उन्नाव: अमर ने दी शहादत नहीं देख पाए बेटे का चेहरा

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पाटन। कारगिल युद्ध में जिले ने भी वीर सपूत खोया था। दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देते हुए 25 जुलाई 1999 को बीघापुर तहसील के बजौरा गांव निवासी योद्धा अमर बहादुर सिंह शहीद हुए थे। वह शहादत से 19 दिन पहले जन्मे बेटे अजय का चेहरा भी नहीं देख पाए थे। 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस है। अमर की शहादत को याद कर परिजनों की आंखें छलक आती हैं।
बजौरा निवासी किसान मनमोहन सिंह के बड़े बेटे अमर बहादुर सिंह कारगिल युद्ध में जम्मू कश्मीर के द्रास सेक्टर में तैनात थे। पाकिस्तान की सेना से मोर्चा लेते हुए अमर शहीद हो गए थे। उनकी शहादत से 19 दिन पहले छह जुलाई 1999 को पत्नी मिथिलेश ने बेटे को जन्म दिया था। मिथिलेश ने बताया कि चार बेटियों पूजा, शिल्पा, प्रिया और अनीता के बाद बेटे के जन्म की सूचना से अमर काफी खुश थे। घर आना चाहते थे लेकिन युद्ध जारी होने से छुट्टी नहीं मिल सकी थी।
बेटे अजय सिंह ने बताया कि उन्होंने पिता को सिर्फ फोटो औैर प्रतिमा में ही देखा है। उनकी वीरता के किस्से परिवार वालों से सुने हैं। अजय भी फौज में जाना चाहते थे लेकिन परिवार की जिम्मेदारी ने कदम रोक दिए। परिवार का खर्च चलाने के लिए सरकार की ओर से मां के नाम स्वीकृत गैस एजेंसी का काम देखते हैं।
जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास अधिकारी स्क्वाड्रन लीडर मधु मिश्रा ने बताया कि कारगिल विजय दिवस पर शहीद स्मारक पर शहीदों को पुष्पांजलि दी जाएगी। उन्हें सलामी देकर नमन किया जाएगा।
युवाओं के लिए बने प्रेरणा
अमर बहादुर की शहादत के बाद बजौरा गांव के युवाओं में सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करने का जज्बा बढ़ गया। गांव के 20 लोग सेना में हैं।
गांव का नहीं हुआ विकास
शहीद के बेटे अजय सिंह ने बताया कि पिता की शहादत के बाद भारत सरकार ने मां को गैस एजेंसी दी। जलनिगम ने गांव में पानी टंकी बनवाई औैर तत्कालीन विधान परिषद सदस्य स्व. अजीत सिंह ने बजौरा मार्ग पर स्मृति द्वार बनवाया। समाजसेवियों ने शहीद स्मारक बनाने में सहयोग किया लेकिन पिता की जन्मस्थली के विकास के लिए खास प्रयास नहीं किए गए।

यह भी पढ़ें -  हसनगंज थानाध्यक्ष ने सोशल मीडिया पर प्रसारित खबर को बताया फर्जी

पाटन। कारगिल युद्ध में जिले ने भी वीर सपूत खोया था। दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देते हुए 25 जुलाई 1999 को बीघापुर तहसील के बजौरा गांव निवासी योद्धा अमर बहादुर सिंह शहीद हुए थे। वह शहादत से 19 दिन पहले जन्मे बेटे अजय का चेहरा भी नहीं देख पाए थे। 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस है। अमर की शहादत को याद कर परिजनों की आंखें छलक आती हैं।

बजौरा निवासी किसान मनमोहन सिंह के बड़े बेटे अमर बहादुर सिंह कारगिल युद्ध में जम्मू कश्मीर के द्रास सेक्टर में तैनात थे। पाकिस्तान की सेना से मोर्चा लेते हुए अमर शहीद हो गए थे। उनकी शहादत से 19 दिन पहले छह जुलाई 1999 को पत्नी मिथिलेश ने बेटे को जन्म दिया था। मिथिलेश ने बताया कि चार बेटियों पूजा, शिल्पा, प्रिया और अनीता के बाद बेटे के जन्म की सूचना से अमर काफी खुश थे। घर आना चाहते थे लेकिन युद्ध जारी होने से छुट्टी नहीं मिल सकी थी।

बेटे अजय सिंह ने बताया कि उन्होंने पिता को सिर्फ फोटो औैर प्रतिमा में ही देखा है। उनकी वीरता के किस्से परिवार वालों से सुने हैं। अजय भी फौज में जाना चाहते थे लेकिन परिवार की जिम्मेदारी ने कदम रोक दिए। परिवार का खर्च चलाने के लिए सरकार की ओर से मां के नाम स्वीकृत गैस एजेंसी का काम देखते हैं।

जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास अधिकारी स्क्वाड्रन लीडर मधु मिश्रा ने बताया कि कारगिल विजय दिवस पर शहीद स्मारक पर शहीदों को पुष्पांजलि दी जाएगी। उन्हें सलामी देकर नमन किया जाएगा।

युवाओं के लिए बने प्रेरणा

अमर बहादुर की शहादत के बाद बजौरा गांव के युवाओं में सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करने का जज्बा बढ़ गया। गांव के 20 लोग सेना में हैं।

गांव का नहीं हुआ विकास

शहीद के बेटे अजय सिंह ने बताया कि पिता की शहादत के बाद भारत सरकार ने मां को गैस एजेंसी दी। जलनिगम ने गांव में पानी टंकी बनवाई औैर तत्कालीन विधान परिषद सदस्य स्व. अजीत सिंह ने बजौरा मार्ग पर स्मृति द्वार बनवाया। समाजसेवियों ने शहीद स्मारक बनाने में सहयोग किया लेकिन पिता की जन्मस्थली के विकास के लिए खास प्रयास नहीं किए गए।

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