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आगरा में जहांगीर काल में नूरजहां ने अपने पिता के मकबरे एत्माद्दौला में मार्बल इनले की एक कला पैत्रा ड्यूरा का इस्तेमाल किया, जो बाद में ताजमहल में अपने उत्कृष्ट रूप में दुनियाभर के सामने आई। ताजनगरी में मार्बल इनले के 35 हजार से ज्यादा कारीगर हैं। ये कारीगर गोकुलपुरा, ताजगंज, फतेहाबाद रोड, मलको गली आदि जगहों पर एक से बढ़कर एक पच्चीकारी के नमूने बना रहे हैं।
प्रधानमंत्री की इस भेंट से मुगलिया दौर की 500 साल पुरानी कला की शान बढ़ी तो मार्बल पच्चीकारी को सम्मान मिला है। गोकुलपुरा की स्टोनमैन क्राफ्ट ने काले मार्बल के बेस पर 12 कीमती पत्थरों के साथ पच्चीकारी कर छह माह में इसे तैयार किया था। 700 से ज्यादा पत्थरों के पीस लगाकर 36 इंच व्यास के टेबल टॉप को पांच हस्तशिल्पियों की टीम ने आकार दिया। आगरा की हस्तशिल्प कला के लिए गौरव के इस पल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर साझा किया तो हस्तशिल्पियों की खुशी का ठिकाना न रहा।
तुर्की और ईरान की कला का संगम है एत्माद्दौला
सफेद संगमरमर पर रंगीन पत्थरों के इनले वर्क का सबसे बेहतर नमूना एत्माद्दौला का मकबरा माना जाता है। मुगल साम्राज्ञी नूरजहां ने इसे अपने पिता की याद में बनवाया था। तुर्की और ईरान की कला का संगम यह पहला स्मारक है, जिसमें तुर्की के ज्यामितीय और ईरान के फूलों की आकृति के इनले वर्क का उपयोग किया गया। ताजमहल में दुनियाभर के कीमती पत्थरों को मार्बल इनले में शामिल किया गया।
अकबर ने दिया था बढ़ावा
आगरा एप्रूव्ड गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष शमसुद्दीन ने बताया कि सबसे पहले फतेहपुर सीकरी में मुगल बादशाह अकबर ने लाल पत्थर के साथ सफेद संगमरमर से इनले की कला को बढ़ावा दिया। उज्बेकिस्तान की नीले टाइल्स की कला के बाद यह पहला प्रयोग था, जो हर बादशाह के काल में प्रगति करता रहा। शाहजहां के काल में ताज में यह कला उत्कृष्ट रूप में नजर आई।
पर्यटन सीजन में दिखेगा असर
आगरा टूरिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन के प्रहलाद अग्रवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने हस्तशिल्प को जो प्रोत्साहन दिया है, वह अभूतपूर्व है। इसका असर आने वाले सीजन में जरूर नजर आएगा। अंतरराष्ट्रीय मंच पर पच्चीकारी की इस कला को जानने व समझने से लोग आकर्षित होंगे।
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