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संरक्षित हो रहीं आठ प्रजातियां
चंबल नदी में कछुओं की आठ प्रजातियां संरक्षित हो रही हैं। इनमें साल, ढोर, सुंदरी, मोरपंखी, कटहवा, भूतकाथा, स्योत्तर, पचेड़ा शामिल हैं। वर्ष 2008 में टर्टल सर्वाइवल एलायंस ने चंबल में कछुओं के संरक्षण पर काम शुरू किया था।
गढ़ायता कछुआ संरक्षण केंद्र में बनाई हैचरी
इटावा और बाह रेंज से नेस्टिंग सीजन में टर्टल सर्वाइवल एलायंस की टीम अंडों को एकत्रित कर गढ़ायता कछुआ संरक्षण केंद्र में रखती हैं। टीएसए के प्रोजेक्ट अफसर पवन पारीक ने बताया कि इस साल 311 नेस्ट हैचरी में थे। दोनो रेंज के जिन घाटों से अंडे एकत्रित किए थे वहीं बच्चों को छोड़ दिया गया है।
रेंजर आरके सिंह राठौड़ ने बताया कि बाढ़, नदी किनारे पर कछवारी, चोरी छिपे होने वाले खनन और मछली पकड़ने को डाले गए जाल में फंसकर होने वाली मौत से कछुओं की आबादी तेजी से घटी थी।
वन विभाग के साथ टीएसए के जागरूकता अभियान से हालात सुधरे। नेस्टिंग से लेकर हैचिंग सीजन तक अंडों की रखवाली से संख्या बढ़ी है। उन्होंने बताया कि मांस और शक्तिवर्धक दवाओं के लिए होने वाली तस्करी को भी कड़ाई से रोका गया है।
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