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सार
राजनीतिक विशेषज्ञ और सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज ऑफ साउथ एशिया से जुड़े रहे प्रोफेसर जगदीश चंद्र कहते हैं कि तीसरे चरण में जहां पर भाजपा यादव बाहुल्य क्षेत्र में परिवारवाद का आरोप लगाकर न सिर्फ हमले कर रही है बल्कि माहौल भी बना रही है। वहीं विपक्षी दल सत्ता पक्ष पर नए विकास कार्य न करने की बात कर रहे हैं…
उत्तर प्रदेश में दूसरे चरण के चुनाव के बाद अब बारी तीसरे से लेकर सातवें चरण की है। बड़ा सवाल यही है क्या पहले और दूसरे चरण की सियासी समीकरणों को साधते हुए बहने वाली राजनीतिक हवा, तीसरे चरण से लेकर सातवें चरण तक उसी वेग से बहेगी या दूसरे चरण के बाद सियासी हवाओं का रुख बदल जाएगा। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार सियासी मुद्दों से भरी हवाओं का रुख बदलेगा। अमूमन पहले चरण से बहने वाली राजनीतिक हवाओं का रुख अपने मुद्दों के साथ आखिरी चरण तक बहता था।
परिवारवाद का आरोप
राजनीतिक विशेषज्ञ और सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज ऑफ साउथ एशिया से जुड़े रहे प्रोफेसर जगदीश चंद्र कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के पहले और दूसरे चरण यानी कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जो मुद्दे थे वह भाजपा ने अपने तरीके से और समाजवादी पार्टी राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन ने अपने तरीके से उठाए भी और उन्हें भुनाया भी। जगदीश चंद्र कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दो चरणों में होने वाले चुनावों में मुस्लिम आबादी से संबंधित सभी दलों के पास अपने-अपने मुद्दे थे। इसके अलावा किसान आंदोलन से जुड़े किसानों के भी बड़े मुद्दे थे। ऐसे मुद्दे जिनकी वजह से दिल्ली में लंबा आंदोलन तक चला। वह कहते हैं कि दो चरणों के मुद्दे तीसरे चरण से लेकर सातवें चरण तक प्रभावी होंगे ऐसा फिलहाल तो नहीं लगता है। इसकी वजह बताते हुए जगदीश चंद्र कहते हैं तीसरे चरण में जहां पर भाजपा यादव बाहुल्य क्षेत्र में परिवारवाद का आरोप लगाकर न सिर्फ हमले कर रही है बल्कि माहौल भी बना रही है। वहीं विपक्षी पार्टियां सत्ता पक्ष पर कोई भी नए विकास कार्य न करने की बात कर रही हैं।
बुंदेलखंड में ये हैं मुद्दे
बुंदेलखंड इलाके में सत्ता पक्ष जहां अपने किए गए काम खासतौर से बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे, डिफेंस कॉरिडोर का जिक्र करके पानी की समस्याओं को दूर करने और उससे होने वाले पलायन को रोकने का जिक्र कर रही है। इस इलाके में समाजवादी पार्टी और गठबंधन सरकार के जीरो डेवलपमेंट का एजेंडा लेकर आगे बढ़ रही है। बुंदेलखंड में कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी ने अपनी राजनीतिक सक्रियता की नींव डाली थी। यही वजह है कि कांग्रेस बुंदेलखंड में पिछड़ों अति पिछड़ों और दलितों समेत आदिवासियों के मुद्दों के मुद्दे उठा रही है। जगदीश चंद्र कहते हैं कि मुलायम सिंह के गढ़ तक तो मुस्लिम और यादव के मुद्दे रहेंगे, लेकिन बुंदेलखंड में इनका कोई उतना प्रभावी असर नहीं दिखने वाला।
राजनीतिक विशेषज्ञ जटाशंकर सिंह कहते हैं कि कुछ मुद्दे तो पश्चिम से लेकर पूरब तक एक रहते हैं, बस उनकी तासीर बदलती है। सिंह कहते हैं जैसे किसानों का मुद्दा पश्चिम में भी प्रभावी है और पूर्व में भी प्रभावी है। बुंदेलखंड में भी उतना ही है जितना की तराई और अवध के क्षेत्रों में। वह कहते हैं बस फर्क सिर्फ इस बात का होता है कि किसानों के मुद्दों में शामिल क्या है। मसलन पश्चिम के किसानों के मुद्दों में किसान आंदोलन से जुड़े हुए मुद्दे जबरदस्त रूप से प्रभावी थे। एक तय समय तक चले हुए ट्रैक्टरों को न चलाने का मुद्दा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनावों में हावी रहा। यही जब हम बुंदेलखंड या पूर्वांचल में जाते हैं तो मुद्दे तो किसानों के ही होते हैं लेकिन बदले हुए। मसलन बुंदेलखंड में किसानों के लिए पानी का बड़ा मुद्दा है। किसानों को मिलने वाली खाद और कृषि सेवा केंद्रों से मिलने वाले कृषि उत्पाद के अपने अलग मुद्दे हैं।
जातिगत समीकरण यहां भी हावी हैं, लेकिन यहां पर पश्चिम की तरह पचास फीसदी आबादी वाले मुस्लिम बाहुल्य न तो इलाके हैं और न ही उस तरीके के मुद्दे। इसी तरीके से तराई में और पूर्वांचल में भी किसानों के मुद्दे तो हावी हैं लेकिन मुद्दों की दिशाएं बदली हुई हैं। मसलन पश्चिम की तरह यहां पर किसान आंदोलन से जुड़े हुए मुद्दे इतना प्रभावशाली तो नहीं है, लेकिन छुट्टा जानवरों का मुद्दा निश्चित तौर पर बड़ा है यहां पर।
पूर्वांचल में जातिगत मुद्दे अहम
राजनीतिक विशेषज्ञ जगदीश चंद्र का मानना है पूर्वांचल में जातिगत समीकरणों के साथ-साथ दूसरे मुद्दे निश्चित तौर पर बड़े प्रभावशाली हैं, लेकिन एक बात बिल्कुल तय है कि पश्चिम के मुद्दों की पूरी की पूरी टोन पूर्वांचल में सेट नहीं हो रही है। वह कहते हैं पिछले चुनावों को अगर आप देखें तो पाएंगे पश्चिम में ध्रुवीकरण से शुरू हुई राजनीति का असर पूरब तक होता था। इस बार यह दबे पांव चल तो जरूर रहा है लेकिन खुलकर उतना ना तो सामने दिख रहा है और न ही पूरे तरीके से प्रभावी माना जा रहा है। उनका कहना है पूर्वांचल में मुद्दों की राजनीति जातिगत समीकरणों के साथ ही शुरू होती है और उसी के अनुसार मुद्दे उन्हीं जातिगत समीकरणों के साथ शामिल होकर नतीजों में तब्दील हो जाते हैं। पूर्वांचल में इस बार फिर इसी तरीके के हालात हैं। उनका कहना है पिछले चुनावों में मंदिर-मस्जिद जरूर मुद्दे रहे जिससे पूर्वांचल में जातिगत समीकरण हो और उससे होने वाले ध्रुवीकरण का चुनावी परिणाम पर असर पड़ता रहा है। वे कहते हैं कि इस बार राम मंदिर के निर्माण का चर्चा में तो है लेकिन वह सियासी ध्रुवीकरण के मुद्दे के तौर पर सामने नहीं है।
सपा बोली, भाजपा के पास नहीं है इन मुद्दों का जवाब
समाजवादी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष सुरेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि भाजपा जिस तरीके की सियासी हवाओं को तूल दे रही है, उसका कोई असर उत्तर प्रदेश के मतदान पर नहीं पड़ने वाला है। श्रीवास्तव कहते हैं असली मुद्दे तो उत्तर प्रदेश के चुनावों में बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई है। भाजपा के पास जब इसका कोई जवाब नहीं होता है, तो वह अपना चिर परिचित सियासी दांव खेलना शुरू कर देती है। लेकिन उत्तर प्रदेश की जनता भाजपा के इस रवैये को समझ चुकी है और उसने पहले चरण से ही अपना रुख दिखाना शुरू कर दिया है। भाजपा प्रवक्ता का कहना है कि उत्तर प्रदेश की डबल इंजन सरकार में जिस तरीके से विकास हुआ है, उससे समाजवादी पार्टी के पास अब जवाब देने को कुछ नहीं है। समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी पार्टियां इस बार 2017 के चुनावों से भी कम आंकड़ों पर पहुंचने वाली है।
विस्तार
उत्तर प्रदेश में दूसरे चरण के चुनाव के बाद अब बारी तीसरे से लेकर सातवें चरण की है। बड़ा सवाल यही है क्या पहले और दूसरे चरण की सियासी समीकरणों को साधते हुए बहने वाली राजनीतिक हवा, तीसरे चरण से लेकर सातवें चरण तक उसी वेग से बहेगी या दूसरे चरण के बाद सियासी हवाओं का रुख बदल जाएगा। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार सियासी मुद्दों से भरी हवाओं का रुख बदलेगा। अमूमन पहले चरण से बहने वाली राजनीतिक हवाओं का रुख अपने मुद्दों के साथ आखिरी चरण तक बहता था।
परिवारवाद का आरोप
राजनीतिक विशेषज्ञ और सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज ऑफ साउथ एशिया से जुड़े रहे प्रोफेसर जगदीश चंद्र कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के पहले और दूसरे चरण यानी कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जो मुद्दे थे वह भाजपा ने अपने तरीके से और समाजवादी पार्टी राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन ने अपने तरीके से उठाए भी और उन्हें भुनाया भी। जगदीश चंद्र कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दो चरणों में होने वाले चुनावों में मुस्लिम आबादी से संबंधित सभी दलों के पास अपने-अपने मुद्दे थे। इसके अलावा किसान आंदोलन से जुड़े किसानों के भी बड़े मुद्दे थे। ऐसे मुद्दे जिनकी वजह से दिल्ली में लंबा आंदोलन तक चला। वह कहते हैं कि दो चरणों के मुद्दे तीसरे चरण से लेकर सातवें चरण तक प्रभावी होंगे ऐसा फिलहाल तो नहीं लगता है। इसकी वजह बताते हुए जगदीश चंद्र कहते हैं तीसरे चरण में जहां पर भाजपा यादव बाहुल्य क्षेत्र में परिवारवाद का आरोप लगाकर न सिर्फ हमले कर रही है बल्कि माहौल भी बना रही है। वहीं विपक्षी पार्टियां सत्ता पक्ष पर कोई भी नए विकास कार्य न करने की बात कर रही हैं।
बुंदेलखंड में ये हैं मुद्दे
बुंदेलखंड इलाके में सत्ता पक्ष जहां अपने किए गए काम खासतौर से बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे, डिफेंस कॉरिडोर का जिक्र करके पानी की समस्याओं को दूर करने और उससे होने वाले पलायन को रोकने का जिक्र कर रही है। इस इलाके में समाजवादी पार्टी और गठबंधन सरकार के जीरो डेवलपमेंट का एजेंडा लेकर आगे बढ़ रही है। बुंदेलखंड में कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी ने अपनी राजनीतिक सक्रियता की नींव डाली थी। यही वजह है कि कांग्रेस बुंदेलखंड में पिछड़ों अति पिछड़ों और दलितों समेत आदिवासियों के मुद्दों के मुद्दे उठा रही है। जगदीश चंद्र कहते हैं कि मुलायम सिंह के गढ़ तक तो मुस्लिम और यादव के मुद्दे रहेंगे, लेकिन बुंदेलखंड में इनका कोई उतना प्रभावी असर नहीं दिखने वाला।
राजनीतिक विशेषज्ञ जटाशंकर सिंह कहते हैं कि कुछ मुद्दे तो पश्चिम से लेकर पूरब तक एक रहते हैं, बस उनकी तासीर बदलती है। सिंह कहते हैं जैसे किसानों का मुद्दा पश्चिम में भी प्रभावी है और पूर्व में भी प्रभावी है। बुंदेलखंड में भी उतना ही है जितना की तराई और अवध के क्षेत्रों में। वह कहते हैं बस फर्क सिर्फ इस बात का होता है कि किसानों के मुद्दों में शामिल क्या है। मसलन पश्चिम के किसानों के मुद्दों में किसान आंदोलन से जुड़े हुए मुद्दे जबरदस्त रूप से प्रभावी थे। एक तय समय तक चले हुए ट्रैक्टरों को न चलाने का मुद्दा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनावों में हावी रहा। यही जब हम बुंदेलखंड या पूर्वांचल में जाते हैं तो मुद्दे तो किसानों के ही होते हैं लेकिन बदले हुए। मसलन बुंदेलखंड में किसानों के लिए पानी का बड़ा मुद्दा है। किसानों को मिलने वाली खाद और कृषि सेवा केंद्रों से मिलने वाले कृषि उत्पाद के अपने अलग मुद्दे हैं।
जातिगत समीकरण यहां भी हावी हैं, लेकिन यहां पर पश्चिम की तरह पचास फीसदी आबादी वाले मुस्लिम बाहुल्य न तो इलाके हैं और न ही उस तरीके के मुद्दे। इसी तरीके से तराई में और पूर्वांचल में भी किसानों के मुद्दे तो हावी हैं लेकिन मुद्दों की दिशाएं बदली हुई हैं। मसलन पश्चिम की तरह यहां पर किसान आंदोलन से जुड़े हुए मुद्दे इतना प्रभावशाली तो नहीं है, लेकिन छुट्टा जानवरों का मुद्दा निश्चित तौर पर बड़ा है यहां पर।
पूर्वांचल में जातिगत मुद्दे अहम
राजनीतिक विशेषज्ञ जगदीश चंद्र का मानना है पूर्वांचल में जातिगत समीकरणों के साथ-साथ दूसरे मुद्दे निश्चित तौर पर बड़े प्रभावशाली हैं, लेकिन एक बात बिल्कुल तय है कि पश्चिम के मुद्दों की पूरी की पूरी टोन पूर्वांचल में सेट नहीं हो रही है। वह कहते हैं पिछले चुनावों को अगर आप देखें तो पाएंगे पश्चिम में ध्रुवीकरण से शुरू हुई राजनीति का असर पूरब तक होता था। इस बार यह दबे पांव चल तो जरूर रहा है लेकिन खुलकर उतना ना तो सामने दिख रहा है और न ही पूरे तरीके से प्रभावी माना जा रहा है। उनका कहना है पूर्वांचल में मुद्दों की राजनीति जातिगत समीकरणों के साथ ही शुरू होती है और उसी के अनुसार मुद्दे उन्हीं जातिगत समीकरणों के साथ शामिल होकर नतीजों में तब्दील हो जाते हैं। पूर्वांचल में इस बार फिर इसी तरीके के हालात हैं। उनका कहना है पिछले चुनावों में मंदिर-मस्जिद जरूर मुद्दे रहे जिससे पूर्वांचल में जातिगत समीकरण हो और उससे होने वाले ध्रुवीकरण का चुनावी परिणाम पर असर पड़ता रहा है। वे कहते हैं कि इस बार राम मंदिर के निर्माण का चर्चा में तो है लेकिन वह सियासी ध्रुवीकरण के मुद्दे के तौर पर सामने नहीं है।
सपा बोली, भाजपा के पास नहीं है इन मुद्दों का जवाब
समाजवादी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष सुरेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि भाजपा जिस तरीके की सियासी हवाओं को तूल दे रही है, उसका कोई असर उत्तर प्रदेश के मतदान पर नहीं पड़ने वाला है। श्रीवास्तव कहते हैं असली मुद्दे तो उत्तर प्रदेश के चुनावों में बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई है। भाजपा के पास जब इसका कोई जवाब नहीं होता है, तो वह अपना चिर परिचित सियासी दांव खेलना शुरू कर देती है। लेकिन उत्तर प्रदेश की जनता भाजपा के इस रवैये को समझ चुकी है और उसने पहले चरण से ही अपना रुख दिखाना शुरू कर दिया है। भाजपा प्रवक्ता का कहना है कि उत्तर प्रदेश की डबल इंजन सरकार में जिस तरीके से विकास हुआ है, उससे समाजवादी पार्टी के पास अब जवाब देने को कुछ नहीं है। समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी पार्टियां इस बार 2017 के चुनावों से भी कम आंकड़ों पर पहुंचने वाली है।
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