UP Election 2022: इटावा में बागियों ने कठिन की सपा की राह, बदलनी पड़ेगी रणनीति, शिवपाल के चहेते रघुराज ने पाला बदला

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सार

इटावा जिले में भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से सपा के कई दिग्गजों को शामिल किया है, उससे जातीय गणित काफी उलझ गया है। यदि ये जातीय नेता अपनी जाति का वोट ट्रांसफर कराने में सफल हुए तो सपा अपने ही गढ़ में घिरती नजर आएगी।

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मैनपुरी-इटावा और आसपास के जिलों को समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। इन जिलों में समाजवादी पार्टी के न सिर्फ यादव बल्कि अन्य जातियों के लोग भी इसके वोटर रहे हैं। इस वजह से समाजवादी पार्टी इस क्षेत्र में लगातार अच्छा प्रदर्शन करती आई है, लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के बागी हुए नेताओं ने इटावा जिले में सपा की राहें कठिन कर दी हैं।

सपा को अब यहां जीत हासिल करने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ेगा। इटावा जिले में तीन विधानसभा सीटें हैं, इसमें जसवंतनगर से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव बहुत पहले ही समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी घोषित कर दिए गए थे।

इसके बाद स्वामी प्रसाद मौर्य के भाजपा छोड़ने के बाद यहां से शिवपाल सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले मनीष पतरे ने भी भाजपा छोड़ सपा का दामन थाम लिया था। मनीष के भाजपा छोड़ने के बाद लग रहा था कि सपा की राहें आसान हो गईं हैं लेकिन इटावा सदर और भरथना सीट पर टिकट को लेकर काफी जद्दोजहद चल रही थी।
यहां से प्रसपा के महामंत्री रघुराज सिंह शाक्य और पिछला विधानसभा चुनाव लड़े कुलीदप गुप्ता संटू, हरिकिशोर तिवारी और शिवप्रताप राजपूत टिकट के बड़े दावेदारों में माने जा रहे थे। भरथना में भी टिकट के कई दावेदार थे, लेकिन भरथना में बसपा से आए राघवेंद्र कुमार सिंह को समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी बनाया, जबकि इसी सीट पर 2017 में चुनाव लड़ने वाले कमलेश कठेरिया भी दावेदार थे।

कमलेश ने पिछले चुनाव में भाजपा की विजयी उम्मीदवार सावित्री कठेरिया को कड़ी टक्कर दी थी। इटावा सदर में कई मजबूत दावेदारों के बावजूद समाजवादी पार्टी ने पूर्व सांसद रामसिंह शाक्य के बेटे सर्वेश शाक्य को टिकट दिया है।

इटावा सदर सीट से सर्वेश शाक्य को टिकट मिलने के बाद बगावत के सुर मुखर हो गए। सबसे पहले बगावत का झंडा पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष कुलदीप गुप्ता संटू ने बुलंद किया। उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी ने सबसे निष्क्रिय नेता को टिकट दिया गया है।

उन्होंने समाजवादी पार्टी छोड़ दी और बसपा के हाथी पर सवार हो गए। बहुजन समाज पार्टी ने उन्हें अगले दिन ही इटावा सदर से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। बसपा के इस कदम से इटावा सदर में जो मुकाबला सीधा दिखाई दे रहा था, वह त्रिकोणीय हो गया।

 
इसके बाद भाजपा ने जातीय छत्रपों को समेटने का पैंतरा खेलना शुरू किया और एक के बाद एक सपा के कई नेता भगवाधारी हो गए। शिवप्रताप राजपूत, कृष्णमुरारी गुप्ता और सबसे अहम इटावा से दो बार सांसद और एक बार विधायक रहे रघुराज सिंह शाक्य भी भाजपा में शामिल हो गए। इसके अलावा कांग्रेस के नेता एडवोकेट प्रेमशंकर शर्मा ने भी भाजपा का दामन थाम लिया।

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उलझे जातीय गणित, सपा की नई रणनीति पर नजर
इटावा जिले में भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से सपा के कई दिग्गजों को शामिल किया है, उससे जातीय गणित काफी उलझ गया है। यदि ये जातीय नेता अपनी जाति का वोट ट्रांसफर कराने में सफल हुए तो सपा अपने ही गढ़ में घिरती नजर आएगी। जिले में लोधी और शाक्य वोट काफी निर्णायक स्थिति में माना जाता है।

 
इसमें इसमें रघुराज शाक्य और शिवप्रताप राजपूत की ठीक-ठाक पैठ मानी जाती है। भाजपा ने इन नेताओं को अपने खेमे में करके एक मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने का संदेश तो दिया है, हालांकि अभी मतदान में लगभग दो हफ्ते का समय है, ऐसी स्थिति में अभी सपा की रणनीति पर लोगों की नजरें लगीं हुई हैं।

सामने आया शिवपाल सिंह का दर्द
जसवंतनगर सीट पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सपा प्रत्याशी शिवपाल सिंह यादव जसवंतनगर में अपनी सीट जीतने के लिए क्षेत्र में लगातार संपर्क कर रहे हैं। वे दावा भी कर रहे हैं कि इस बार उनकी रिकार्ड जीत होगी। वे ये कहना भी नहीं भूलते कि इस बार करहल और जसवंतनगर में जीत का रिकार्ड बनाने का कंपटीशन है।

 
लेकिन चुनाव प्रचार का दौरान उनके मन की कसक भी बाहर आ जाती है। सोमवार को वे जसवंतनगर क्षेत्र के मलाजनी में एक होटल में आयोजित कार्यक्रम में प्रसपा और सपा के कार्यकर्ताओं के बीच थे। उन्होंने इस दौरान कहा कि गठबंधन से पहले उन्होंने सौ सीटें मांगीं थीं।

उम्मीदवार भी घोषित कर दिए थे। उसके बाद उनसे कहा गया कि बहुत अधिक सीटें हैं, तो उन्होंने 65 दीं, बात में 45 कर दीं लेकिन सीट मिली सिर्फ एक। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद उन्होंने अखिलेश यादव को नेता मान लिया है, इसलिए आप लोग यहां से भारी मतों से जिताएं।

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मैनपुरी-इटावा और आसपास के जिलों को समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। इन जिलों में समाजवादी पार्टी के न सिर्फ यादव बल्कि अन्य जातियों के लोग भी इसके वोटर रहे हैं। इस वजह से समाजवादी पार्टी इस क्षेत्र में लगातार अच्छा प्रदर्शन करती आई है, लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के बागी हुए नेताओं ने इटावा जिले में सपा की राहें कठिन कर दी हैं।

सपा को अब यहां जीत हासिल करने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ेगा। इटावा जिले में तीन विधानसभा सीटें हैं, इसमें जसवंतनगर से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव बहुत पहले ही समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी घोषित कर दिए गए थे।

इसके बाद स्वामी प्रसाद मौर्य के भाजपा छोड़ने के बाद यहां से शिवपाल सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले मनीष पतरे ने भी भाजपा छोड़ सपा का दामन थाम लिया था। मनीष के भाजपा छोड़ने के बाद लग रहा था कि सपा की राहें आसान हो गईं हैं लेकिन इटावा सदर और भरथना सीट पर टिकट को लेकर काफी जद्दोजहद चल रही थी।

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