देवोत्थान एकादशी पर आज चार महीने की योगनिद्रा के बाद भगवान विष्णु जागृत होंगे। देव के उठने के साथ ही एक तरफ जहां चातुर्मास का समापन होगा। दूसरी तरफ तुलसी शालिग्राम का विवाह भी होगा। देव प्रबोधिनी एकादशी की पूजा से श्रद्धालुओं को अक्षय फल मिलेगा। धर्मग्रंथों के अनुसार, इस परंपरा से सुख और समृद्धि बढ़ती है। तुलसी विवाह से अक्षय पुण्य मिलता है और पाप का शमन होता है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य एवं ज्योतिषाचार्य पं. दीपक मालवीय ने बताया है कि देवोत्थान वर्ष की सभी 24 में सबसे महत्वपूर्ण एकादशी है। इसे हरि प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं।
एकादशी तिथि तीन नवंबर को रात्रि 8.51 पर लग गई और चार नवंबर को 7.02 बजे सायंकाल तक रहेगी। सूर्योदय व्यापिनी तिथि को ध्यान में रखकर हरि प्रबोधिनी एकादशी व्रत का मान चार नवंबर को ही होगा। तुलसी विवाह के पंच दिवसीय आयोजन भी एकादशी से आरंभ हो जाएंगे। पं दीपक मालवीय ने बताया कि चार नवंबर से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे, लेकिन इस बार शुक्र ग्रह अस्त होने से देवोत्थान एकादशी पर विवाह का मुहूर्त नहीं है। प्रथम विवाह मुहूर्त 24 नवंबर को प्राप्त होगा।
विवाह मुहूर्त
नवंबर – 24, 25, 26,
दिसंबर – 2, 3, 7, 8, 9, 13, 14, 15, 16
इसके पश्चात खरमास प्रारंभ हो जाएगा। पुन: विवाह के मुहूर्त 15 जनवरी 2023 से प्राप्त होंगे।
पं. मालवीय ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जिस मनोरथ का फल त्रिलोक में न मिल सके वह देवोत्थान एकादशी का व्रत कर प्राप्त किया जा सकता है। पूर्णिमा तक भगवान शालिग्राम एवं तुलसी माता का विवोहत्सव मनाया जाता है।
देवउठनी एकादशी पर घरों और मंदिरों में गन्नों से मंडप सजाकर उसके नीचे भगवान विष्णु की प्रतिमा विराजमान कर मंत्रों से भगवान विष्णु को जगाएंगे और पूजा-अर्चना करेंगे। भगवान को ऋतु फलों का भोग भी लगाया जाएगा। जल्दी शादी और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना से यह पूजा अविवाहित युवक-युवतियां भी खासतौर से करते हैं
वनस्पति शास्त्र के मुताबिक, तुलसी नेचुरल एयर प्यूरिफायर है। यह करीब 12 घंटे ऑक्सीजन छोड़ती है। तुलसी का पौधा वायु प्रदूषण को कम करता है। इसमें यूजेनॉल कार्बनिक यौगिक होता है जो मच्छर, मक्खी व कीड़े भगाने में सहायक होता है।