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ज्योतिषाचार्य ने बताया कि श्राद्ध कर्म में भोजन के पहले पांच जगहों पर भोजन के अंश निकाले जाते हैं। भोजन के यह अंश देवताओं, गाय, कुत्ता, चींटी, कौए के लिए सर्वप्रथम निकाले जाते हैं। यह अर्पण की विधि पंच बलि कहलाती है। पंच बलि के बिना श्राद्ध कर्म संपूर्ण नहीं माना जाता है। पितृ पक्ष की अवधि में इन जीवों को भोजन कराने से पितृदोष से भी मुक्ति मिल सकती है।
पितरों की मृत्यु की सही तिथि ज्ञात न होने पर पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन विधिपूर्वक श्राद्ध कर सकते हैं। प्रत्येक माह में आने वाली अमावस्या तिथि को दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके जल तर्पण किया जा सकता है। इससे पितर तृप्त और संतुष्ट होते हैं। पापों से मुक्ति के लिए भी श्राद्ध कर्म करना श्रेष्ठ माना गया है।
पितृ पक्ष के पहले दिन पूर्णिमा श्राद्ध के मौके पर कासगंज में कछला गंगा घाट पर सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचे। तीर्थ नगरी सोरों के हर की पौड़ी पर तीर्थ पुरोहितों के माध्यम से श्रद्धालुओं ने हवन पूजा कर श्राद्ध किया। पितरों से आशीष की कामना किया।
कासगंज के गंगा घाटों पर राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत कई जनपदों से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। अन्य गंगा घाटों पर भी श्रद्धालु स्नान के बाद श्राद्ध कर्म कर रहे हैं।
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