तीन मंजिला मकान में परिवार के साथ रह रहा विजय इतना अकेला था कि कमरे तक ही उसकी दुनिया सिमटकर रह गई थी। घर में रहने वाले अन्य सदस्यों को उससे कोई मतलब नहीं था। यही वजह रही कि पांच दिन तक उसकी मौत की भनक किसी को नहीं लगी।
शव सड़ जाने के बाद दुर्गंध फैली,तो अनहोनी की आशंका हुई। पुलिस बुलाकर दरवाजा खुलवाया, तो विजय दुनिया छोड़ चुका था। ताज्जुब की बात यह भी है कि मोबाइल के दौर में किसी रिश्तेदार ने भी उसे फोन नहीं किया। शहर के गैस गोदाम क्रॉसिंग स्थित गैस एजेंसी संचालक रहे रामप्रकाश व्यास शहर के नामचीन लोगों में शुमार थे।
शहर में काफी रसूख था। परिवार भी संपन्न है। रामप्रकाश के निधन के बाद से परिवार सदमे में आ गया। उनकी चार बेटियां व दो बेटे हैं। एक बेटी की शादी उन्होंने अपने हाथों से की, जबकि दूसरी बेटी की शादी उनकी मौत के बाद हुई। दो बेटों और दो बेटियों की शादी अभी नहीं हुई।
विजय, शिवम, अलीशा व पूजा अब इसी घर में रहते हैं। तीन मंजिला मकान के ग्राउंड फ्लोर की दुकानें किराए पर उठी हुई हैं। पहली मंजिल पर बहनें रहती हैं। विजय दूसरी मंजिल पर रहता था। ऊपरी मंजिल पर घर का सामान है। एक कमरे में कसरत करने के उपकरण रखे हैं।
बताया जा रहा है कि पिता की गैस एजेंसी का संचालन दोनों बेटियां ही करती हैं। विजय का कारोबार से कोई वास्ता नहीं था। छोटा भाई शिवम एक हादसे में चोट लगने से दिव्यांग हो गया है। कारोबार में दखल न होने से वह घर में दूसरे भाई-बहन से अलग ही रहता था।
उसका कमरा ही उसकी दुनिया थी। वह पूरे-पूरे दिन उसी कमरे में रहता था। कई बार तो कई-कई दिन तक कमरे से बाहर नहीं निकलता था। ऐसे में इस बार भी जब वह कई दिन तक बाहर नहीं निकला, तो किसी का ध्यान नहीं गया। यहां तक की उसके पास किसी को फोन भी नहीं आया।
पेट के बल पड़ा मिला शव
मकान के जिस कमरे को विजय ने दुनिया बना रखा था, उसी में उसका शव पड़ा मिला। वह बिस्तर पर पेट के बल लेटा हुआ था। शरीर पर कंबल पड़ा था। पास ही रखे स्टूल पर मोबाइल थे। बेड के नीचे पैर की साइड में फर्श पर खून पड़ा था। नीचे टीवी का रिमोट कंट्रोल भी गिरा था।