Kashi tamil sangamam: रामेश्वर से आए एस शंकरलिंगम की ‘मणिक्य माला’ ने खींचा सबका ध्यान, क्यों है इतनी खास ?

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शादियों में दुल्हा-दुल्हन की खूबसूरती बढ़ाती है ‘मणिक्य माला’

शादियों में दुल्हा-दुल्हन की खूबसूरती बढ़ाती है ‘मणिक्य माला’
– फोटो : अमर उजाला

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तिरुअनंतपुरम स्थित पद्मनाभन स्वामी मंदिर में प्रतिदिन एक विशेष प्रकार की ‘मणिक्य माला’ चढ़ायी जाती है। गुलाब समेत विभिन्न सुगंधित ताजे
फूलों की यह माला हर रोज करीब 200 किमी की दूर स्थित रामेश्वर में युवा कलाकार एस शंकरलिंगम का परिवार बनाकर तैयार करता है। यह माणिक्य माला पहली बार बनारस के लोगों को खूब पसंद आ रही है। काशी तमिल संगमम में एस शंकरलिंगम अपनी यह कला से काशी वासियों को रूबरू करा रहे है। गुलाब के फूलों की एक-एक पंखुड़ियों को चुनकर उन्हें बुनने से पहले गुलाब के कांटों से जूझना पड़ता है। इस कारण कई बार अंगुलियों में कांटे भी चुभ जाते है। एस शंकरलिंगम ने अब तक 200 रुपये से लेकर 20 हजार रुपये तक की माला तैयार कर चुके है। ये कला शंकरलिंगम के परिवार की पारंपरिक कला है, जिसके लिए उनके पिता को भी तमिलनाडु सरकार द्वारा सम्मान भी मिल चुका है। अपनी इस क ला के
बारे में बताते हुए एस शंकरलिंगम बताते है कि पूर्व राष्ट्रपति आर वेंटकरमन, एपीजे अब्दुल कलाम आदि से एस रघुनाथन की इस कला को सराहना मिल चुकी है। काशी तमिल संगमम में बीएचयू की छात्राएं भी इस कला का प्रशिक्षण ले रही हैं। शादी विवाह व भगवान विष्णु का होता है शृंगार
एस शंकरलिंगम ने बताया कि इस माला का मुख्य इस्तेमाल भगवान विष्णु के शृंगार के साथ विभिन्न मंदिरों में सजावट व पालकी को सजाने में किया जाता है। इसके अलावा दक्षिण भारतीय शादियों में भी इस माला का खूब इस्तेमाल होता है। दक्षिण भारत के फिल्मों में बड़े दिग्गज कलाकार भी अपनी शादी में इस माला का प्रयोग करते है। माला को ताजे फूलों को घास की डोरी बनाकर बुना जाता है। जो ठंड में छह से सात दिन और गर्मी में चार दिनों तक अपनी खुशबू बिखरता रहता है।

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तिरुअनंतपुरम स्थित पद्मनाभन स्वामी मंदिर में प्रतिदिन एक विशेष प्रकार की ‘मणिक्य माला’ चढ़ायी जाती है। गुलाब समेत विभिन्न सुगंधित ताजे

फूलों की यह माला हर रोज करीब 200 किमी की दूर स्थित रामेश्वर में युवा कलाकार एस शंकरलिंगम का परिवार बनाकर तैयार करता है। यह माणिक्य माला पहली बार बनारस के लोगों को खूब पसंद आ रही है। काशी तमिल संगमम में एस शंकरलिंगम अपनी यह कला से काशी वासियों को रूबरू करा रहे है। गुलाब के फूलों की एक-एक पंखुड़ियों को चुनकर उन्हें बुनने से पहले गुलाब के कांटों से जूझना पड़ता है। इस कारण कई बार अंगुलियों में कांटे भी चुभ जाते है। एस शंकरलिंगम ने अब तक 200 रुपये से लेकर 20 हजार रुपये तक की माला तैयार कर चुके है। ये कला शंकरलिंगम के परिवार की पारंपरिक कला है, जिसके लिए उनके पिता को भी तमिलनाडु सरकार द्वारा सम्मान भी मिल चुका है। अपनी इस क ला के

बारे में बताते हुए एस शंकरलिंगम बताते है कि पूर्व राष्ट्रपति आर वेंटकरमन, एपीजे अब्दुल कलाम आदि से एस रघुनाथन की इस कला को सराहना मिल चुकी है। काशी तमिल संगमम में बीएचयू की छात्राएं भी इस कला का प्रशिक्षण ले रही हैं। शादी विवाह व भगवान विष्णु का होता है शृंगार

एस शंकरलिंगम ने बताया कि इस माला का मुख्य इस्तेमाल भगवान विष्णु के शृंगार के साथ विभिन्न मंदिरों में सजावट व पालकी को सजाने में किया जाता है। इसके अलावा दक्षिण भारतीय शादियों में भी इस माला का खूब इस्तेमाल होता है। दक्षिण भारत के फिल्मों में बड़े दिग्गज कलाकार भी अपनी शादी में इस माला का प्रयोग करते है। माला को ताजे फूलों को घास की डोरी बनाकर बुना जाता है। जो ठंड में छह से सात दिन और गर्मी में चार दिनों तक अपनी खुशबू बिखरता रहता है।



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