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सिर्फ चंबल में बचे हैं साल प्रजाति के कछुए
वर्ष 2008 से टर्टल सर्वाइवल एलायंस चंबल में कछुओं के संरक्षण में लगी है। टीएसए के प्रोजेक्ट ऑफिसर पवन पारीक ने बताया कि साल प्रजाति के कछुए सिर्फ चंबल नदी में बचे हैं। ढोर प्रजाति गंगा के अलावा चंबल में मौजूद हैं। दोनों प्रजातियों का कुनबा 500 हो गया है। इस साल 600 बच्चों का जन्म हुआ है। रेंजर आरके सिंह राठौड़ ने बताया कि कछुओं की आठ प्रजातियां साल, ढोर, सुंदरी, मोरपंखी, कटहवा, भूतकाथा, स्योत्तर, पचेड़ा प्रजाति का चंबल में संरक्षण हो रहा है।
बढे़ तेंदुए और हिरण
कंटीली झाड़ियों का दायरा सिमटने के साथ ही तेंदुए की आबादी बढ़ने लगी है। 90 के दशक तक तेंदुए बीहड़ में यदा कदा दिखते थे। एक साल में तेंदुए 24 से 30 हो गए हैं। तेंदुए के हमले को लेकर वन विभाग ने मानव वन्य जीव संघर्ष टालने के लिए बीहड़ी गांवों में समितियां बनाई हैं। राजस्थान से सटे बाह के बीहड़ में काले और चितकबरे हिरनों की आबादी भी 600 से 800 हो गई है।
घड़ियालों का घर, डॉल्फिन भी बढ़ी
दुनिया में लुप्त प्राय स्थिति में पहुंचे घड़ियालों के लिए चंबल नदी संजीवनी बनकर उभरी है। साल भर में घड़ियाल का कुनबा 1859 से बढ़कर 2176, मगरमच्छ की आबादी 710 से 882, डॉल्फिन की संख्या 74 से 82 हो गई है। घड़ियालों का संरक्षण वर्ष 1979 से हो रहा है, जबकि 5 अक्टूबर 2009 में डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित कर संरक्षण के लिए चंबल को चुना गया।
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