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इलाहाबाद हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सरफेसी कानून की धारा 14 के अंतर्गत कार्यवाही की सूचना उधार लेने वाले को देना जरूरी नहीं है। किंतु आदेश की प्रति उसे दी जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा सिक्योर क्रेडीटर के हितों की सुरक्षा के लिए उधार लेने वाले को उसे जबरन बेदखल कर कब्जा लेने की ऐसी सूचना दी जाए, ताकि वह वैकल्पिक व्यवस्था कर स्वयं ही अपना सामान हटा सके।
कोर्ट ने यह भी कहा जिलाधिकारी द्वारा 60 दिन के भीतर धारा 14 की कार्यवाही न करने से वह अधिकार हीन नहीं हो जाएगा। कार्यवाही व्यर्थ नहीं होगी। कोर्ट ने बेदखल कर संपत्ति पर कब्जा लेने का आदेश देने से पहले सुनवाई का अवसर न देकर नैसर्गिक न्याय का हनन करने की दलील नहीं मानी और कहा सरफेसी कानून उधार देने वालों के हितों को सुरक्षित करने के लिए बनाया गया है।
धारा 14 में संपत्ति अपने कब्जे में लेकर उधार देने वाले को सौंपने की जिलाधिकारी की कार्यवाही आदेश के पहले सुनवाई का अधिकार उधार लेने वाले को नहीं है। कोर्ट ने धारा 14 सरफेसी कानून की वैधता की चुनौती याचिकाओं को खारिज कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति वीसी दीक्षित की खंडपीठ ने शिप्रा होटल लिमिटेड व कई अन्य की याचिकाओं को एक साथ तय करते हुए दिया है।
याचिकाओं में गाजियाबाद व वाराणसी के एडीएम वित्त के धारा 14 के अंतर्गत पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। उधार लेने वाले याचियों का कहना था कि उन्हें सुनवाई का मौका दिए संपत्ति पर बलपूर्वक कब्जा लेने का आदेश जारी किया गया है। जिससे उनके नैसर्गिक अधिकार का उल्लघंन किया गया है। कोर्ट ने इसे सही नहीं माना और कहा आदेश देने से पहले सूचना देना जरूरी नहीं है, लेकिन पारित आदेश की सूचना पर्याप्त समय के साथ देना जरूरी है, ताकि वे अपना सामान हटा सके और संपत्ति का कब्जा लेकर उधार देने वालों को सौंपा जा सके।
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