नगर निकाय चुनाव में हो रही देरी को देखते हुए शासन ने निकायों के संचालन की व्यवस्था प्रशासकों में हाथ में देने का फैसला किया है। प्रमुख सचिव नगर विकास अमृत अभिजात ने इस संबंध में शासनादेश जारी कर दिया है।
शासनादेश में कहा गया है कि 12 दिसंबर के बाद जिन निकायों का कार्यकाल खत्म होता जा रहा है उन निकायों के प्रबंधन की व्यवस्था नगर आयुक्त या अधिशासी अधिकारी संभालेंगे। बता दें कि नगर निकाय निगम अधिनियम के मुताबिक निकायों के गठन के बाद महापौर अध्यक्ष का कार्यकाल 5 साल का होता है। चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद निकायों के कार्यकाल की गणना बोर्ड की पहली बैठक के दिन से होती है।
इस प्रकार तमाम ऐसे निकाय है। जिनका कार्यकाल 12 दिसंबर से ही खत्म होना शुरू हो चुका है। उधर निकाय चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने और नगर निकायों के गठन होने में अभी कम से कम एक महीने से अधिक का समय लग सकता है। ऐसे में नगर निकायों का कार्य प्रभावित न होने पाए इसलिए शासन ने सभी डीएम को उन निकायों प्रशासक नियुक्त करने के निर्देश दिए हैं, जिन निकायों में महापौर या अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म हो गया है।
वहीं, मंगलवार को ही इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने चुनाव संबंधी अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी है। निकाय चुनाव के लिए आरक्षण की घोषणा की जा चुकी है पर इस पर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने पर कोर्ट मामले की सुनवाई कर रहा है। मामले पर बुधवार को भी सुनवाई होगी। मामले में निर्णय आने के बाद नगर निकाय चुनाव को लेकर अधिसूचना जारी की जाएगी।
महापौर और पार्षदों केपांच साल के कार्यकाल की गणना कब से की जाएगी यह तय हो गया है। कार्यकाल की गणना शपथ ग्रहण के बाद होने वाली पहली सदन की बैठक से की जाएगी। इसको लेकर प्रमुख सचिव नगर विकास अमृत अभिजात की ओर से शासनादेश भी जारी कर दिया गया है। शासनादेश के हिसाब से महापौर और पार्षदों का कार्यकाल 19 जनवरी तक रहेगा। यदि इससे पहले नगर निगम चुनाव संपन्न हो गया तो ठीक वरना 20 जनवरी से प्रशासक काल लागू हो जाएगा और नगर निगम केसभी अधिकार (नगर निगम सदन और कार्यकारिणी में लिए जाने वाले फैसलों का अधिकार) नगर आयुक्त को मिल जाएंगे।
पिछला नगर निगम चुनाव जीत हार का परिणाम एक दिसंबर 2017 को आया था। उसके बाद 12 दिसंबर 2017 को शपथ ग्रहण हुआ था। शपथ ग्रहण केबाद 19 जनवरी को नगर निगम सदन की पहली बैठक हुई थी। लखनऊ की तरह प्रदेश भर में सभी जगह शपथ तो 12 दिसंबर 2017 को ही हुई थी लेकिन उसके बाद सदन की पहली बैठक सभी जनवरी 2018 में अलग-अलग तिथियों में हुईं। ऐसे में पांच साल के कार्यकाल की गणना कब से की जाए यह तय नहीं हो पा रहा था। जिसको लेकर अब शासन ने तय कर दिया है कि कार्यकाल की गणना शपथ ग्रहण के बाद होने वाली सदन की पहली बैठक से की जाएगी।
20 जनवरी से लागू होगा प्रशासक काल प्रमुख सचिव नगर विकास द्वारा जारी शासनादेश के तहत महापौर व पार्षदों का कार्यकाल समाप्त होने से पहले यदि चुनाव नहीं हो पाता है तो नगर आयुक्त को सभी अधिकार मिल जाएंगे। ऐसे में दस लाख से अधिक लागत वाले विकास कार्यों की मंजूरी भी नगर आयुक्त दे सकेंगे। अभी दस लाख से अधिक के कार्यों को मंजूरी लिए कार्यकारिणी और सदन में रखा जाता है। जहां से मंजूरी मिलने के बाद आगे काम होता है।
विस्तार
नगर निकाय चुनाव में हो रही देरी को देखते हुए शासन ने निकायों के संचालन की व्यवस्था प्रशासकों में हाथ में देने का फैसला किया है। प्रमुख सचिव नगर विकास अमृत अभिजात ने इस संबंध में शासनादेश जारी कर दिया है।
शासनादेश में कहा गया है कि 12 दिसंबर के बाद जिन निकायों का कार्यकाल खत्म होता जा रहा है उन निकायों के प्रबंधन की व्यवस्था नगर आयुक्त या अधिशासी अधिकारी संभालेंगे। बता दें कि नगर निकाय निगम अधिनियम के मुताबिक निकायों के गठन के बाद महापौर अध्यक्ष का कार्यकाल 5 साल का होता है। चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद निकायों के कार्यकाल की गणना बोर्ड की पहली बैठक के दिन से होती है।
इस प्रकार तमाम ऐसे निकाय है। जिनका कार्यकाल 12 दिसंबर से ही खत्म होना शुरू हो चुका है। उधर निकाय चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने और नगर निकायों के गठन होने में अभी कम से कम एक महीने से अधिक का समय लग सकता है। ऐसे में नगर निकायों का कार्य प्रभावित न होने पाए इसलिए शासन ने सभी डीएम को उन निकायों प्रशासक नियुक्त करने के निर्देश दिए हैं, जिन निकायों में महापौर या अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म हो गया है।
वहीं, मंगलवार को ही इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने चुनाव संबंधी अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी है। निकाय चुनाव के लिए आरक्षण की घोषणा की जा चुकी है पर इस पर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने पर कोर्ट मामले की सुनवाई कर रहा है। मामले पर बुधवार को भी सुनवाई होगी। मामले में निर्णय आने के बाद नगर निकाय चुनाव को लेकर अधिसूचना जारी की जाएगी।