काला मोतियाबिंद मरीजों की आंखों की रोशनी छीन रहा है। मोतियाबिंद को नजर अंदाज करने वाले लोग इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में काला मोतियाबिंद से पीड़ित मरीजों की संख्या पिछले एक साल में तेजी से बढ़ी है। पहले जहां हर माह 10 फीसदी मरीज आते थे, वहीं अब यह संख्या बढ़कर 20 से 25 फीसदी हो गई है। इनमें पांच प्रतिशत मरीजों की आंखों की रोशनी चली जा रही है।
जानकारी के मुताबिक, बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हर माह मोतियाबिंद के करीब 200 ऑपरेशन होते हैं। इनमें 25 से 30 मरीज काला मोतियाबिंद से पीड़ित मिल रहे हैं। इनके अलावा 10-12 प्रतिशत मरीजों को दवा देकर इलाज किया जाता है। डॉक्टरों की भाषा में इस बीमारी को ग्लूकोमा भी कहते हैं।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ राम कुमार जायसवाल ने बताया कि काला मोतियाबिंद बेहद खतरनाक बीमारी है। इस बीमारी में मरीजों को कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है। यही वजह है कि इस बीमारी में मरीजों की आंखों की रोशनी चली जाती है।
काला मोतियाबिंद में आंखों की नसों (ऑप्टिक नर्व) पर दबाव पड़ता है, इससे उन्हें काफी नुकसान पहुंचता है। लगातार दबाव पड़ने से नर्व तक ब्लड की सप्लाई नहीं पहुंचती है, इससे नर्व नष्ट हो जाती है। इसी ऑप्टिक नर्व के जरिए सूचनाएं और चित्र दिमाग तक पहुंचता है। यदि ऑप्टिक नर्व और आंखों के अन्य भागों पर पड़ने वाले दबाव को कम न किया जाए, तो आंखों की रोशनी चली जाती है।
एक बार अगर काला मोतियाबिंद से आंखों की रोशनी चली गई, तो दोबारा रोशनी नहीं मिलती है। बताया कि इस बीमारी का शिकार 40 से 45 वर्ष के युवा भी हो रहे हैं। तीन से चार युवा ऐसे मिले हैं, जिनकी आंखों की रोशनी 70 फीसदी से अधिक जा चुकी है। इनकी सर्जरी भी अब नहीं हो सकती है। दवा देकर इलाज किया जा रहा है।
पांच तरह का होता है काला मोतियाबिंद
डॉ राम कुमार जायसवाल ने बताया कि काला मोतियाबिंद पांच तरह का होता है। पहला प्राथमिक या ओपन एंगल ग्लूकोमा, एंगल क्लोजन ग्लूकोमा, लो टेंशन या नार्मल टेंशन ग्लूकोमा, कोनजेनाइटल ग्लूकोमा और सेकेंडरी ग्लूकोमा होता है। बताया कि पूर्वांचल में सबसे अधिक मरीज ओपन एंगल ग्लूकोमा के मिलते हैं। हर माह 25 से 30 मरीज काला मोतियाबिंद के इलाज के लिए आ रहे हैं। इनमें पांच फीसदी मरीजों की आंखों की रोशन भी चली जा रही है।
काला मोतियाबिंद के लक्षण
डॉ. राम कुमार जायसवाल ने बताया कि आमतौर पर काला मोतियाबिंद का कोई विशेष लक्षण नहीं होता है। यही वजह है कि लोगों को इस बीमारी का पता समय से नहीं चल पाता है। इलाज में देरी की वजह से मरीजों की आंखों की रोशनी चली जाती है। आंखों और सिर में तेज दर्द होना। नजर कमजोर होना या धुंधला दिखाई देना। आंखें लाल होना। रोशनी के चारों ओर रंगीन छल्ले दिखाई देना। जी मचलाना और उल्टी होना जैसे लक्षण मिलते हैं।