High Court : प्रमुख सचिव सहित वन विभाग के अधिकारियों को जवाब के लिए आखिरी मौका

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Prayagraj News :  इलाहाबाद हाईकोर्ट

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव वन विभाग उत्तर प्रदेश, प्रमुख मुख्य वन संरक्षक कोर्ट केस व डिविजनल वन अधिकारी पीलीभीत को नोटिस का जवाब देने के लिए तीन हफ्ते का आखिरी मौका दिया है। याचिका की अगली सुनवाई 11 जनवरी को होगी। कोर्ट ने नोटिस जारी कर पूछा था कि क्यों न उनके खिलाफ जानबूझकर तथ्य छिपाकर न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने के लिए आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू की जाय। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने मोहन स्वरूप श्रीवास्तव की याचिका पर दिया है।

याची की ओर से सरकार द्वारा जवाब दाखिल न कर समय मांगने का यह कहते हुए विरोध किया कि भारी संख्या में कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है। कोर्ट ने समय देते हुए कहा कि सरकारी वकील ने जवाबी हलफनामा एक सप्ताह पहले याची को देने का आश्वासन दिया है। मामले में वन विभाग में कार्यरत दैनिक कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट के पुत्ती लाल केस के निर्देश के तहत न्यूनतम वेतनमान देने का हाईकोर्ट ने आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की विशेष अपील व एसएलपी खारिज हो गई। इसके 11 माह बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में पुनर्विलोकन अर्जी दी। जो 23 मार्च 21 को निरस्त कर दी गई।

इसी आदेश के एक प्रस्तर को संशोधित करने की अर्जी दी गई। जिसमें सरकार द्वारा स्वीकृत दस्तावेजों के विपरीत गलत व झूठे तथ्य दिए गए। राज्य सरकार ने माना कि नियमानुसार याचीगण सेवा निरंतरता के कारण नियमितीकरण के हकदार हैं। इसके विपरीत कहा गया कि याचीगण लगातार सेवारत नहीं थे। इसलिए न्यूनतम वेतनमान पाने के हकदार नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट तक राहत न मिलने के बावजूद वन विभाग के अधिकारियों ने गलत बयानी की। अपने काम को सही ठहराने की झूठ बोलकर पूरी कोशिश की। कोर्ट ने कहा ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव वन विभाग उत्तर प्रदेश, प्रमुख मुख्य वन संरक्षक कोर्ट केस व डिविजनल वन अधिकारी पीलीभीत को नोटिस का जवाब देने के लिए तीन हफ्ते का आखिरी मौका दिया है। याचिका की अगली सुनवाई 11 जनवरी को होगी। कोर्ट ने नोटिस जारी कर पूछा था कि क्यों न उनके खिलाफ जानबूझकर तथ्य छिपाकर न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने के लिए आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू की जाय। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने मोहन स्वरूप श्रीवास्तव की याचिका पर दिया है।

याची की ओर से सरकार द्वारा जवाब दाखिल न कर समय मांगने का यह कहते हुए विरोध किया कि भारी संख्या में कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है। कोर्ट ने समय देते हुए कहा कि सरकारी वकील ने जवाबी हलफनामा एक सप्ताह पहले याची को देने का आश्वासन दिया है। मामले में वन विभाग में कार्यरत दैनिक कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट के पुत्ती लाल केस के निर्देश के तहत न्यूनतम वेतनमान देने का हाईकोर्ट ने आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की विशेष अपील व एसएलपी खारिज हो गई। इसके 11 माह बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में पुनर्विलोकन अर्जी दी। जो 23 मार्च 21 को निरस्त कर दी गई।

इसी आदेश के एक प्रस्तर को संशोधित करने की अर्जी दी गई। जिसमें सरकार द्वारा स्वीकृत दस्तावेजों के विपरीत गलत व झूठे तथ्य दिए गए। राज्य सरकार ने माना कि नियमानुसार याचीगण सेवा निरंतरता के कारण नियमितीकरण के हकदार हैं। इसके विपरीत कहा गया कि याचीगण लगातार सेवारत नहीं थे। इसलिए न्यूनतम वेतनमान पाने के हकदार नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट तक राहत न मिलने के बावजूद वन विभाग के अधिकारियों ने गलत बयानी की। अपने काम को सही ठहराने की झूठ बोलकर पूरी कोशिश की। कोर्ट ने कहा ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।



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