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सार
सपा ने मैनपुरी और करहल यादव बाहुल्य क्षेत्र के चलते हर बार यादव प्रत्याशी ही मैदान में उतारा। अब तक के चुनावों में करहल सीट पर केवल एक बार वर्ष 2002 में सपा को हार का सामना करना पड़ा।
विधानसभा के चुनावी मैदान में सपा ने हर बार मैनपुरी की चारों सीटों पर जातिगत चक्रव्यूह की रचना की। इसी चक्रव्यूह का नतीजा रहा कि अधिकांश सीटों पर जहां सपा की बादशाहत लगातार कायम रही। वहीं अन्य सीटों पर भी हर बार बाजी पलटती रही। इस बार भी सपा इसी चक्रव्यूह के सहारे बिसात बिछा चुकी है। ये व्यूह रचना कितनी कारगर साबित होगी यह परिणाम आने पर पता चलेगा।
मैनपुरी जिले में कुल चार विधानसभा सीटें हैं, इसमें मैनपुरी सदर, भोगांव, किशनी और करहल शामिल हैं। मैनपुरी और करहल सीटें जहां यादव बाहुल्य हैं तो वहीं भोगांव सीट शाक्य और किशनी सीट अनुसूचित जाति बाहुल्य है। 1992 में मुलायम सिंह यादव ने अपनी पार्टी बनाई, जिसे उन्होंने समाजवादी पार्टी नाम दिया। पार्टी अपनी थी तो अपनी कर्मभूमि में परचम लहराने से मुलायम सिंह यादव पीछे नहीं रहे।
पहली बार में उन्होंने तीन सीटें सपा के खाते में शामिल करा लीं। इसी चुनाव से उन्होंने मैनपुरी के सियासी कुरुक्षेत्र की पूरी किलेबंदी भांप ली थी। इसके बाद उन्होंने हर चुनाव में जीत हासिल करने के लिए जातिगत चक्रव्यूह की रचना की और मैनपुरी की सीटों पर अपनी बादशाहत कायम रखी।
मैनपुरी-करहल से यादव प्रत्याशी ही उतारा
मैनपुरी और करहल में हर बार यादव बाहुल्य क्षेत्र के चलते यादव प्रत्याशी ही सपा ने मैदान में उतारा। इसका फायदा भी सपा को मिला। अब तक के चुनावों में करहल सीट पर केवल एक बार वर्ष 2002 में सपा को हार का सामना करना पड़ा। वहीं मैनपुरी सीट पर हार-जीत का सिलसिला जारी रहा। भोगांव की अगर बात करें तो यहां शाक्य मतदाताओं का दबदबा है। ऐसे में यहां भी सपा ने शाक्य प्रत्याशी पर ही भरोसा जताया। इस बार भी सपा से आलोक शाक्य मैदान में हैं।
केवल 1993 में भोगांव सीट से उपदेश सिंह चौहान को सपा ने टिकट दिया था, और वह जीतकर भी आए थे। अब सपा की विरासत मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव के हाथ में है। वे भी पिता की ही राजनीतिक युद्धनीति पर कायम हैं। अब देखना ये है कि इस बार ये नीति जीत दिलाने में कितनी सहायक साबित होती है।
सुरक्षित सीट किशनी पर बनी रही बादशाहत
चुनाव आयोग द्वारा किशनी विधानसभा सीट को सुरक्षित घोषित किया गया है। सपा के गठन के बाद कुल छह बार अब तक चुनाव हुए हैं, जबकि सातवीं बार चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। ऐसे में यहां अनुसूचित जाति के प्रत्याशी पर दांव लगाकर सपा ने आज तक अपनी बादशाहत कायम रखी हुई है। सपा को यहां कभी भी हार का मुंह नहीं देखना पड़ा है।
विधानसभा क्षेत्र मैनपुरी में सपा के प्रत्याशी
- 1993- कुंवर सत्येन्द्र सिंह यादव (द्वितीय)
- 1996- मानिकचंद यादव (विजेता)
- 2002- मानिकचंद यादव (द्वितीय)
- 2007-कालीचरन यादव (द्वितीय)
- 2012-राजकुमार यादव (विजेता)
- 2017-राजकुमार यादव (विजेता)
- 2022-राजकुमार यादव (प्रत्याशी)
विधानसभा क्षेत्र करहल में सपा के प्रत्याशी
- 1993- बाबूराम यादव (विजेता)
- 1996- बाबूराम यादव (विजेता)
- 2002- अनिल यादव यादव (द्वितीय)
- 2007-सोबरन सिंह यादव (विजेता)
- 2012-सोबरन सिंह यादव (विजेता)
- 2017-सोबरन सिंह यादव (विजेता)
- 2022-अखिलेश यादव (प्रत्याशी)
विधानसभा क्षेत्र भोगांव में सपा के प्रत्याशी
- 1993- उपदेश सिंह चौहान (सपा)
- 1996- रामऔतार शाक्य (विजेता)
- 2002- आलोक शाक्य (विजेता)
- 2007- आलोक शाक्य (विजेता)
- 2012- आलोक शाक्य (विजेता)
- 2017- आलोक शाक्य (द्वितीय)
- 2022- आलोक शाक्य (प्रत्याशी)
विधानसभा क्षेत्र किशनी में सपा के प्रत्याशी
- 1993- रामेश्वर दयाल बाल्मीकि (विजेता)
- 1996- रामेश्वर दयाल बाल्मीकि (विजेता)
- 2002- संध्या कठेरिया (विजेता)
- 2007- संध्या कठेरिया (विजेता)
- 2012- बृजेश कठेरिया (विजेता)
- 2017- बृजेश कठेरिया (विजेता)
- 2022- बृजेश कठेरिया (प्रत्याशी)
विस्तार
विधानसभा के चुनावी मैदान में सपा ने हर बार मैनपुरी की चारों सीटों पर जातिगत चक्रव्यूह की रचना की। इसी चक्रव्यूह का नतीजा रहा कि अधिकांश सीटों पर जहां सपा की बादशाहत लगातार कायम रही। वहीं अन्य सीटों पर भी हर बार बाजी पलटती रही। इस बार भी सपा इसी चक्रव्यूह के सहारे बिसात बिछा चुकी है। ये व्यूह रचना कितनी कारगर साबित होगी यह परिणाम आने पर पता चलेगा।
मैनपुरी जिले में कुल चार विधानसभा सीटें हैं, इसमें मैनपुरी सदर, भोगांव, किशनी और करहल शामिल हैं। मैनपुरी और करहल सीटें जहां यादव बाहुल्य हैं तो वहीं भोगांव सीट शाक्य और किशनी सीट अनुसूचित जाति बाहुल्य है। 1992 में मुलायम सिंह यादव ने अपनी पार्टी बनाई, जिसे उन्होंने समाजवादी पार्टी नाम दिया। पार्टी अपनी थी तो अपनी कर्मभूमि में परचम लहराने से मुलायम सिंह यादव पीछे नहीं रहे।
पहली बार में उन्होंने तीन सीटें सपा के खाते में शामिल करा लीं। इसी चुनाव से उन्होंने मैनपुरी के सियासी कुरुक्षेत्र की पूरी किलेबंदी भांप ली थी। इसके बाद उन्होंने हर चुनाव में जीत हासिल करने के लिए जातिगत चक्रव्यूह की रचना की और मैनपुरी की सीटों पर अपनी बादशाहत कायम रखी।
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