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हसायन में एक कारखाने में चूड़ी तैयार करते मजदूर
– फोटो : अमर उजाला
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काम किसी का और नाम किसी का, कुछ इसी तरह का दर्द है हसायन के चूड़ी निर्माताओं का का। सुहाग की प्रतीक लाल-हरी कांच की चूड़ियां तो हसायन में ही बनती हैं। कारीगर दिन-रात मेहनत कर चूड़ियां तैयार करते हैं और फिर देश भर में इनकी आपूर्ति की जाती है। लेकिन ख्याति मिलती है फिरोजाबाद के बड़े कारोबारियों को। स्थानीय चूड़ी निर्माताओं का कहना है कि अगर सरकार मदद करे तो हसायन का यह लघु उद्योग भी पनप सकता है। अन्यथा यह गुमनामी के गर्त में चला जाएगा।
सुविधाएं मिलें तो बात बने
हसायन के चूड़ी कारोबार से जुड़े लोगों की मांग है कि जिस तरह गैस, अनुदान और मजदूरों को प्रशिक्षित करने की सुविधा फिरोजाबाद में मिल रही है, वैसी ही यहां के कारोबारियों और मजदूरों को भी दी जाए, जिससे यहां का चूड़ी उद्योग भी अलग पहचान बना सके। कस्बे में चूड़ी बनाने के करीब 30-32 छोटे कारखाने हैं। इनमें अधिकतर पंजीकृत नहीं हैं।
चूड़ी कारखाने में 30-40 कारीगर पसीना बहाकर अपने परिवार का पेट पालते हैं। भट्ठियों में चूड़ी पकाने के लिए लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। मजदूर धुएं की वजह से गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। यहां चूड़ी निर्माताओं ने बताया कि वह फिरोजाबाद पर निर्भर हैं। फिरोजाबाद के व्यापारियों से कांच का कच्चा माल खरीदने के बाद उससे चूड़ियां तैयार करते हैं और इस माल को फिरोजाबाद के कारोबारियों को ही बेचते हैं।
बोले निर्माता
फिरोजाबाद के बड़े व्यापारियों से कच्चा माल लेकर चूड़ी कारोबार को चलाने के लिए मजबूर हैं। बुनियादी संसाधनों के अभाव में लकड़ी जलाकर चूड़ी कारखाने में काम किया जाता है। प्रदेश सरकार को इस कारोबार की तरफ ध्यान देना चाहिए। – रहीस कारोबारी, मोहल्ला दखल
चूड़ी कारखाना संचालित करने के लिए आज भी लकड़ी पर निर्भर हैं। कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलने के कारण चूड़ी उद्योग बढ़ने के बजाए गुम होता जा रहा है। संसाधन व वित्तीय मदद मिल जाए तो उद्योग परवान चढ़े। – अनवार अली, कारोबारी
यहां के कारोबारी अपने माल को संसाधन के अभाव में फिरोजाबाद के बड़े व्यापारियों को बेचने पर मजबूर हैं। अगर फिरोजाबाद की तरह डिजाइन करने की मशीन व गैस की उपलब्धता हो जाए तो यहां का चूड़ी उद्योग भी तरक्की की राह पर चल सकता है। – शाहिद अली, कारोबारी
कस्बे में पचास के करीब कच्चे-पक्के कारखाने चूड़ी बनाने के लिए संचालित होते थे। लेकिन अब यह उद्योग दम तोड़ता जा रहा है। फिरोजाबाद की तरह कस्बा के कारोबारियों को भी संसाधन उपलब्ध हो जाएं तो बेहतर होगा। – अहमद खान, कारोबारी
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