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महामूर्ख सम्मेलन की फाइल फोटो
– फोटो : अमर उजाला
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मंदिरों के शहर बनारस की परंपराएं भी अलग-अलग हैं। धर्म और संस्कृति के अलावा संत कबीर का यह शहर अपनी ही अल्हड़ मस्ती, फक्कड़पन व मौज के लिए जाना जाता है। इसी परंपरा को गंगा के तट पर पिछले 55 सालों से महामूर्ख मेले के रूप में जीवंत रखा गया है। मूर्ख बनने के लिए बनारसी पिछले 55 सालों से काशी के घोड़ा घाट पर इस परंपरा के साक्षी बन रहे हैं।
जी हां घोड़ा घाट जिसका नाम शायद अब लोग बिसरा चुके हैं। घोड़ा घाट अब डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद घाट के नाम से जाना जाता है। इस घाट पर पिछले कई छह दशकों से शनिवार गोष्ठी की ओर से पहली अप्रैल को महामूर्ख मेला आयोजित हो रहा है। काशी के साहित्यकारों, साहित्यसेवियों तथा हास्य रसिकों के मंच ने बनारस की मौज, मस्ती, फक्कड़पन, अल्हड़ मिजाजी को जिंदा रखने की परंपरा का जो बीड़ा उठा रखा है उसके सहयोगी काशीवासी भी हैं। ना कोई प्रचार ना तो कोई बैनर, हर काशीवासी को एक अप्रैल की शाम का इंतजार रहता है। शाम के सात बजते-बजते राजेंद्र प्रसाद घाट का मुक्ताकाशीय मंच दर्शकों से खचाखच भर जाता है। महामूर्ख मेला में लाखों लोग खुद-बखुद मूर्ख बनने के लिए घाट की सीढ़ियों पर आकर बैठ जाते हैं। दर्शक घोड़ा घाट की सीढ़ियां पर बैठ कर घंटों ठहाका लगाते हुए इसका आनंद लेते हैं।
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