Nikay chunav: 27 साल से महापौर की सीट पर भाजपा का कब्जा, नगर निगम बनने के बाद 1995 से लगातार जीत रही पार्टी

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नगर निगम की महापौर सीट पर बीते 27 साल से भाजपा का कब्जा रहा है। अब तक विरोधी पार्टियों का खाता भी नहीं खुला है। भाजपा के लिए यह सीट नाक का सवाल है तो वहीं कांग्रेस, सपा और बसपा सहित अन्य पार्टियां गढ़ को तोड़ने में ताकत झोंकने की तैयारी में हैं। 
नगर निगम चुनाव में इस बार महापौर की सीट अनारक्षित हो गई है। अब शहर की सरकार बनाने के लिए जोड़तोड़ की राजनीति शुरू हो जाएगी। 1995 से लेकर अब तक यह सीट भाजपा के खाते में गई है। नगर निगम से पहले महापालिका थी। तब यहां 1960 से 1994 तक नगर प्रमुख होते थे। 1995 में जब नगर निगम का गठन हुआ। तब से लेकर अब तक हुए पांच बार के नगर निगम चुनाव में महापौर सीट पर भाजपा का ही दबदबा रहा है। नगर निगम में छठवीं बार होने वाले महापौर के चुनाव के दावेदारों में भाजपा के पास लंबी फेहरिस्त है। अंतिम निर्णय चुनाव संचालन समिति और हाईकमान को करना है। चुनाव से जुड़े अधिकारियों के अनुसार चक्रानुक्रम के हिसाब से इस बार यह सीट सामान्य महिला के खाते में जाना चाहिए था। लेकिन यहां 10 वार्ड बढ़ने के कारण नए सिरे से चक्रानुक्रम चलाया गया है, जिस कारण से अनारक्षित सीट की गई है। 

नगर निगम में अब तक के महापौर का कार्यकाल
सरोज सिंह – 30 नवंबर 1995 से 29 नवंबर 2000 (ओबीसी महिला)
अमरनाथ यादव – 30 नवंबर 2000 से 20 जनवरी 2006 (ओबीसी पुरुष)
कौशलेंद्र सिंह – 17 नवंबर 2006 से 19 जुलाई 2012 (ओबीसी पुरुष)
रामगोपाल मोहले – 20 जुलाई 2012 से अगस्त 2017 (अनारक्षित)
मृदुला जायसवाल – 12 दिसंबर 2017 से अब तक (ओबीसी महिला)
नगर निगम बनने से पहले नगर प्रमुख
कुंजबिहारी गुप्ता – एक फरवरी 1960 से 30 अप्रैल 1962
बृजपाल दास – एक मई 1962 से 31 जनवरी 1966
श्याम मोहन अग्रवाल – पांच जुलाई 1968 से पांच जुलाई 1970
सरयू प्रसाद दूबे – छह जुलाई 1970 से पांच जुलाई 1971
पूरन चंद्र पाठक – छह जुलाई 1971 से 30 जून 1973 तक
मोहम्मद स्वालेह अंसारी – 12 फरवरी 1989 से पांच फरवरी 1994 

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विस्तार

नगर निगम की महापौर सीट पर बीते 27 साल से भाजपा का कब्जा रहा है। अब तक विरोधी पार्टियों का खाता भी नहीं खुला है। भाजपा के लिए यह सीट नाक का सवाल है तो वहीं कांग्रेस, सपा और बसपा सहित अन्य पार्टियां गढ़ को तोड़ने में ताकत झोंकने की तैयारी में हैं। 

नगर निगम चुनाव में इस बार महापौर की सीट अनारक्षित हो गई है। अब शहर की सरकार बनाने के लिए जोड़तोड़ की राजनीति शुरू हो जाएगी। 1995 से लेकर अब तक यह सीट भाजपा के खाते में गई है। नगर निगम से पहले महापालिका थी। तब यहां 1960 से 1994 तक नगर प्रमुख होते थे। 1995 में जब नगर निगम का गठन हुआ। तब से लेकर अब तक हुए पांच बार के नगर निगम चुनाव में महापौर सीट पर भाजपा का ही दबदबा रहा है। नगर निगम में छठवीं बार होने वाले महापौर के चुनाव के दावेदारों में भाजपा के पास लंबी फेहरिस्त है। अंतिम निर्णय चुनाव संचालन समिति और हाईकमान को करना है। चुनाव से जुड़े अधिकारियों के अनुसार चक्रानुक्रम के हिसाब से इस बार यह सीट सामान्य महिला के खाते में जाना चाहिए था। लेकिन यहां 10 वार्ड बढ़ने के कारण नए सिरे से चक्रानुक्रम चलाया गया है, जिस कारण से अनारक्षित सीट की गई है। 



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