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सार
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अमर उजाला मंगलवार को फजलगंज स्थित अपराजिता केंद्र पर विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली 16 अपराजिताओं को सम्मानित करेगा।
क्षीण नहीं, अबला नहीं, न ही वह बेचारी है, जोश भरा लिबास पहने गर्व से चलती आज की नारी है। वर्तमान परिदृश्य में ये पंक्तियां महिलाओं पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के झंडे फहराकर अब महिलाएं पुरुषों से भी आगे निकल रही हैं।
तकनीक, मेडिकल, व्यवसाय, स्टार्टअप, शिक्षा, सामाजिक सरोकार समेत अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अमर उजाला मंगलवार को फजलगंज स्थित अपराजिता केंद्र पर विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली 16 अपराजिताओं को सम्मानित करेगा।
कभी मांगी थी मदद, अब बनी मददगार
पति रिक्शा चलाते थे और मैं घर संभालती थी। कोपरगंज स्थित घर पर लोगों ने कब्जा करने की कोशिश की। पुलिस, प्रशासन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। तब सखी केंद्र के संपर्क में आई और उनसे सलाह ली। केंद्र की पदाधिकारियों ने मकान से कब्जा हटवाया और इतना हौसला भर दिया कि अब महिलाओं की समस्याओं को सुलझाने का काम करती हूं।
यह कहना है कि सीमा सोनकर का। वह आज सैकड़ों महिलाओं के हौसलों की आवाज बनी हुई हैं। वह अपने क्षेत्र और आसपास के इलाकों की महिलाओं की न केवल समस्याएं सुलझाती हैं बल्कि उनको आत्मनिर्भर बनाने का भी भरसक प्रयास करती हैं।
संघर्षों में बीता जीवन, न मानी हार, विदेशों तक बनाई पहचान
डॉ. बिंदू सर्वोत्तम तिवारी के जीवन में ऐसे उतार-चढ़ाव आए जिनके बाद दोबारा पैरों पर खड़ा हो पाना संभव नहीं था। मजबूत इरादों के साथ बिंदू ने कठिनाइयों का सामना किया और अब वह विदेश तक अपनी पहचान बना चुकी हैं। तीन साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया था।
मां चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थीं। महज 15 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई। शादी के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई पूरी की। एमएसडब्ल्यू के दौरान उन्होंने समाज सेवा शुरू कर दी थी, पति ने भी उनका साथ दिया। 2008 में पति के निधन से वह पूरी तरह टूट गईं। तब बेटी छठी कक्षा में पढ़ रही थी।
डॉ. बिंदू कहती हैं कि इसके बावजूद फिर साहस किया। बेटी को उच्च शिक्षा देने के बाद उसका विवाह किया। बेटी की शादी के बाद जीवन में सर्वोत्तम तिवारी आए। उन्होंने विवाह का प्रस्ताव रखा तो कई लोगों ने मुंह बनाया, ताने दिए। लेकिन बेटी ने सपोर्ट किया और 2019 में दूूसरी बार दुल्हन बनी।
कोरोना काल में वह उद्यमिता के क्षेत्र में आईं और मिट्टी के बर्तनों को बनाने का काम किया। राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री तक इन बर्तनों की तारीफ कर चुके हैं। विदेशों में भी बर्तनों की डिमांड है। वह अपनी टीम संग मिलकर महिला कैदियों को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए ट्रेनिंग भी देती हैं।
विस्तार
क्षीण नहीं, अबला नहीं, न ही वह बेचारी है, जोश भरा लिबास पहने गर्व से चलती आज की नारी है। वर्तमान परिदृश्य में ये पंक्तियां महिलाओं पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के झंडे फहराकर अब महिलाएं पुरुषों से भी आगे निकल रही हैं।
तकनीक, मेडिकल, व्यवसाय, स्टार्टअप, शिक्षा, सामाजिक सरोकार समेत अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अमर उजाला मंगलवार को फजलगंज स्थित अपराजिता केंद्र पर विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली 16 अपराजिताओं को सम्मानित करेगा।
कभी मांगी थी मदद, अब बनी मददगार
पति रिक्शा चलाते थे और मैं घर संभालती थी। कोपरगंज स्थित घर पर लोगों ने कब्जा करने की कोशिश की। पुलिस, प्रशासन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। तब सखी केंद्र के संपर्क में आई और उनसे सलाह ली। केंद्र की पदाधिकारियों ने मकान से कब्जा हटवाया और इतना हौसला भर दिया कि अब महिलाओं की समस्याओं को सुलझाने का काम करती हूं।
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