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प्रदेश के ज्यादातर जिलों में गुणवत्ताविहीन नमक खाया जा रहा है। इसमें आयोडीन की मात्रा 15 पीपीएम (पार्ट्स प्रति मिलियन) से कम है। इसकी वजह से कई तरह की बीमारियां होने की संभावना बढ़ गई है। यह खुलासा हुआ है राज्य स्वास्थ्य संस्थान की लैब रिपोर्ट में।
इस रिपोर्ट के बाद आयोडीनयुक्त नमक के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए नए सिरे से अभियान चलाने की तैयारी है। विभिन्न खाद्य पदार्थों की तरह ही नमक में आयोडीन की मात्रा निर्धारित की गई है। पैकिंग के वक्त नमक में आयोडीन की मात्रा 30 पीपीएम तक होनी चाहिए।
समय के साथ पैकेट में आयोडीन की मात्रा घटती रहती है। जब यह उपभोक्ता के घरों में पहुंचे तो कम से कम 15 पीपीएम तक होना जरूरी है। इससे कम पीपीएम होने पर सेहत केलिए नुकसानदेह माना जाता है। यही वजह है कि शासन की ओर से आशा कार्यकत्री के जरिए नमक की गुणवत्ता की जांच कराई जाती है।
आशा कार्यकत्रियों को हर माह 50 सैंपल लेने होते हैँ। इस सैंपल की वह किट से जांच करती हैं और आयोडीन की मात्रा कम पाए जाने पर राज्य स्वास्थ्य संस्थान (एसएचएस) की लैब में सैंपल भेजती हैं। हालांकि एसएचएस की लैब में सैंपल भेजे जाने की दर नाम मात्र की हैं।
लेकिन जो सैंपल आए हैं, उसमें ज्यादातर गुणवत्ताविहीन हैं। अप्रैल माह में सहारनपुर, बुलंदशहर, बहराइच, देवरिया, आगरा से आए 208 सैंपल की जांच में 184 सैंपल में आयोडीन की मात्रा 15 पीपीएम से कम पाई गई।
इसी तरह मई माह में बरेली, बुलंदशहर, आगरा के 532 में 508 सैंपल में और जून माह में बरेली के 212 में 180 सैंपल में पीपीएम की दर 15 से कम पाई गई है। आयोडीन की मात्रा कम पाए जाने पर राज्य स्वास्थ्य संस्थान ने सभी जिलों से अधिक से अधिक सैंपल इकट्ठा करने और जांच कराने का निर्देश दिया है।
जांच का दायरा बढ़ाने के निर्देश
राज्य स्वास्थ्य संस्थान की अपर निदेशक डा. सुषमा सिंह ने बताया कि हर जिले से सैंपल भेजने का निर्देश दिया गया है। जहां से सैंपल नहीं आ रहे हैं, वहां नोटिस भेजा गया है। कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा जांच की जाए। आयोडीन युक्त नमक प्रयोग करने के लिए स्वास्थ्य विभाग जागरुकता अभियान भी चलाता है।
आयोडीन की कमी से होती हैं कई बीमारियां
केजीएमयू केअसिस्टेंट प्रोफेसर डा. अनिल गंगवार बताते हैं कि आयोडीन शरीर के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। इसकी कमी से घेंघा, बहरापन, गूंगापन अपंगता जैसी बीमारियां होती है। गर्भवती महिलाओं और बच्चों को ज्यादा खतरा रहता है। आयोडीन की कमी से गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। यही वजह है खाने वाले नमक में आयोडीन की मात्रा 15 पीपीएम से कम नहीं होना चाहिए।
विस्तार
प्रदेश के ज्यादातर जिलों में गुणवत्ताविहीन नमक खाया जा रहा है। इसमें आयोडीन की मात्रा 15 पीपीएम (पार्ट्स प्रति मिलियन) से कम है। इसकी वजह से कई तरह की बीमारियां होने की संभावना बढ़ गई है। यह खुलासा हुआ है राज्य स्वास्थ्य संस्थान की लैब रिपोर्ट में।
इस रिपोर्ट के बाद आयोडीनयुक्त नमक के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए नए सिरे से अभियान चलाने की तैयारी है। विभिन्न खाद्य पदार्थों की तरह ही नमक में आयोडीन की मात्रा निर्धारित की गई है। पैकिंग के वक्त नमक में आयोडीन की मात्रा 30 पीपीएम तक होनी चाहिए।
समय के साथ पैकेट में आयोडीन की मात्रा घटती रहती है। जब यह उपभोक्ता के घरों में पहुंचे तो कम से कम 15 पीपीएम तक होना जरूरी है। इससे कम पीपीएम होने पर सेहत केलिए नुकसानदेह माना जाता है। यही वजह है कि शासन की ओर से आशा कार्यकत्री के जरिए नमक की गुणवत्ता की जांच कराई जाती है।
आशा कार्यकत्रियों को हर माह 50 सैंपल लेने होते हैँ। इस सैंपल की वह किट से जांच करती हैं और आयोडीन की मात्रा कम पाए जाने पर राज्य स्वास्थ्य संस्थान (एसएचएस) की लैब में सैंपल भेजती हैं। हालांकि एसएचएस की लैब में सैंपल भेजे जाने की दर नाम मात्र की हैं।
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