
आम मरीजों की संख्या भी करीब 10 से 15 होती है
जिला अस्पताल एसआईसी डॉ. राजेंद्र ठाकुर ने कहा कि सीटी स्कैन मशीन खराब है। अयोध्या से इंजीनियर आए थे। दो बार मशीनों को चेक किया, लेकिन ठीक करने में सफलता नहीं मिल सकी। मशीन के कुछ ऐसे पार्ट्स खराब हैं, जो विदेश से आएंगे। इसकी सूचना शासन को दी गई है। जैसे ही पार्ट्स आएंगे, मशीन को सही करा दिया जाएगा।
विस्तार
गोरखपुर जिला अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन खराब होने का खामियाजा मारपीट में गंभीर घायल होने वालों को भुगतना पड़ रहा है। वहीं, इसका फायदा उन लोगों को मिल रहा है जो मारपीट में जानलेवा हमले के आरोपी हो सकते हैं और जमानत से वंचित हो सकते हैं। घायल के सिर की सीटी स्कैन नहीं हो पाने की वजह से पुलिस आरोपी पर शांतिभंग की धारा लगाती है और वह जमानत पर छूट जाता है। जबकि पीड़ित मेडिकल रिपोर्ट के लिए अस्पताल का चक्कर काटता रह जाता है। एक तरह से इससे अपराध को भी बढ़ावा मिल रहा है।
बताया जा रहा है कि 10 सितंबर-2022 से (50 दिनों से अधिक) जिला अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन खराब है। इस वजह से आम मरीजों को तो दिक्कत हो ही रही है, पुलिस को भी केस दर्ज करने में परेशानी हो रही है। वहीं, मारपीट के पीड़ितों के सिर का सीटी स्कैन नहीं होने से उनका केस कमजोर पड़ जा रहा है, जिसका लाभ आरोपी उठा रहे हैं। इस तरह स्वास्थ्य विभाग न केवल मरीजों का दर्द बढ़ा रहा है बल्कि मारपीट के पीड़ितों के घावों पर भी मरहम नहीं लगा पा रहा है। इसका फायदा उन आरोपियों को मिल रहा है जो गंभीर केस में जेल में हो सकते हैं।
दरअसल, मेडिकोलीगल के मामलों में सरकारी जांच रिपोर्ट ही मान्य होती है। इस वजह से मंडल के सभी जिले गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर और महराजगंज से मारपीट के केस में जांच कराने के लिए लोग गोरखपुर जिला अस्पताल आते हैं। लेकिन सीटी स्कैन मशीन खराब होने की वजह से किसी की भी जांच नहीं हो पा रही है। दूसरी ओर, पुलिस मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेती है और दर्ज केस में मामूली धारा में चालान कर देती है। इससे आरोपी तुरंत जमानत पर बाहर आ जाता है और दोबारा से पीड़ित को परेशान करता है। इस तरह जिला अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन खराब होने से कानून के हाथ भी छोटे साबित हो रहे हैं।