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मैं अकेला ही चला था जानिब-ए मंजिल, मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया। यह शेर ताजनगरी के उन लोगों पर सटीक बैठता है जो शहर में पर्यावरण संरक्षण की मिसाल पेश कर रहे हैं। यह उन लोगों की मेहनत और कुछ कर गुजरने की सोच का नतीजा है कि जहां पार्कों में कूड़े के ढेर लगा करते थे अब वहां हरियाली है। डिवाइडर और घर के बाहर पौधे लहलहा रहे हैं। शहर में एक-दूसरे के प्रकृति प्रेम से प्रभावित होकर महिलाओं ने एक कारवां तैयार किया है। इसके लिए वो अपने पैसे और समय दोनों खर्च कर रही हैं, ताकि शहर हरा-भरा दिखे और लोगों को स्वच्छ वायु मिल सके।
गाड़ी में रखकर ले जाती हैं पौधों के लिए पानी
दयालबाग की तरंग त्रिपाठी ने डिवाइडर पर कई पौधे लगाए हैं। उन्होंने बताया जब उन्होंने यहां घर लिया था तो डिवाइडर की हालत बहुत खराब थी। लोगों ने इसे कूड़ाघर बना रखा था। एक दिन सफाई कराई और पौधे लगा दिए। देखभाल न होने से वे टिक नहीं पाए। इसके बाद भी हार नहीं मानी, एक-एक बार में छह पौधे लगाने शुरू किए और उनकी देखभाल की। अब यहां लगाए गए कई पौधे बड़े हो चुके हैं। तंरग पेशे से सरकारी टीचर हैं। उन्होंने बताया कि स्कूल जाते समय वह गाड़ी में पानी रखकर ले जाती हैं और पौधों को देती हैं। अभी छुट्टियां चल रही हैं तो मार्निंग वॉक पर जाते समय पौधों को पानी दे रही हैं।
पॉलीवाल पार्क का उठाया जिम्मा
बांके बिहारी धाम पुष्पांजलि हाइट्स की विनीता मित्तल को प्रकृति से बहुत प्रेम हैं। उन्होंने अपने घर को तो हरा-भरा बना ही रखा है, डिवाइडरों पर पौधे लगाती हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों को स्कूल छोड़ने के दौरान एक दिन उनकी नजर डिवाइडर पर पड़ी जहां बहुत गंदगी थी। अगले दिन मजदूर लगाकर उस डिवाइडर को साफ कराया और खोदवाया। इसके बाद लोगों को रसोई का वेस्ट डालने के लिए बोला ताकि खाद मिल जाए। उसके बाद कनेर, नीम आदि के पौधे लगाए। अब वो पौधे वृक्ष का रूप ले चुके हैं। इसके अलावा अब उनके साथ लगभग 50 से अधिक लोग जुड़ गए हैं।
बेकार पार्क को किया हरा-भरा
सेंट जॉस कॉलेज की हिंदी विभाग की अध्यक्ष कैलाश बिहार की रहने वाली डॉ. मधुरिमा शर्मा ने अपने घर पास बने पार्क को अपने बल पर हरा-भरा बनाया है। उन्होंने कहा कि पार्क में बहुत गंदगी रहती थी। मन में विचार आया कि इतनी अच्छी कॉलोनी में कोई बाहर से आएगा तो क्या कहेगा। नगर निगम में अधिकारियों से कहकर पार्क की बाउंड्री कराई। इसके बाद उसमें छायादार, फलदार, फूल, पत्ती आदि के 300 से अधिक पौधे लगाए। पूरे पार्क में घास लगवाई। वर्तमान में यह पार्क छायादार वृक्षों के साथ हरा-भरा है। यहां लोग बैठने के लिए आते हैं। यहां हरियाली को देख मन को सुकुन मिलता है, तब लगता है मेहनत रंग लाई है।
घर से की शुरुआत
खंदारी की शुभला लवानिया को भी प्रकृति से प्रेम है। इसके लिए वह अपने कॉलोनी, मंदिर, यमुना किनारे, स्कूल आदि में पौधे लगाती हैं। उनकी देखभाल भी करती हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें बचपन से ही हरियाली पसंद है। परिवार के सभी सदस्यों को बचपन से ही हरियाली के लिए कुछ न कुछ करते देखा है। उन्होंने बताया कि पहले उन्होंने घर से इसकी शुरुआत की। उसके बाद लोग जुड़ते गए तो हौसला और भी बढ़ गया। अकेले से शुरू हुआ काम अब 60 से 70 लोगों तक पहुंच गया। अब सब साथ मिलकर पौधे लगाते हैं और यह पौधे वृक्ष बने यही हमारी कोशिश रहती है।
विस्तार
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए मंजिल, मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया। यह शेर ताजनगरी के उन लोगों पर सटीक बैठता है जो शहर में पर्यावरण संरक्षण की मिसाल पेश कर रहे हैं। यह उन लोगों की मेहनत और कुछ कर गुजरने की सोच का नतीजा है कि जहां पार्कों में कूड़े के ढेर लगा करते थे अब वहां हरियाली है। डिवाइडर और घर के बाहर पौधे लहलहा रहे हैं। शहर में एक-दूसरे के प्रकृति प्रेम से प्रभावित होकर महिलाओं ने एक कारवां तैयार किया है। इसके लिए वो अपने पैसे और समय दोनों खर्च कर रही हैं, ताकि शहर हरा-भरा दिखे और लोगों को स्वच्छ वायु मिल सके।
गाड़ी में रखकर ले जाती हैं पौधों के लिए पानी
दयालबाग की तरंग त्रिपाठी ने डिवाइडर पर कई पौधे लगाए हैं। उन्होंने बताया जब उन्होंने यहां घर लिया था तो डिवाइडर की हालत बहुत खराब थी। लोगों ने इसे कूड़ाघर बना रखा था। एक दिन सफाई कराई और पौधे लगा दिए। देखभाल न होने से वे टिक नहीं पाए। इसके बाद भी हार नहीं मानी, एक-एक बार में छह पौधे लगाने शुरू किए और उनकी देखभाल की। अब यहां लगाए गए कई पौधे बड़े हो चुके हैं। तंरग पेशे से सरकारी टीचर हैं। उन्होंने बताया कि स्कूल जाते समय वह गाड़ी में पानी रखकर ले जाती हैं और पौधों को देती हैं। अभी छुट्टियां चल रही हैं तो मार्निंग वॉक पर जाते समय पौधों को पानी दे रही हैं।
पॉलीवाल पार्क का उठाया जिम्मा
बांके बिहारी धाम पुष्पांजलि हाइट्स की विनीता मित्तल को प्रकृति से बहुत प्रेम हैं। उन्होंने अपने घर को तो हरा-भरा बना ही रखा है, डिवाइडरों पर पौधे लगाती हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों को स्कूल छोड़ने के दौरान एक दिन उनकी नजर डिवाइडर पर पड़ी जहां बहुत गंदगी थी। अगले दिन मजदूर लगाकर उस डिवाइडर को साफ कराया और खोदवाया। इसके बाद लोगों को रसोई का वेस्ट डालने के लिए बोला ताकि खाद मिल जाए। उसके बाद कनेर, नीम आदि के पौधे लगाए। अब वो पौधे वृक्ष का रूप ले चुके हैं। इसके अलावा अब उनके साथ लगभग 50 से अधिक लोग जुड़ गए हैं।
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