काशी विद्यापीठ में दीक्षांत समारोह में जिन मेधावियों को स्वर्ण पदक से नवाजा गया, उनकी सफलता के पीछे श्रम और परिश्रम का बहुत बड़ा योगदान है। कोई किसान की बेटी तो कोई बस ड्राइवर का बेटा रहा। कई बेटियां ऐसी भी रहीं जिनकी मां न होने पर पिता, चाचा और बुआ ने बल दिया। कुछ ऐसे मेधावियों से बातचीत जिन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए दूसरे के घरों तक दूध पहुंचाने से भी परहेज नहीं किया। दूध बेचने के साथ की पढ़ाई, अब हासिल किया स्वर्ण पदक काशी विद्यापीठ के छात्र जमुना यादव दूधिया का काम कर अपनी पढ़ाई का खर्च उठाते थे। लोगों के घर दूध पहुंचाने के बाद नियमित कक्षा में जाते थे। शनिवार को दीक्षांत समारोह में समाज शास्त्र में एमए में सबसे ज्यादा अंक हासिल कर स्वर्ण प्राप्त किया। जमुना के पिता लालजी पहले मुंबई में गाड़ी चलाते थे, कोरोना में नौकरी छूटने के बाद निजी स्कूल में बस चलाने लगे। मां तारा देवी ने जमुना के साथ बाकी बच्चों का खेती कर पालन पोषण किया। जमुना काम के बाद बचे समय में मेहनत से पढ़ाई करते थे। अपने परिवार में स्वर्ण पदक व परास्नातक करने वाले वह पहले सदस्य हैं। दसवीं की बोर्ड परीक्षा के समय वह दिमागी बुखार के कारण बीमार पड़ गए। उन्हें बीच में ही परीक्षा छोड़ने पड़ी। हालांकि, हौसले के आगे मुश्किलें उनका पीछा छोड़ गईं। जमुना बीएड के साथ टीईटी व सीटीईटी भी उत्तीर्ण कर चुके हैं। उनका सपना अब शोध पूरा कर प्रोफेसर बनने का सपना है।
हल चलाकर किसान की बेटी ने हासिल किया स्वर्ण
स्नातक के मनोविज्ञान में स्वर्ण जीतने वाली मिर्जापुर की बेटी रूपा मौर्या ने सर्वाधिक अंक हासिल कर परिवार का नाम रोशन किया है। रूपा अपने परिवार की पहली बेटी है जिसने स्वर्ण पदक हासिल किया है। पिता केदारनाथ किसान हैं, अपने परिवार की छोटी सी जमीन पर काम कर जो पैसे मिलते उसी से बच्चों की पढ़ाई कराई। पिता और माता के साथ खेत में हल चलाकर काम करने के साथ पढ़ाई करती थी। रूपा बताती हैं कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के बावजूद विषय परिस्थितियों में पढ़ाई पूरी की। उसने आज तक कभी कोई ट्यूशन या कोचिंग नहीं की और अध्ययन के प्रति सतत लगनशील रही। रूपा का सपना शिक्षक बनने का है। बताया कि इस सम्मान के सबसे बड़े हकदार पिता और माता हैं।
पिता के सपनों को पूर कर छलके आंसू परास्नातक के भूगोल में सर्वाधिक अंक हासिल कर स्वर्ण पदक जीतने वाली शृंखला दूबे के आंखों में खुशी के आंसू दिखे। कहने को मां का साथ 18 साल पहले ही छूट गया था, लेकिन पिता ने कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी। पिता अमूल कुमार दूबे मिर्जापुर में किसान है, लेकिन बेटी की पढ़ाई के लिए उन्होंने हर जतन किए। बेटी की पढ़ाई के लिए उन्होंने उसे मिर्जापुर से बनारस भेजा। यहां चाचा अभिषेक दुबे व दादी मनोरमा दुबे के साथ रहकर शृंखला ने पिता के सपनों को रंग भरने का काम किया। शृंखला बताती हैं बुआ शिक्षक थीं, बचपन में उन्होंने मेरी शिक्षा में काफी मदद की। शृंखला का सपना अब पीएचडी के बाद प्रोफेसर बनने का है।
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काशी विद्यापीठ में दीक्षांत समारोह में जिन मेधावियों को स्वर्ण पदक से नवाजा गया, उनकी सफलता के पीछे श्रम और परिश्रम का बहुत बड़ा योगदान है। कोई किसान की बेटी तो कोई बस ड्राइवर का बेटा रहा। कई बेटियां ऐसी भी रहीं जिनकी मां न होने पर पिता, चाचा और बुआ ने बल दिया। कुछ ऐसे मेधावियों से बातचीत जिन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए दूसरे के घरों तक दूध पहुंचाने से भी परहेज नहीं किया।
दूध बेचने के साथ की पढ़ाई, अब हासिल किया स्वर्ण पदक
काशी विद्यापीठ के छात्र जमुना यादव दूधिया का काम कर अपनी पढ़ाई का खर्च उठाते थे। लोगों के घर दूध पहुंचाने के बाद नियमित कक्षा में जाते थे। शनिवार को दीक्षांत समारोह में समाज शास्त्र में एमए में सबसे ज्यादा अंक हासिल कर स्वर्ण प्राप्त किया। जमुना के पिता लालजी पहले मुंबई में गाड़ी चलाते थे, कोरोना में नौकरी छूटने के बाद निजी स्कूल में बस चलाने लगे। मां तारा देवी ने जमुना के साथ बाकी बच्चों का खेती कर पालन पोषण किया। जमुना काम के बाद बचे समय में मेहनत से पढ़ाई करते थे। अपने परिवार में स्वर्ण पदक व परास्नातक करने वाले वह पहले सदस्य हैं। दसवीं की बोर्ड परीक्षा के समय वह दिमागी बुखार के कारण बीमार पड़ गए। उन्हें बीच में ही परीक्षा छोड़ने पड़ी। हालांकि, हौसले के आगे मुश्किलें उनका पीछा छोड़ गईं। जमुना बीएड के साथ टीईटी व सीटीईटी भी उत्तीर्ण कर चुके हैं। उनका सपना अब शोध पूरा कर प्रोफेसर बनने का सपना है।