Varanasi: काशी नेपाली संगम के दूसरे दिन लिया गया सांस्कृतिक व धार्मिक एकता का संकल्प, गीत-संगीत पर थिरके लोग

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काशी नेपाली संगम का दूसरा दिन

काशी नेपाली संगम का दूसरा दिन
– फोटो : अमर उजाला

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नेपाल के राजदूत शंकर प्रसाद शर्मा ने कहा कि भारत और नेपाल के बीच रिश्ते धार्मिक पर्यटन से ही मजबूत होंगे। इसके लिए दोनों देश की सरकारों को धार्मिक  पर्यटन को बढ़ावा देने पर विचार करना होगा। रामायण सर्किट में आने वाले जनकपुरी, अयोध्या, वाराणसी व चित्रकूट तथा बुद्ध सर्किट में लुंबिनी, बोधगया, कुशीनगर और सारनाथ में विकास की अपार संभावनाएं हैं।

नेपाली संस्कृति परिषद की ओर से रविवार को तेलियाबाग स्थित पटेल धर्मशाला में आयोजित काशी नेपाल संगम के दूसरे दिन बतौर मुख्य अतिथि नेपाल के राजदूत ने कहा कि यह आयोजन दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करेगा।

हमारे पूर्वज युगों से सनातनी थे

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इंद्रेश कुमार ने कहा, हिंदू धर्म में अलग-अलग मत हैं। कुछ भटककर इस्लाम व ईसाई धर्म में भी चले गए हैं। बावजूद इसके जब हम अपनी जड़ों में झांकेंगे तो हमें पता चलेगा कि हम सभी वटवृक्ष रूपी सनातन धर्म की टहनियां हैं। हमारे पूर्वज युगों से सनातनी थे और हमारी शिराओं में भी सनातन धर्म का ही लहू प्रवाहित हो रहा है।

काशी नेपाल संगम के दूसरे सत्र में नेपाली संस्कृति की झलक भी नजर आई। देश के 22 राज्यों से आए कलाकारों ने आकर्षक व मंत्रमुग्ध करने वाली प्रस्तुतियों से दर्शकों को आनंदित किया। नेपाली वेशभूषा में सजे-धजे कलाकारों ने लोकनृत्य व संगीत के माधुर्य से आयोजन में चार चांद लगा दिए।

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नेपाल के राजदूत शंकर प्रसाद शर्मा ने कहा कि भारत और नेपाल के बीच रिश्ते धार्मिक पर्यटन से ही मजबूत होंगे। इसके लिए दोनों देश की सरकारों को धार्मिक  पर्यटन को बढ़ावा देने पर विचार करना होगा। रामायण सर्किट में आने वाले जनकपुरी, अयोध्या, वाराणसी व चित्रकूट तथा बुद्ध सर्किट में लुंबिनी, बोधगया, कुशीनगर और सारनाथ में विकास की अपार संभावनाएं हैं।

नेपाली संस्कृति परिषद की ओर से रविवार को तेलियाबाग स्थित पटेल धर्मशाला में आयोजित काशी नेपाल संगम के दूसरे दिन बतौर मुख्य अतिथि नेपाल के राजदूत ने कहा कि यह आयोजन दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करेगा।

हमारे पूर्वज युगों से सनातनी थे

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इंद्रेश कुमार ने कहा, हिंदू धर्म में अलग-अलग मत हैं। कुछ भटककर इस्लाम व ईसाई धर्म में भी चले गए हैं। बावजूद इसके जब हम अपनी जड़ों में झांकेंगे तो हमें पता चलेगा कि हम सभी वटवृक्ष रूपी सनातन धर्म की टहनियां हैं। हमारे पूर्वज युगों से सनातनी थे और हमारी शिराओं में भी सनातन धर्म का ही लहू प्रवाहित हो रहा है।



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