सीएम योगी के पास खड़े भाजपा प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य – फोटो : अमर उजाला
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मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा की बड़ी हार के पीछे कई कारण हैं। इसमें सबसे बड़ा कारण जिले की राजनीति में जाति विशेष के नेताओं का दखल ही रहा। इसके चलते न केवल भाजपा का कोर वोट मानी जानी वाली अन्य जातियों ने भाजपा को नकार दिया, तो वहीं कार्यकर्ताओं ने भी अंदरखाने इसका विरोध किया। वहीं दूसरी तरफ प्रशासनिक स्तर पर देखें तो बेसहारा गोवंश की समस्या से परेशान किसानों ने भी भाजपा को नकार दिया।
भले ही शासन ने शहर से ग्रामीण अंचल तक बेसहारा गोवंश के लिए गोशालाओं का संचालन किया, लेकिन प्रशासन स्तर से शिथिलता बरती गई। इसके चलते किसानों के खेत ये गोवंश उजाड़ते रहे। जब मतदान की बारी आई तो किसानों ने पक्ष के खिलाफ वोट किया। नतीजा ये रहा कि भाजपा के नेताओं के पास हार का कोई जवाब नहीं है। नतीजे आने के बाद पदाधिकारी और जनप्रतिनिधि पार्टी हाईकमान को जवाब देने की रूपरेखा बनाने में जुट गए हैं।
जाति विशेष पर ही रहा भाजपा का हाथ
जिले की राजनीति में ब्लॉक स्तर से लेकर जिला स्तर तक कई ऐसे पद होते हैं, जिन पर पार्टी और सरकार ही जीतती है। लेकिन मैनपुरी में इन सभी पदों के लिए क्षेत्रीय जाति के नेताओं पर भाजपा का हाथ रहा। चाहे ब्लॉक प्रमुख का पद हो, जिला पंचायत अध्यक्ष का पद हो, जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष का पद हो या फिर सूबे की सरकार में मंत्रिमंडल का पद जाति विशेष को ही स्थान मिला। इसके अलावा भाजपा की जिला कार्यकारिणी में भी सर्वोच्च पद जाति विशेष की ही झोली में रहा। इससे भाजपा का कोर वोट बैंक माने जाने वाले ब्राह्मण, वैश्य, लोधी में नाराजगी साफ नजर आई। नतीजतन भाजपा को हार मिली।
किसानों का दर्द भी नहीं आया प्रशासन को कभी नजर
राजनीति से इतर भाजपा शासन में किसानों का दर्द भी प्रशासन को कभी नजर नहीं आया। चाहे बेसहारा गोवंश ने किसानों के खेत बर्बाद कर दिए हों या फिर खेतों की बुवाई के लिए डीएपी की जरूरत हो। हर बार किसानों को केवल परेशानी ही मिली। शासन भले ही गोशालाओं का संचालन कर रहा है, लेकिन प्रशासन बेसहारा गोवंश को गोशाला तक नहीं पहुंचा सका। डीएपी के लिए 1350 रुपये प्रति बोरी के स्थान पर 1600 रुपये वसूला गया। ऐसे में किसानों को जब लगा कि सरकार ये चुनाव लड़ रही है तो किसानों जवाब दिया। किसानों ने उपचुनाव में ये संकेत दे दिए कि अगर उनकी समस्याओं का निदान नहीं होगा तो वे भी वोट की चोट करेंगे।
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में विकास भी कहीं न कहीं लोगों के बीच मुद्दा बना। सपा जहां अपने विकास कार्यों को गिनाती रही तो वहीं भाजपा नेता मुद्दे से भटकाने का काम करते रहे। दरअसल मैनपुरी में सपा सरकार ने फोरलेन से लेकर, राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, राजकीय पॉलीटेक्निक कॉलेज, राजकीय इंटर कॉलेज, सैनिक स्कूल, बस स्टैंड, सौ शैया अस्पताल से लेकर अन्य विकास कार्य गिनाए। लेकिन भाजपा के पास साढ़े पांच साल बाद भी मैनपुरी में विकास का एक उदाहरण नहीं नजर आया। ऐसे में जनता ने विकास के नाम पर सपा को वोट दिया और भाजपा को हार से संतोष करना पड़ा।
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मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा की बड़ी हार के पीछे कई कारण हैं। इसमें सबसे बड़ा कारण जिले की राजनीति में जाति विशेष के नेताओं का दखल ही रहा। इसके चलते न केवल भाजपा का कोर वोट मानी जानी वाली अन्य जातियों ने भाजपा को नकार दिया, तो वहीं कार्यकर्ताओं ने भी अंदरखाने इसका विरोध किया। वहीं दूसरी तरफ प्रशासनिक स्तर पर देखें तो बेसहारा गोवंश की समस्या से परेशान किसानों ने भी भाजपा को नकार दिया।
भले ही शासन ने शहर से ग्रामीण अंचल तक बेसहारा गोवंश के लिए गोशालाओं का संचालन किया, लेकिन प्रशासन स्तर से शिथिलता बरती गई। इसके चलते किसानों के खेत ये गोवंश उजाड़ते रहे। जब मतदान की बारी आई तो किसानों ने पक्ष के खिलाफ वोट किया। नतीजा ये रहा कि भाजपा के नेताओं के पास हार का कोई जवाब नहीं है। नतीजे आने के बाद पदाधिकारी और जनप्रतिनिधि पार्टी हाईकमान को जवाब देने की रूपरेखा बनाने में जुट गए हैं।
जाति विशेष पर ही रहा भाजपा का हाथ
जिले की राजनीति में ब्लॉक स्तर से लेकर जिला स्तर तक कई ऐसे पद होते हैं, जिन पर पार्टी और सरकार ही जीतती है। लेकिन मैनपुरी में इन सभी पदों के लिए क्षेत्रीय जाति के नेताओं पर भाजपा का हाथ रहा। चाहे ब्लॉक प्रमुख का पद हो, जिला पंचायत अध्यक्ष का पद हो, जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष का पद हो या फिर सूबे की सरकार में मंत्रिमंडल का पद जाति विशेष को ही स्थान मिला। इसके अलावा भाजपा की जिला कार्यकारिणी में भी सर्वोच्च पद जाति विशेष की ही झोली में रहा। इससे भाजपा का कोर वोट बैंक माने जाने वाले ब्राह्मण, वैश्य, लोधी में नाराजगी साफ नजर आई। नतीजतन भाजपा को हार मिली।