Hastinapur: साढ़े 8 साल बाद डाॅ. सोहनलाल देवोत ने तोड़ा मौन, अधिवेशन के अंतिम दिन देश भर से पहुंचे विद्वान

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डॉ. देवोत को सम्मानित करती जंबूद्वीप की प्रबंधन टीम

डॉ. देवोत को सम्मानित करती जंबूद्वीप की प्रबंधन टीम
– फोटो : अमर उजाला

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हस्तिनापुर के जम्बूद्वीप में स्थित आचार्य श्री शांतिसागर प्रवचन हाल में चल रहे विद्वत् सम्मेलन के चौथे दिन देश के विभिन्न हिस्सों से आए विद्वानों के द्वारा आलेख वाचन की प्रक्रिया सम्पन्न की गई। जिसमें मुख्य विषय अयोध्या तीर्थ रहा वर्तमान चैबीसी के पांच तीर्थंकरों ने शाश्वत तीर्थ अयोध्या में जन्म लिया एवं उनके जन्मस्थान के विकास को लेकर इस संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। 

अधिवेशन के चौथे और अंतिम दिन देश के विभिन्न हिस्सों से आए विद्वानों ने जैन धर्म के तीर्थंकर उसे पावन भूमि अयोध्या देश के विकास के संबंध में चर्चा की। जंबूद्वीप के प्रबंधन मंत्री और ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री विजय कुमार जैन ने बताया कि गुरुवार को 125 विद्वान संगोष्ठी में शामिल हुए एवं जैन मंत्र एक अध्ययन को लेकर भी संगोष्ठी में कुछ विद्वानों ने मंत्र साधना के ऊपर भी अपने आलेखों का वाचन किया एवं लोहारिया से पधारे डाॅ. सोहनलाल देवोत द्वारा ‘मंत्रसाधना एक अध्ययन’ नामक पुस्तक लिखी गई। जिसमें उन्होंने जैन मंत्र साधना का विस्तृत विवेचन किया एवं उस पुस्तक के लेखन में मंत्र साधना के द्वारा हर कार्य संभव है एवं प्रत्येक कार्य के दो पहलु हैं उपयोग एवं दुरुपयोग इस विषय पर डाॅ. सोहनलाल देवोत ने प्रकाश डाला। इस दौरान उन्होंने साढ़े आठ साल बाद मौन तोड़कर वक्तव्य प्रस्तुत किया।

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मंत्र साधना गुरु के सान्निध्य में होनी चाहिए: माता ज्ञानमती
डाॅ. सोहनलाल देवोत के इस पुस्तक के लेखन कार्य के लिए उन्हें तीर्थंकर ऋषभ देव जैन विद्वत् महासंघ के द्वारा उन्हें प्रशस्ति देकर सम्मान किया गया। जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माता ने इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मंत्र साधना गुरु के सान्निध्य में ही होनी चाहिए। क्योंकि लोग इस प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हैं जिसके कारणवश वह भटक जाते हैं, पागल हो जाते हैं एवं स्वयं के जीवन को समाप्त कर लेते हैं। यंत्र साधना से व्यक्ति उच्च शिखर पर पहुंच सकता है लेकिन बिना किसी लालच के और पूर्ण समर्पण के साथ की गई साधना उच्च शिखर पर ले जाती है।

इसी श्रृंखला में प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती माता ने आए हुए सभी विद्वानों को कहा कि वे देश के विभिन्न अंचलों में धर्म के प्रचार-प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाएं, जिससे समाज में सदाचार एवं धार्मिक वातावरण बना रहे। पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी ने आए हुए सभी विद्वानों का सम्मान अंग वस्त्र एवं पूजन के वस्त्र देकर किया। महिलाओं को सम्मानस्वरूप साड़िया भेंट की गई। पूज्य गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माता ने सभी विद्वानों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। संस्थान के महामंत्री अनिल कुमार जैन ने सभी के लिए अपनी शुभकामना प्रेषित की। 

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साढे आठ साल में मौन तोड़कर कर ज्ञानमती माता के समक्ष प्रस्तुत किया वक्तव्य
अधिवेशन के अंतिम दिन डाॅ. देवोत ने साढ़े आठ वर्ष बाद अपना मौन तोड़कर ज्ञानमती माता के सान्निध्य में अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया और अपनी मंत्र साधना और पुस्तक लेखन के विषय में प्रकाश डाला। इस अवसर पर उनके परिवार के सैकड़ों लोग मौजूद रहे।

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विद्वानों ने अपने-अपने आलेखों का किया वाचन
सायंकालीन सत्र शेष सभी विद्वानों ने अपने-अपने आलेखों का वाचन किया एवं लखनऊ से आई सुनयना जैन, अध्यक्ष अवध प्रान्तीय गणिनी ज्ञानमती भक्त मण्डल लखनऊ ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ के अध्यक्ष ने अपना अध्यक्षीय उद्बोधन इस अवसर पर सभी को प्रदान किया एवं महामंत्री विजय कुमार जैन ने इस अवसर पर सभी का संस्थान परिवार की ओर से धन्यवाद किया किया एवं विधिवत् संगोष्ठी के समापन की घोषणा की।

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हस्तिनापुर के जम्बूद्वीप में स्थित आचार्य श्री शांतिसागर प्रवचन हाल में चल रहे विद्वत् सम्मेलन के चौथे दिन देश के विभिन्न हिस्सों से आए विद्वानों के द्वारा आलेख वाचन की प्रक्रिया सम्पन्न की गई। जिसमें मुख्य विषय अयोध्या तीर्थ रहा वर्तमान चैबीसी के पांच तीर्थंकरों ने शाश्वत तीर्थ अयोध्या में जन्म लिया एवं उनके जन्मस्थान के विकास को लेकर इस संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। 

अधिवेशन के चौथे और अंतिम दिन देश के विभिन्न हिस्सों से आए विद्वानों ने जैन धर्म के तीर्थंकर उसे पावन भूमि अयोध्या देश के विकास के संबंध में चर्चा की। जंबूद्वीप के प्रबंधन मंत्री और ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री विजय कुमार जैन ने बताया कि गुरुवार को 125 विद्वान संगोष्ठी में शामिल हुए एवं जैन मंत्र एक अध्ययन को लेकर भी संगोष्ठी में कुछ विद्वानों ने मंत्र साधना के ऊपर भी अपने आलेखों का वाचन किया एवं लोहारिया से पधारे डाॅ. सोहनलाल देवोत द्वारा ‘मंत्रसाधना एक अध्ययन’ नामक पुस्तक लिखी गई। जिसमें उन्होंने जैन मंत्र साधना का विस्तृत विवेचन किया एवं उस पुस्तक के लेखन में मंत्र साधना के द्वारा हर कार्य संभव है एवं प्रत्येक कार्य के दो पहलु हैं उपयोग एवं दुरुपयोग इस विषय पर डाॅ. सोहनलाल देवोत ने प्रकाश डाला। इस दौरान उन्होंने साढ़े आठ साल बाद मौन तोड़कर वक्तव्य प्रस्तुत किया।

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मंत्र साधना गुरु के सान्निध्य में होनी चाहिए: माता ज्ञानमती

डाॅ. सोहनलाल देवोत के इस पुस्तक के लेखन कार्य के लिए उन्हें तीर्थंकर ऋषभ देव जैन विद्वत् महासंघ के द्वारा उन्हें प्रशस्ति देकर सम्मान किया गया। जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माता ने इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मंत्र साधना गुरु के सान्निध्य में ही होनी चाहिए। क्योंकि लोग इस प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हैं जिसके कारणवश वह भटक जाते हैं, पागल हो जाते हैं एवं स्वयं के जीवन को समाप्त कर लेते हैं। यंत्र साधना से व्यक्ति उच्च शिखर पर पहुंच सकता है लेकिन बिना किसी लालच के और पूर्ण समर्पण के साथ की गई साधना उच्च शिखर पर ले जाती है।

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