UP Congress President: प्रांतीय अध्यक्ष बनाने का कांग्रेस का यह दांव, क्या बदलेगा पार्टी की किस्मत!

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Congress appoints Brijlal Khabri as UP Congress President

Congress appoints Brijlal Khabri as UP Congress President
– फोटो : Agency (File Photo)

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राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर दलित चेहरे को आगे करने के बाद अब कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में भी दलित कार्ड खेल दिया है। पार्टी ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर बृजलाल खाबरी को नई जिम्मेदारी दी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस के दलित प्रदेश अध्यक्ष होने से मायावती का खिसका हुआ दलित वोट बैंक जो भाजपा में शामिल हो गया था, वह वापस कांग्रेस की ओर आ सकेगा। वहीं कांग्रेस ने पहली बार राज्य को उस स्तर पर बांटकर पार्टी को मजबूती देने की कोशिश की है जो आज तक जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने नहीं किया था। पार्टी ने राज्य को प्रांतीय स्तर पर बांटकर प्रांतीय अध्यक्षों की भी घोषणा की है।

पार्टी के नेताओं के मुताबिक उदयपुर के चिंतन शिविर के बाद ही यह तय हो गया था कि पार्टी माइक्रो लेवल पर प्रदेश में अपना संगठन मजबूत करेगी। योजना के मुताबिक जल्द ही कांग्रेस ग्रामीण और बूथ स्तर पर भी जातिगत समीकरणों और क्षेत्रीय समीकरणों को साधते हुए युवा नेतृत्व को जिम्मेदारी देगी।

कांशीराम के सहयोगी रह चुके हैं खाबरी

कांग्रेस पार्टी ने जातिगत समीकरणों के आधार पर खुलकर बल्लेबाजी करनी शुरू कर दी है। पहले पार्टी ने चुनावी समीकरण साधते हुए राष्ट्रीय स्तर पर मल्लिकार्जुन खड़गे को दलित चेहरे के तौर पर समर्थन देकर चुनावी मैदान में उतारा। उसके अगले दिन ही देश के सबसे बड़े राजनीतिक हलचल वाले प्रदेश उत्तर प्रदेश में दलित कार्ड खेल कर बसपा के कैडर माने जाने वाले और कांशीराम के सहयोगी रहे बुंदेलखंड के बड़े दलित नेता बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया कहते हैं कि बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने से सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की एक अलग छवि उभर कर सामने आएगी।

पुनिया कहते हैं कि खाबरी सिर्फ उत्तर प्रदेश के ही दलित चेहरे नहीं हैं, बल्कि उनका प्रभाव देश के सभी प्रदेशों के दलितों में बड़े चेहरे के तौर पर पहचाना जाता है। वे कहते हैं कि निश्चित तौर पर दलितों की इस समय अगुवाई करने वाला कोई भी दल देश में नहीं बचा है। उनका कहना है कि आजादी के बाद से ही दलित समुदाय का भरोसा कांग्रेस में था। बीच में एक वक्त आया जब बहुजन समाज पार्टी ने दलितों को लुभाते हुए उनको अपने खेमे में कर लिया, लेकिन वहां पर दलित समाज को कभी कुछ मिला ही नहीं। पीएल पुनिया कहते हैं कि भाजपा ने इस मौके को फायदा और दलितों को बड़ा वोट बैंक मानते हुए उन पर डोरे डालने शुरू कर दिए। चूंकि दलितों का कोई भी नेता नहीं था, नतीजतन बसपा से खिसक का यह पूरा वर्ग नेतृत्व विहीन हो गया। खाबरी के तौर पर सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में दलितों का एक बड़ा चेहरा सामने आया है। कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर खाबरी को जिम्मेदारी देकर अपने उस समुदाय को जोड़ने की कोशिश की है जिसका भरोसा शुरुआत से कांग्रेस में था।

बसपा से दलितों का मोह भंग!

राजनीतिक विश्लेषक भी कांग्रेस की इस रणनीतिक चाल को 2024 के लोकसभा चुनावों और उससे पहले होने वाले देश के अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनावों के नजरिए से ही देख रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक जीडी शुक्ला कहते हैं कि निश्चित तौर पर दलितों का भरोसा शुरुआती दौर से कांग्रेस में रहा। बीच में कुछ ऐसी स्थितियां रहीं, जिसमें बसपा ने दलितों के सबसे बड़े वर्ग की न सिर्फ नुमाइंदगी की बल्कि उनकी हिस्सेदारी के लिए आवाज भी बुलंद की। कांशीराम से लेकर मायावती तक ऐसे कई चेहरे सामने रहे जो दलितों की आवाज बुलंद करते रहे। शुक्ला कहते हैं कि बीते कुछ समय में दलितों का बहुजन समाज पार्टी से निश्चित तौर पर मोहभंग हुआ है। क्योंकि कांग्रेस राज्य में मजबूत स्थिति में नहीं थी, ऐसे में दलितों का वोट बैंक भाजपा की ओर शिफ्ट हुआ। अब जब कांग्रेस ने खाबरी जैसे बड़े दलित चेहरे को प्रदेश की कमान सौंपी है, तो निश्चित तौर पर कांग्रेस ने कुछ सोच करके ही ऐसा फैसला लिया होगा। वे कहते हैं कि अगर कांग्रेस मजबूती से अपने इसी फैसले के साथ उत्तर प्रदेश में राजनीतिक सक्रियता बढ़ाती है, तो निश्चित तौर पर आने वाले चुनाव में कुछ बदलाव देखने को मिल सकता है। हालांकि उनका कहना है कि कांग्रेस को अभी भी बहुत मेहनत करने की आवश्यकता है।

पहली बार बनाए प्रांतीय अध्यक्ष

धीरे-धीरे ही सही लेकिन कांग्रेस के उदयपुर मंथन में तय हुई योजनाओं को अमल में लाने की कोशिश शुरू हो गई है। पार्टी की तय योजना के मुताबिक राज्यों में माइक्रो स्तर पर संगठन को मजबूत करने का पूरा खाका तैयार करने की योजना बनाई गई थी। इसी की पहल करते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस में पहली बार प्रांतीय अध्यक्षों का चयन किया गया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया कहते हैं कि निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश में जो नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन हुआ है, वह आने वाले चुनावों में बड़ा असर डालने वाला है। उनका कहना है कि उदयपुर मंथन के दौरान जो भी योजनाएं बनी थी, उन्हें अब अमल में लाया जाना शुरू कर दिया है। कहते हैं कि राहुल गांधी जिस तरीक से केरल से लेकर कश्मीर तक की पदयात्रा कर रहे हैं, उससे लोगों में कांग्रेस के प्रति न सिर्फ भरोसा बन रहा है बल्कि लोगों का जुड़ाव भी हो रहा है। वह कहते हैं कि पार्टी ने पहली बार प्रांतीय स्तर पर अपने अध्यक्ष बनाए हैं। उनका कहना है कि ऐसा करके पार्टी मंडल और उनके अंतर्गत आने वाले जिलों और जिलों के साथ-साथ नगर ब्लॉक और ग्राम स्तर पर पार्टी को मजबूत करने का काम किया जाएगा। वो कहते हैं कि यह काम प्रांतीय अध्यक्ष के सुपर विजन में होगा और प्रांतीय अध्यक्ष की जिम्मेदारियां भी तय की जाएंगी।  

छह अलग-अलग जोन में बांटना बड़ा प्रयोग

उत्तर प्रदेश कांग्रेस से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है, जिस तरीके से उत्तर प्रदेश को छह अलग-अलग भागों में बांटा है वह पार्टी के लिए एक बड़ा प्रयोग है। उनका कहना है कि पूर्वांचल, अवध, प्रयाग, बुंदेलखंड, ब्रज और पश्चिम जोन में बांटने से उत्तर प्रदेश में पार्टी को हर स्तर पर मजबूती मिलेगी। कांग्रेस पार्टी ने सभी जोन के अध्यक्षों को भी जातिगत समीकरणों के आधार पर ही जिम्मेदारियां भी दी हैं। ताकि आने वाले चुनावों में जाति और क्षेत्रीयता के आधार पर पार्टी को मजबूती दिलाई जा सके। महराजगंज के फरेंदा विधायक विरेंद्र चौधरी को पूर्वांचल के ज़िलों का कार्यभार दिया गया है। ख़ासतौर पर फ़ैज़ाबाद, अंबेडकरनगर, बस्ती, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, कुशीनगर में कुर्मी जाति को जोड़ने का दारोमदार होगा। प्रयाग ज़ोन में पूर्व मंत्री अजय राय को ज़िम्मेदारी मिलेगी। भूमिहार जाति से आने वाले अजय राय के माध्यम से पार्टी ने इस समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत कर चुनावी मैदान में उतारने की योजना बनाई है। अवध और बुंदेलखंड ज़ोनों में  प्रांतीय अध्यक्षों की ज़िम्मेदारी पूर्व मंत्री नकुल दुबे और योगेश दीक्षित को दी गई है। दुबे के ऊपर ब्राह्मण वोटरों को अपने साथ रखने का दारोमदार होगा और बुंदेलखंड में योगेश दीक्षित के माध्यम से ब्राह्मण वोटों को अपने साथ जोड़ने की पूरी तैयारी की गई है। क्योंकि कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष खाबरी भी बुंदेलखंड से ही आते हैं, ऐसे में ब्राह्मण और दलितों के कांबिनेशन से चुनावी राह को आसान करने की कोशिश की गई है। जबकि पश्चिम में प्रांतीय अध्यक्ष के बतौर नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी को नियुक्त किया जाएगा। वहीं ब्रज में यादव लैंड से इटावा के नेता अनिल यादव को ज़िम्मेदारी दी जाएगी।

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राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर दलित चेहरे को आगे करने के बाद अब कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में भी दलित कार्ड खेल दिया है। पार्टी ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर बृजलाल खाबरी को नई जिम्मेदारी दी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस के दलित प्रदेश अध्यक्ष होने से मायावती का खिसका हुआ दलित वोट बैंक जो भाजपा में शामिल हो गया था, वह वापस कांग्रेस की ओर आ सकेगा। वहीं कांग्रेस ने पहली बार राज्य को उस स्तर पर बांटकर पार्टी को मजबूती देने की कोशिश की है जो आज तक जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने नहीं किया था। पार्टी ने राज्य को प्रांतीय स्तर पर बांटकर प्रांतीय अध्यक्षों की भी घोषणा की है।

पार्टी के नेताओं के मुताबिक उदयपुर के चिंतन शिविर के बाद ही यह तय हो गया था कि पार्टी माइक्रो लेवल पर प्रदेश में अपना संगठन मजबूत करेगी। योजना के मुताबिक जल्द ही कांग्रेस ग्रामीण और बूथ स्तर पर भी जातिगत समीकरणों और क्षेत्रीय समीकरणों को साधते हुए युवा नेतृत्व को जिम्मेदारी देगी।

कांशीराम के सहयोगी रह चुके हैं खाबरी

कांग्रेस पार्टी ने जातिगत समीकरणों के आधार पर खुलकर बल्लेबाजी करनी शुरू कर दी है। पहले पार्टी ने चुनावी समीकरण साधते हुए राष्ट्रीय स्तर पर मल्लिकार्जुन खड़गे को दलित चेहरे के तौर पर समर्थन देकर चुनावी मैदान में उतारा। उसके अगले दिन ही देश के सबसे बड़े राजनीतिक हलचल वाले प्रदेश उत्तर प्रदेश में दलित कार्ड खेल कर बसपा के कैडर माने जाने वाले और कांशीराम के सहयोगी रहे बुंदेलखंड के बड़े दलित नेता बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया कहते हैं कि बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने से सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की एक अलग छवि उभर कर सामने आएगी।

पुनिया कहते हैं कि खाबरी सिर्फ उत्तर प्रदेश के ही दलित चेहरे नहीं हैं, बल्कि उनका प्रभाव देश के सभी प्रदेशों के दलितों में बड़े चेहरे के तौर पर पहचाना जाता है। वे कहते हैं कि निश्चित तौर पर दलितों की इस समय अगुवाई करने वाला कोई भी दल देश में नहीं बचा है। उनका कहना है कि आजादी के बाद से ही दलित समुदाय का भरोसा कांग्रेस में था। बीच में एक वक्त आया जब बहुजन समाज पार्टी ने दलितों को लुभाते हुए उनको अपने खेमे में कर लिया, लेकिन वहां पर दलित समाज को कभी कुछ मिला ही नहीं। पीएल पुनिया कहते हैं कि भाजपा ने इस मौके को फायदा और दलितों को बड़ा वोट बैंक मानते हुए उन पर डोरे डालने शुरू कर दिए। चूंकि दलितों का कोई भी नेता नहीं था, नतीजतन बसपा से खिसक का यह पूरा वर्ग नेतृत्व विहीन हो गया। खाबरी के तौर पर सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में दलितों का एक बड़ा चेहरा सामने आया है। कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर खाबरी को जिम्मेदारी देकर अपने उस समुदाय को जोड़ने की कोशिश की है जिसका भरोसा शुरुआत से कांग्रेस में था।

बसपा से दलितों का मोह भंग!

राजनीतिक विश्लेषक भी कांग्रेस की इस रणनीतिक चाल को 2024 के लोकसभा चुनावों और उससे पहले होने वाले देश के अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनावों के नजरिए से ही देख रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक जीडी शुक्ला कहते हैं कि निश्चित तौर पर दलितों का भरोसा शुरुआती दौर से कांग्रेस में रहा। बीच में कुछ ऐसी स्थितियां रहीं, जिसमें बसपा ने दलितों के सबसे बड़े वर्ग की न सिर्फ नुमाइंदगी की बल्कि उनकी हिस्सेदारी के लिए आवाज भी बुलंद की। कांशीराम से लेकर मायावती तक ऐसे कई चेहरे सामने रहे जो दलितों की आवाज बुलंद करते रहे। शुक्ला कहते हैं कि बीते कुछ समय में दलितों का बहुजन समाज पार्टी से निश्चित तौर पर मोहभंग हुआ है। क्योंकि कांग्रेस राज्य में मजबूत स्थिति में नहीं थी, ऐसे में दलितों का वोट बैंक भाजपा की ओर शिफ्ट हुआ। अब जब कांग्रेस ने खाबरी जैसे बड़े दलित चेहरे को प्रदेश की कमान सौंपी है, तो निश्चित तौर पर कांग्रेस ने कुछ सोच करके ही ऐसा फैसला लिया होगा। वे कहते हैं कि अगर कांग्रेस मजबूती से अपने इसी फैसले के साथ उत्तर प्रदेश में राजनीतिक सक्रियता बढ़ाती है, तो निश्चित तौर पर आने वाले चुनाव में कुछ बदलाव देखने को मिल सकता है। हालांकि उनका कहना है कि कांग्रेस को अभी भी बहुत मेहनत करने की आवश्यकता है।

पहली बार बनाए प्रांतीय अध्यक्ष

धीरे-धीरे ही सही लेकिन कांग्रेस के उदयपुर मंथन में तय हुई योजनाओं को अमल में लाने की कोशिश शुरू हो गई है। पार्टी की तय योजना के मुताबिक राज्यों में माइक्रो स्तर पर संगठन को मजबूत करने का पूरा खाका तैयार करने की योजना बनाई गई थी। इसी की पहल करते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस में पहली बार प्रांतीय अध्यक्षों का चयन किया गया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया कहते हैं कि निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश में जो नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन हुआ है, वह आने वाले चुनावों में बड़ा असर डालने वाला है। उनका कहना है कि उदयपुर मंथन के दौरान जो भी योजनाएं बनी थी, उन्हें अब अमल में लाया जाना शुरू कर दिया है। कहते हैं कि राहुल गांधी जिस तरीक से केरल से लेकर कश्मीर तक की पदयात्रा कर रहे हैं, उससे लोगों में कांग्रेस के प्रति न सिर्फ भरोसा बन रहा है बल्कि लोगों का जुड़ाव भी हो रहा है। वह कहते हैं कि पार्टी ने पहली बार प्रांतीय स्तर पर अपने अध्यक्ष बनाए हैं। उनका कहना है कि ऐसा करके पार्टी मंडल और उनके अंतर्गत आने वाले जिलों और जिलों के साथ-साथ नगर ब्लॉक और ग्राम स्तर पर पार्टी को मजबूत करने का काम किया जाएगा। वो कहते हैं कि यह काम प्रांतीय अध्यक्ष के सुपर विजन में होगा और प्रांतीय अध्यक्ष की जिम्मेदारियां भी तय की जाएंगी।  

छह अलग-अलग जोन में बांटना बड़ा प्रयोग

उत्तर प्रदेश कांग्रेस से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है, जिस तरीके से उत्तर प्रदेश को छह अलग-अलग भागों में बांटा है वह पार्टी के लिए एक बड़ा प्रयोग है। उनका कहना है कि पूर्वांचल, अवध, प्रयाग, बुंदेलखंड, ब्रज और पश्चिम जोन में बांटने से उत्तर प्रदेश में पार्टी को हर स्तर पर मजबूती मिलेगी। कांग्रेस पार्टी ने सभी जोन के अध्यक्षों को भी जातिगत समीकरणों के आधार पर ही जिम्मेदारियां भी दी हैं। ताकि आने वाले चुनावों में जाति और क्षेत्रीयता के आधार पर पार्टी को मजबूती दिलाई जा सके। महराजगंज के फरेंदा विधायक विरेंद्र चौधरी को पूर्वांचल के ज़िलों का कार्यभार दिया गया है। ख़ासतौर पर फ़ैज़ाबाद, अंबेडकरनगर, बस्ती, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, कुशीनगर में कुर्मी जाति को जोड़ने का दारोमदार होगा। प्रयाग ज़ोन में पूर्व मंत्री अजय राय को ज़िम्मेदारी मिलेगी। भूमिहार जाति से आने वाले अजय राय के माध्यम से पार्टी ने इस समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत कर चुनावी मैदान में उतारने की योजना बनाई है। अवध और बुंदेलखंड ज़ोनों में  प्रांतीय अध्यक्षों की ज़िम्मेदारी पूर्व मंत्री नकुल दुबे और योगेश दीक्षित को दी गई है। दुबे के ऊपर ब्राह्मण वोटरों को अपने साथ रखने का दारोमदार होगा और बुंदेलखंड में योगेश दीक्षित के माध्यम से ब्राह्मण वोटों को अपने साथ जोड़ने की पूरी तैयारी की गई है। क्योंकि कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष खाबरी भी बुंदेलखंड से ही आते हैं, ऐसे में ब्राह्मण और दलितों के कांबिनेशन से चुनावी राह को आसान करने की कोशिश की गई है। जबकि पश्चिम में प्रांतीय अध्यक्ष के बतौर नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी को नियुक्त किया जाएगा। वहीं ब्रज में यादव लैंड से इटावा के नेता अनिल यादव को ज़िम्मेदारी दी जाएगी।



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