लड़की हूं, लड़ सकती हूं…भले ही राजनैतिक दल ने चुनावी नारा दिया हो, लेकिन हकीकत है। बात शिक्षा की करें तो बेटी हूं, पढ़ सकती हूं…और बेटों से आगे भी निकल सकती हूं। यह डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के दीक्षांत समारोह में बेटियों ने साबित भी किया। मेडल पाने वालों में बेटियों की संख्या बेटों के मुकाबले चार गुना है। टॉप टेन में महज एक ही छात्र है।
विश्वविद्यालय के 87वें दीक्षांत समारोह में मंगलवार 169 मेडल प्रदान किए गए। इसमें 129 स्वर्ण और 40 रजत पदक हैं। बेटियों के हिस्से में 135 पदक आए। बेटों की बात करें तो इनके खाते में मात्र 34 पदक ही हैं। औसत की बात करें मो 79.90 फीसदी बेटियां और 20.10 फीसदी बेटे ही पदक पा सकते हैं। यहां तक के टॉप छह में भी कोई बेटा नहीं है। सबसे ज्यादा पदक भी प्रिया चावला के नाम है। टॉप टेन में नौ छात्राएं हैं। एक छात्रा है, जो सातवें नंबर पर है। यही वजह रही कि समारोह में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने खुले मंच से बेटियों की तारीफ की।
राज्यपाल बोलीं, हमारी बेटियों ने कर दिया कमाल
समारोह में पदक पाने वालों में छात्राओं की संख्या देख राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने बेटियों की तारीफ के पुल बांधे। कहा कि हमारी बेटियों ने कमाल कर दिया। 80 फीसदी मेडल पाने वाली बेटियों को बधाई….बेटों को भी बधाई। कहा कि बेटों को बेटियों से मुकाबले आने को कड़ी मेहनत करनी चाहिए। कहा कि बेटियों को मौका मिला तो उन्होंने खुद को साबित कर दिया। अपने वक्त को याद करते हुए कहा कि जब वो पढ़ती थीं तो कॉलेज में एक-या दो ही लड़कियां होती थीं। आज हमारी बेटियां लड़ाकू विमान तक उड़ा रही हैं।
प्रिया बनीं गोल्डन गर्ल
केडी मेडिकल कॉलेज मथुरा की एमबीबीएस की छात्रा प्रिया चावला को सबसे ज्यादा सात स्वर्ण पदक मिले हैं। वह सोनीपत गुहाना की रहने वाली हैं। उन्होंने कहा कि उनके पिता सुरेंद्र चावला व्यापारी हैं और मां गीता चावला गृहणी हैं। अपनी सफलता का श्रेय मां-पिता और शिक्षकों को दिया। कहा कि मां-पिता से अनुशासन की सीख और शिक्षकों से पढ़ाई का मंत्र दिलोदिमाग में उतार लिया। सात स्वर्ण के पीछे की साधना के बारे में पूछा तो वह बोलीं, वन टाइम राइटिंग और फाइव टाइम लर्निंग से ही सफलता मिली है।
अब पीछे नहीं आगे चल रही हैं बेटियां
वार्ष्णेय कॉलेज अलीगढ़ की पांच स्वर्ण पदक पाने वाली दिव्या शर्मा ने कहा कि देखिए मौका मिला तो बेटियों ने बता दिया कि वह सबसे आगे हैं। पहले बेटियों को दोयम दर्जे का समझ पढ़ाई-लिखाई को महत्व नहीं देते थे। चाहकर भी बेटियां उच्च शिक्षा नहीं पा सकती थीं। समय बदला, अभिभावकों की सोच भी और परिणाम सामने है। कहा कि वह पीएचडी कर शिक्षक बनना चाहती हैं, मकसद बेटियों को उच्च शिक्षित करना है।
जमकर पढ़ाई कर खुद को किया साबित
डॉ. बीआरए विश्वविद्यालय के समाज विज्ञान संस्थान की ज्योति वर्मा को चार स्वर्ण मिले हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की पढ़ाई के बाद सेल्फ स्टडी पर अधिक भरोसा करती हूं। हाईस्कूल-इंटरमीडिएट में बेहतर अंक लाकर खुद को साबित किया। पिता श्रीकृष्ण वर्मा उद्यमी हैं उन्होंने हौसला बढ़ाया। बेटा-बेटी समान मानते हुए अवसर दिए। इसका ही नतीजा है कि चार मेडल मिले हैं। बेटियां कमजोर नहीं हैं, बस मौका मिलने की देरी है।