प्यार और पूजा के ऊंचे मानकों पर स्थापित करवाचौथ का पर्व वाराणसी में सुहागिनों ने पूरी श्रद्धा के साथ मनाया। सुहाग की लंबी आयु की कामना के साथ महिलाओं ने निर्जल व्रत रखा। शाम में सोलह श्रृंगार कर महिलाओं ने चलनी से पहले चांद फिर पिया का दीदार किया। विधिविधान से चौथ माता, भगवान गणेश की पूजा के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर महिलाओं ने अखंड सौभाग्य की कामना की। सांझ ढलते ही घरों में पूजन की तैयारियों को अंतिम रूप दिया गया। करवाचौथ का व्रत था तो श्रृंगार में तो वैसे भी कोई कमी नहीं छोड़नी थी।
कुछ सुहागिनें लाल जोड़े में तो कुछ शादी के लहंगे में तैयार हुईं। सुहागिनों का साज श्रृंगार देखकर तो एकबारगी चांद भी शरमा गया। दिन भर व्रत के बाद शाम से ही सजने संवरने की तैयारी शुरू हो गई। कई महिलाएं तो करवाचौथ के इस दिन को खास बनाने के लिए पार्लर से तैयार हुईं।
सज-धज कर महिलाएं निकलीं। चांद को निहारने के लिए सोलह श्रृंगार किया। चलनी से चांद का मुखड़ा निहारने का एक अद्भुद संयोग था। मौका था करवा चौथ व्रत का। उत्सव भी था और प्यार का इजहार भी। मस्ती भी और आस्था भी।
करवाचौथ व्रत पर महिलाओं ने छतों के अलावा आंगन में और मंदिरों में समूहों में करवा सजाया, पूजन किया। नृत्य-संगीत के साथ पिया का दीदार करने के क्षणों में खूब प्रेम छलका। पतियों ने भी पत्नियों को मनपसंद उपहार भेंटकर करवाचौथ यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
बाजारों में सुबह से ही मिट्टी और खांड के करवे, चौथ माता का कैलेंडर, फूल-माला और पूजन सामग्री की बिक्री शुरू हुई और शाम तक चलती रही। प्यार और पूजा के ऊंचे मानकों पर स्थापित इस व्रत पर महिलाओं ने छतों के साथ ही आंगन और मंदिरों में समूहों में करवा सजा कर पूजन किया।
महिलाओं ने दोपहर में करवाचौथ की कथा सुनी। शाम होते ही घर के आंगन, छत, मंदिर और अपार्टमेंट में मिट्टी के करवे को हल्दी, चंदन, रोली, अक्षत से सजाया और चंद्रोदय का इंतजार करने लगी। जैसे ही 7.55 पर चांद दिखा पूजन आरंभ हो गया। पति का चेहरा देखने के बाद नृत्य संगीत के माहौल में महिलाओं ने जमकर मस्ती की।