[ad_1]
संदीपनि मुनि शिक्षण संस्था के पीआरओ पार्थ सारथी के मुताबिक यह योजना लगभग 12 वर्ष से चल रही है। एक बैलगाड़ी (बुल पावर) में 25 बच्चों से अधिक बैठ लेते हैं। स्कूल की कुल 11 बैल गाड़ियां संचालित हैं।
पार्थ सारथी का कहना है कि बैलगाड़ी से वायु और ध्वनि प्रदूषण के अलावा तेल की बचत और दुर्घटना की संभावना भी ना के बराबर होती है। पारंपरिक वाहनों में संरक्षित पशु को बचाना भी एक ध्येय रहता है। इसका संचालन इटली के रघुनाथ द्वारा किया जाता है, जिन्हें अब भारत की नागरिकता मिल चुकी है।
इन बैलगाड़ियों से लगभग छह किलोमीटर की परिधि के बच्चों को स्कूल ले आया जाता है। यह बैलगाड़ियां तंदुरुस्त बैलों से चलाई जाती हैं। बैलगाड़ी में बच्चों को धूप और बारिश से बचाने के लिए फाइबर शीट से ऊपर हट बनाई गई, वहीं बैलगाड़ी को चारों ओर से लकड़ी के पट्टों से कवर किया गया है। जिसके ऊपर जाली लगाई गई है, साथ ही बैलगाड़ी में बच्चों के लिए सीढ़ियां लगी हैं और पीछे गेट पर जाली लगी है।
बैलों के गले में घुंघरू घंटी बजती हैं। इससे राह चलते लोगों को पता चल जाता है कि कोई आ रहा है। लगातार एक रास्ते पर चलते रहने के कारण बैल अपने आप बच्चों के उतरने वाले स्थान पर रुक जाते हैं। बच्चों को भी बैलों से बड़ा प्यार है।
[ad_2]
Source link