[ad_1]
पांच साल पहले एक जुलाई 2017 को जीएसटी को लागू किया गया, लेकिन इन पांच वर्षों में टैक्स तो भरपूर मिला, लेकिन इसकी जटिलताएं दूर नहीं हो पाईं। प्रदेश सरकार को वैट के मुकाबले दो गुने से ज्यादा टैक्स इन पांच सालों में मिलने लगा है। भरपूर टैक्स के बाद भी जीएसटी काउंसिल जीएसटी का सरलीकरण नहीं कर सकी है। पांच साल से व्यापारी टैक्स के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू हुए पांच साल हो गए हैं। वैट के मुकाबले व्यापारियों के लिए जीएसटी में मासिक और त्रैमासिक रिटर्न की जटिलताएं बढ़ गई हैं। आगरा में 500 साल पुरानी मुगलिया मार्बल पच्चीकारी का हस्तशिल्प वैट प्रणाली में करमुक्त था, लेकिन जीएसटी में आते ही इस पर 12 फीसदी टैक्स लगा दिया गया। हस्तशिल्प कारोबारी पांच साल से परेशान हैं, लेकिन टैक्स खत्म करना तो छोड़ो कम करने की मांग भी पूरी नहीं हुई।
लेदर फुटवियर को भी नहीं मिली राहत
इसी तरह आगरा लेदर फुटवियर का बड़ा केंद्र हैं। वैट में फुटवियर पर राहत थी, लेकिन जीएसटी में काउंसिल लगातार जीएसटी की दरें बढ़ाती जा रही है। एक दिन पहले ही चंडीगढ़ में हुई काउंसिल की बैठक में फिनिश्ड लेदर पर 5 से बढ़ाकर 12 फीसदी टैक्स कर दिया गया है। व्यापारी इससे परेशान हैं, लेकिन जीएसटी सरकार के लिए खजाना भरने वाली साबित हुई। जीएसटी में व्यापारियों के रजिस्ट्रेशन भी दो गुना से ज्यादा हुए तो टैक्स कलेक्शन भी दो गुना से ज्यादा हो गया।
ऐसे बढ़ा कर संग्रहण
साल |
जीएसटी |
2017-18 |
888.78 करोड़ |
2018-19 |
1481.50 करोड़ |
2019-20 |
1674.88 करोड़ |
2020-21 |
1354.37 करोड़ |
2021-22 |
1798.12 करोड़ |
सरलीकरण से मिलेगी राहत
कर विशेषज्ञ सीए दीपिका मित्तल ने कहा कि पांच साल में कई बदलाव किए, पर टैक्स का सरलीकरण नहीं हो पाया। जीएसटी संबंधी कानूनी विवाद नए और शुरुआती चरण में हैं जो आगे और बढ़ेंगे, इसलिए इन विवादों को अभी खत्म करने की जरूरत है। व्यापारियों को केवल सरलीकरण से राहत मिलेगी।
जटिलताओं का चक्रव्यूह
आगरा व्यापार मंडल के अध्यक्ष टीएन अग्रवाल ने कहा कि पांच साल से काउंसिल ने जीएसटी की जटिलताओं के चक्रव्यूह में घेर रखा है। ट्रिब्यूनल तक का गठन नहीं किया। हर वस्तु को टैक्स के दायरे में ले आए हैं, जबकि वैट में कई उत्पाद करमुक्त थे। लग्जरी चीजों पर जीएसटी बढ़ाना चाहिए, पर रोजमर्रा की चीजों पर बढ़ाया जा रहा है।
जीएसटी में कमी की जरूरत
आगरा शू फैक्टर्स फेडरेशन के अध्यक्ष गागन दास रामानी ने कहा कि फुटवियर पर जीएसटी की दरें वहीं होनी चाहिए, जो कपड़े पर हैं, पर जीएसटी काउंसिल भेदभाव करके फुटवियर कारोबारियों को मुश्किल में डाल रही है। देश की गरीब आबादी के पैर में चप्पल और जूते होने चाहिए, जिन्हें टैक्स के जरिए महंगा किया जा रहा है। जीएसटी में कमी की जरूरत है।
विस्तार
पांच साल पहले एक जुलाई 2017 को जीएसटी को लागू किया गया, लेकिन इन पांच वर्षों में टैक्स तो भरपूर मिला, लेकिन इसकी जटिलताएं दूर नहीं हो पाईं। प्रदेश सरकार को वैट के मुकाबले दो गुने से ज्यादा टैक्स इन पांच सालों में मिलने लगा है। भरपूर टैक्स के बाद भी जीएसटी काउंसिल जीएसटी का सरलीकरण नहीं कर सकी है। पांच साल से व्यापारी टैक्स के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू हुए पांच साल हो गए हैं। वैट के मुकाबले व्यापारियों के लिए जीएसटी में मासिक और त्रैमासिक रिटर्न की जटिलताएं बढ़ गई हैं। आगरा में 500 साल पुरानी मुगलिया मार्बल पच्चीकारी का हस्तशिल्प वैट प्रणाली में करमुक्त था, लेकिन जीएसटी में आते ही इस पर 12 फीसदी टैक्स लगा दिया गया। हस्तशिल्प कारोबारी पांच साल से परेशान हैं, लेकिन टैक्स खत्म करना तो छोड़ो कम करने की मांग भी पूरी नहीं हुई।
लेदर फुटवियर को भी नहीं मिली राहत
इसी तरह आगरा लेदर फुटवियर का बड़ा केंद्र हैं। वैट में फुटवियर पर राहत थी, लेकिन जीएसटी में काउंसिल लगातार जीएसटी की दरें बढ़ाती जा रही है। एक दिन पहले ही चंडीगढ़ में हुई काउंसिल की बैठक में फिनिश्ड लेदर पर 5 से बढ़ाकर 12 फीसदी टैक्स कर दिया गया है। व्यापारी इससे परेशान हैं, लेकिन जीएसटी सरकार के लिए खजाना भरने वाली साबित हुई। जीएसटी में व्यापारियों के रजिस्ट्रेशन भी दो गुना से ज्यादा हुए तो टैक्स कलेक्शन भी दो गुना से ज्यादा हो गया।
[ad_2]
Source link