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पूरी रात प्रभु राजसिंहासन पर विराजे। जानकी जी और तीनों भाई भी साथ के आसनों पर सुशोभित रहे। लीला प्रेमियों ने रातभर जागकर उनके दर्शन किए। जैसे-जैसे रात ढलती गई, श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती गई। भोर में पांच बजे अयोध्या मैदान पूरी तरह श्रद्धालुओं से पट गया। इससे इतर रामनगर दुर्ग स्थित साल में एक बार खुलने वाले दक्षिणमुखी काले हनुमान जी के मंदिर में दर्शन के लिए रविवार को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है।
रविवार को भोर में साढ़े पांच बजे आरती के लिए रामनगर दुर्ग से अनंत नारायण सिंह राजपरिवार के सदस्यों व दरबारियों के साथ पैदल चलकर लीला स्थल अयोध्या मैदान पर पहुंचे। लीला प्रेमियों ने हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ उनका स्वागत किया। आरती के बाद पांचों स्वरूपों श्री राम, सीताजी, भरतजी, लक्ष्मणजी और शत्रुघ्नजी को सेवक अपने कंधों पर पैठकर गंगा दर्शन कराने के बाद बलुआ घाट स्थित धर्मशाला में वापस ले गए।
दुर्ग में रविवार की रात्रि में रामलीला के मुख्य पात्रों की कोट विदाई की परंपरा निभाई गई। काशीराज के प्रतिनिधि अनंत नारायण सिंह ने उनको दुर्ग में आमंत्रित कर उनका आतिथ्य सत्कार किया। हाथी गेट के पास आयोजित कोट विदाई की रस्म में उन्होंने पात्रों को आसन पर बैठा कर उनके चरण पखारे। स्वादिष्ट व्यंजन अपने हाथों से परोसा।
दुर्ग से वापस अयोध्या राम लीला मैदान पहुंचने पर रामायणियों ने उत्तरकांड के शेष बचे दोहों का गायन किया। उसकी समाप्ति के बाद मुख्य पात्रों की आरती के साथ रामलीला का औपचारिक समापन हो गया।
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