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हर कोई ये जानना चाहता है कि क्या ये संभव है? क्या वाकई में भाजपा के 100 विधायक तोड़कर केशव प्रसाद मौर्य मुख्यमंत्री बन सकते हैं? क्या है उत्तर प्रदेश की सियासी गणित? आइए समझते हैं…
पहले जानिए अखिलेश यादव ने क्या कहा?
अखिलेश यादव मंगलवार को एक न्यूज चैनल को इंटरव्यू दे रहे थे। इस दौरान उन्होंने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद को लेकर टिप्पणी की। उन्होंने कहा, ‘केशव प्रसाद मौर्य बहुत कमजोर आदमी हैं। उन्होंने सपना तो देखा था मुख्यमंत्री बनने का। आज भी ले आएं 100 विधायक। अरे बिहार से उदाहरण लें न वो। जो बिहार में हुआ वो यूपी में क्यों नहीं करते हैं? अगर उनमें हिम्मत हैं और उनके साथ अगर विधायक हैं। एक बार तो वो बता रहे थे कि उनके पास 100 से ज्यादा विधायक हैं। आज भी विधायक ले आएं समाजवादी पार्टी समर्थन कर देगी उनका।’
अखिलेश यादव का बयान आते ही सियासी गलियारे में हंगामा मच गया। एक के बाद एक भाजपा नेताओं के बयान आने शुरू हो गए। खुद केशव प्रसाद मौर्य ने पलटवार किया। केशव मौर्य ने कहा, ‘अखिलेश यादव मुझसे घृणा करते हैं। विधानसभा में अखिलेश का प्यार मेरे प्रति सबने देखा है। अखिलेश यादव खुद डूबने वाले हैं वो मुझे क्या मुख्यमंत्री बनाएंगे?’
केशव यहीं नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, ‘अखिलेश सामंतवादी मानसिकता के बन चुके हैं। समाजवादी पार्टी नाम की कोई पार्टी नहीं है। एक परिवार की पार्टी है। उनके दावे में कोई दम नहीं है। भाजपा अपने आप में इतनी मजबूत पार्टी है, जिसको किसी के सहारे की जरूरत नहीं है। हमारे गठबंधन के जो साथी हैं, वो हमारे साथ हैं। उनके साथ मिलकर हम सरकार चला रहे हैं। वे (अखिलेश यादव) अपने 100 विधायक बचाएं। वो सब भाजपा में आने को तैयार हैं।’
इसे समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, ‘अखिलेश यादव का बयान सियासी है। कई बार अंधेरे में तीर छोड़ने पर निशाना लग भी जाता है। अखिलेश ने भी कुछ ऐसा ही करने की कोशिश की है। मतलब वह भाजपा के अंदर उथल-पुथल लाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें यह भी मालूम है कि 100 विधायक फिलहाल टूटना बहुत मुश्किल है, लेकिन फिर भी उन्होंने यह बयान देकर राजनीतिक चर्चाओं का दौर शुरू कर दिया। ये एक तरह से मनोवैज्ञानिक खेल है। जिसे खेलने की कोशिश सपा प्रमुख कर रहे हैं।’
प्रमोद ने आगे आंकड़ों के जरिए यह भी बताने की कोशिश की है कि अगर 100 विधायक भाजपा से टूट भी जाते हैं तो क्या होगा? प्रमोद कहते हैं, ‘403 विधानसभा सीटों वाले यूपी में अभी भाजपा की अगुआई वाली एनडीए के पास 272 विधायकों का समर्थन है। इसमें अकेले भाजपा के 254 सदस्य हैं। इसके अलावा अपना दल (एस) के 12 और निषाद पार्टी के छह सदस्यों का समर्थन मिला हुआ है। वहीं, समाजवादी पार्टी की अगुआई वाले विपक्ष के पास 119 विधायकों का समर्थन है। इसमें समाजवादी पार्टी के 111 और आरएलडी के आठ विधायक शामिल हैं। सपा गठबंधन से हाल ही में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी अलग हो गई है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के पास छह विधायकों का समर्थन है।’
हालांकि, फिर भी सरकार नहीं बना सकेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें एक बड़ा पेंच है। वह यह कि भाजपा से टूटने वाले 100 विधायकों पर दल बदल कानून के अनुसार कार्रवाई होगी। मतलब इनकी सदस्यता जा सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी पार्टी के दो तिहाई विधायक से कम अगर टूटते हैं तो उनपर इस कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है। भाजपा के पास अभी 254 विधायक हैं। ऐसे में दल बदल कानून से बचने के लिए भाजपा के 100 नहीं, बल्कि करीब 170 विधायकों को पाला बदलना होगा। मतलब साफ है कि 100 विधायक अगर भाजपा से टूटते हैं तो भी सरकार बदलना संभव नहीं है।
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