ये बदलते चंबल अंचल की तस्वीर है कि अब यहां मतदान के दौरान गन नहीं चलती बल्कि अब मशीन बोलती है। यहां के लोगों के सिर पर कभी बंदूकों का साया हर वक्त रहता था लेकिन अब यहां खुलकर मतदान होता है। अब यहां नई फिजा और नई हवा है।
रविवार को जब यहां मतदान शुरू होगा तो लोग अपने पसंद के उम्मीदवार को बेखौफ होकर वोट दे सकेंगे। अब यहां के वोटरों पर न तो किसी निर्भय का आदेश चलता है और न ही किसी जगजीवन का जोर। इटावा जिले की भरथना सीट का अधिकांश इलाका इस क्षेत्र में आता है। इसके अलावा इटावा सदर, जालौन जिले की माधौगढ़ सीट और औरेया जिले की भी सीटें प्रभावित होती रहीं हैं।
चंबल के दुर्गम बीहड़ों में बसे ग्रामीण अब दुर्दांत डकैतों की गोली के खौफ में मतदान नहीं करते हैं। अपनी मर्जी से प्यार की बोली बोलने वाले उम्मीदवार के पक्ष में मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। डकैतों के सफाए के बाद सदियों से कायम चंबल के मतदाताओं पर डकैतों द्वारा फरमान जारी करने की कहानियां अब इतिहास बन गईं हैं।
यहां से बंदूकों का खौफ हटे बहुत अधिक समय नहीं बीता है। लगभग एक दशक पूर्व तक बीहड़ क्षेत्र लगभग सवा लाख मतदाताओं पर दुर्दांत डकैत अपने पसंदीदा दल के लिए अपनी मर्जी के मुताबिक ग्रामीणों को मतदान के लिए मजबूर कर देते थे। रात के समय गांव में एक जगह इकट्ठा करके सभी गांव वालों को मतदान करने का फरमान जारी करते थे। गोली के खौफ में बेबस ग्रामीण डाकुओं की मर्जी के मुताबिक ही अपनी मोहर लगाते थे।
बीहड़ के अनेठा, जाहरपुरा, अजीत की गढ़िया, विडोरी, पहलन, पथर्रा, भरेह, हरौली, धर्मपुरा, कांयछी, सिंडोस, चौरेला, खोडन, कुर्छा, पसिया, सदूपुरा, बदनपुरा, टिटावली आदि सैकड़ों गांवों के ग्रामीणों पर हमेशा डर का साया रहता था। डाकू लालाराम, श्रीराम, मलखान सिंह, राम आसरे तिवारी उर्फ फक्कड़, निर्भय गुर्जर, सलीम गुर्जर, अरविंद गुर्जर, जगजीवन परिहा का खौफ यहां के लोगों के सिर चढ़कर बोलता था। किसी की मजाल नहीं थी कि इनके आदेश की कोई नाफरमानी कर दे।
डकैतों की बिना मर्जी के कोई भी व्यक्ति साहस नहीं जुटा पाता था कि मैं मतदान करूं या ना करूं। चंबल बीहड़ी बाशिंदे डाकुओं की बिना मर्जी के चुनाव लड़ने का साहस या वोट डालने की जुर्रत नहीं करते थे। कैलाश नारायण मिश्रा, भगत सिंह गुर्जर आदि बताते हैं कि अपने-अपने इलाकों में डाकू मतदान की रात फरमान जारी करते थे।
डाकुओं के फरमान जारी होने का हम लोगों को इंतजार रहता था कि वोट कहां करना है। दरवाजे पर वोट मांगने आने वालों को हम लोग कोई तवज्जो नहीं देते थे। किसी भी पार्टी का कोई भी कितना भी नजदीकी व्यक्ति क्यो ना हो डाकुओं के बिना मर्जी के हम लोग वोट नहीं डाल पाते थे। अगर हमारे क्षेत्र का प्रत्याशी हार गया तो क्षेत्रीय लोगों को डाकुओं का कहर झेलना पड़ता था जिसके चलते गांव डाकू हत्या से लेकर कई घटनाओं को अंजाम दिया करते थे।
दस्यु सुंदरियों का खौफ
बीहड़ अंचल में सिर्फ पुरुष डकैतों का ही खौफ नहीं रहा है, बल्कि चंबल और यमुना के बीहड़ पर कई दस्यु संदरियों ने भी अपना राज चलाया है। इन महिला डकैतों में सबसे मशहूर बैंडेट क्वीन फूलनदेवी का नाम सबसे आगे आता है। इसके अलावा लवली पांडे, मुन्नी पांडे, सीमा परिहार, सरला जाटव और कुसुमा नाइन के आदेश की अव्हेलना करने की इस अंचल के लोगों की हिम्मत नहीं थी। इनके आदेशों से न सिर्फ इटावा जिले की भरथना सीट बल्कि जालौन जिले की माधौगढ़, कालपी सीट, औरेया की कुछ सीटें और मध्यप्रदेश के भिण्ड और मुरैना जिले तक इनकी धमक रहती थी।
नेता नहीं मांगते थे वोट
बीहड़ी क्षेत्र के गांवों में नेता सीधे वोट मांगने नहीं आते थे। बल्कि उस दौर में उनके लिए बेहद सहूलियत होती थी। ये लोग डकैतों से संपर्क कर उन्हें मोटी रकम देकर यहां के एकमुश्त वोट खरीद लेते थे। चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र का विकास भी डाकुओं की मर्जी से होता था। डाकुओं के सफाए के बाद बीहड़ी क्षेत्र की जनता में अब बंदूक का खौफ खत्म हो गया है। अब यहां लोग अपनी मर्जी के मुताबिक मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। मतदान को प्रभावित करने वाले खूंखार डाकू के भगवान के पास पहुंच जाने के बाद अब बीहड़ी क्षेत्र में निर्भय होकर मतदान हो रहा है।
डकैत रखते थे आधुनिक हथियार
चंबल क्षेत्र में अपना फरमान चलाने वाले कई डाकुओं के पास बेहद आधुनिक हथियार हुआ करते थे। इनके हथियार बेहद चर्चा में रहे हैं। इसमें जगजीवन सिंह परिहार के पास एके-47 जैसे स्वचालित हथियार हुआ करते थे। आधुनिक हथियारों का शौकीन निर्भय गुर्जर को भी माना जाता है। उसके पास भी कई ऑटोमैटिक और स्वचालित हथियार हुआ करते थे। दस्यु सुंदरियां भी अपने हथियार प्रेम के लिए मशहूर रहीं हैं।
ग्वालियर जेल बनती रही इनका आसरा
चंबल में हुक्म चलाने वाले ये डांकू अब कहां हैं, ये जिज्ञासा सहज ही उठती है। इसमें कई तो बहुत पुराने नाम हैं, जिसमें लालाराम, श्रीराम अब इस दुनिया में नहीं हैं। फूलन देवी ने भिण्ड में गिरोह सहित सरेंडर किया था। उसके बाद वे ग्वालियर जेल में रहीं। बाद में फूलन देवी मिर्जापुर से समाजवादी के टिकट पर चुनाव लड़कर सांसद बनीं। बाद में दिल्ली में उनकी शेर सिंह राणा ने हत्या कर दी। हथियारों के शौकीन रहे जगजीवन सिंह परिहार मध्यप्रदेश की पुलिस के साथ एनकाउंटर में मारा गया था। सलीम गुर्जर और निर्भय गुर्जर भी पुलिस मुठभेड़ में मारे गए। रामआसरे तिवारी उर्फ फक्कड़, मलखान सिंह, कुसुमा नाइन, सीमा परिहार, अरविंद गुर्जर, रामवीर सिंह गुर्जर और उसकी साथी महिला डकैतों ने अलग-अलग समय पर मध्यप्रदेश पुलिस के सामने सरेंडर किया और ग्वालियर जेल में अपने दिन बिताए। मलखान सिंह फिलहाल ग्वालियर में निजी आवास में रह रहे हैं। सीमा परिहार औरेया जिले के दिबियापुर में रह रही हैं।