बसपा की रणनीति : भाजपा की बजाय सपा पर क्यों हमलावर हैं मायावती? जानिए इसके तीन कारण

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सार

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती के बयानों का अध्ययन करें तो उनके तीखे हमले समाजवादी पार्टी पर ही होते हैं। इसके पीछे बसपा की खास रणनीति है। इसी रणनीति के तहत पार्टी 2024 और फिर 2027 में अपनी स्थिति सुधारने के लिए जुटी हुई है। 

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10 मार्च को यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आए। भाजपा दोबारा सत्ता पर काबिज हुई। समावजादी पार्टी की स्थिति में भी पिछली बार के मुकाबले सुधार हुआ, लेकिन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को काफी नुकसान हुआ। 

साल 2007 में 206 सीटों के साथ सरकार बनाने वाली बसपा को 2012 में 80 सीटें मिलीं थी। 2017 में यह घटकर 19 हो गई। इस बार यानी 2022 चुनाव में बसपा महज एक सीट जीत सकी। बुरी हार के बाद भी सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी पर बसपा ज्यादा आक्रामक नहीं है। हां, समाजवादी पार्टी जरूर निशाने पर है।

सियासी गलियारे में इसको लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। बसपा पर भाजपा के साथ मिलीभगत का आरोप लगा, लेकिन हर बार मायावती ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। दरअसल बसपा के ऐसे करने के पीछे रणनीतिक चाल बताई जा रही है। आइए समझते हैं कि भाजपा पर सॉफ्ट होकर समाजवादी पार्टी को घेरने के पीछे क्या कारण हैं? 
10 मार्च को चुनाव परिणाम आने के बाद से अब तक यानी एक अप्रैल तक बसपा सुप्रीमो मायावती ने 14 ट्वीट किए हैं। इनमें छह बार उनके निशाने पर समाजवादी पार्टी रही, जबकि एक बार राजस्थान की कांग्रेस सरकार। भाजपा को लेकर भी चार बार उन्होंने ट्वीट किया, लेकिन हर बार उनकी बातें सलाह के रूप में ही दिखाई दी।  

11 मार्च : इसमें प्रेस नोट था। मायावती ने चुनाव हार के पीछे के कारणों को बताया। मीडिया को निशाने पर लेते हुए कहा कि मुस्लिम समाज और भाजपा से नाराज हिंदुओं ने समाजवादी पार्टी का साथ देकर गलती की है। अगर यह लोग बसपा के दलित वोट के साथ जुड़ जाते तो भाजपा को आसानी से हराया जा सकता था। यहां भी भाजपा से ज्यादा मायावती सपा पर आक्रामक दिखीं। 

22 मार्च : समाजवादी पार्टी के खिलाफ दूसरा ट्वीट आया। इसमें उन्होंने सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक को टारगेट किया। लिखा, ‘यूपी में अंबेडकरवादी लोग कभी भी सपा मुखिया अखिलेश यादव को माफ नहीं करेंगे। जिसने, अपनी सरकार में इनके नाम से बनी योजनाओं व संस्थानों आदि के नाम अधिकांश बदल दिये। जो अति निन्दनीय व शर्मनाक भी है।’ 
आगे लिखा, ‘बीजेपी से बीएसपी नहीं बल्कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह मिले हैं। जिन्होंने योगी आदित्यनाथ के पिछले शपथ समारोह में अखिलेश को बीजेपी से आर्शीवाद भी दिलाया है। अब अपने काम के लिए परिवार के एक सदस्य को बीजेपी में भेज दिया है। यह जग-जाहिर है।’

26 मार्च : यूपी की नई सरकार का शपथ ग्रहण हुआ। अगले दिन बसपा प्रमुख मायावती ने ट्वीट कर सरकार को बधाई और सलाह दी। उन्होंने लिखा, ‘यूपी में नई भाजपा सरकार के गठन की बधाई तथा यह सरकार  संवैधानिक व लोकतांत्रिक मूल्यों एवं आदर्शों के साथ कार्य करे।’

27 मार्च : बसपा प्रमुख मायावती ने चुनाव में मिली हार की समीक्षा की। इसके बाद प्रेस नोट जारी किया। इसमें भी उनके निशाने पर भाजपा की बजाय समाजवादी पार्टी ही रही। मायावती ने कहा कि समाजवादी पार्टी के साथ जाकर मुस्लिम वोटर्स ने अपना ही नुकसान किया है। यूपी में अगर भाजपा को कोई रोक सकता है तो वह बसपा है। 

28 मार्च : मायावती ने सेना भर्तियों को लेकर ट्वीट किया। इसमें भी वह आक्रामक नहीं, बल्कि सरकार को सलाह देते हुए दिखीं। इसके अगले ही दिन फिर से बसपा सुप्रीमो का ट्वीट आया। इस बार फिर उनके निशाने पर समाजवादी पार्टी रही। 

उन्होंने लिखा, ‘यूपी में सपा व भाजपा की अन्दरूनी मिलीभगत जग-जाहिर रही है कि इन्होंने विधान सभा चुनाव को भी हिन्दू-मुस्लिम कराकर यहां भय व आतंक का माहौल बनाया। जिससे खासकर मुस्लिम समाज गुमराह हुआ व सपा को एकतरफा वोट देने की भारी भूल की, जिसको सुधार कर ही भाजपा को यहां हराना संभव है।’

30 मार्च : विधानसभा अध्यक्ष के चयन को लेकर मायावती ने फिर अखिलेश यादव को टारगेट किया। लिखा, ‘नवनिर्वाचित यूपी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना के अनेकों बार विदेश भ्रमण की आड़ में नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव का अपने विदेश दौरों को विकास के बहाने उचित ठहराने का प्रयास उनकी उन कमियों पर पर्दा डालने की कोशिश है जिसका शिकार भाजपा उनको अक्सर बनाती रही है, जो क्या सही?’

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आगे उन्होंने कहा, ‘समग्र विकास के लिए सही सोच व विजन जरूरी है जो बिना विदेशी दौरे के भी संभव है। ऐसा बीएसपी सरकार ने ताज एक्सप्रेस-वे, गंगा एक्सप्रेस-वे आदि के जरिए साबित करके दिखाया है। जिस प्रकार दंगा, हिंसा व अपराध-मुक्ति के लिए आयरन विलपावर जरूरी, उसी तरह विकास हेतु भी संकीर्ण नहीं, सही सोच जरूरी है।’ 

30 मार्च को बोर्ड परीक्षा पेपर लीक मामले में बसपा सुप्रीमो का ट्वीट आया। इस बार उन्होंने यूपी सरकार के खिलाफ सख्ती दिखाई। बसपा सुप्रीमो ने इस ट्वीट में सरकार से सवाल किया, जवाबदेही तय करने की बात कही और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। वहीं, 31 मार्च को पेट्रोल-डीजल के दामों में हुई बढ़ोतरी हो लेकर ट्वीट किया। इसमें भी वह सरकार को सलाह देते ही नजर आईं। 
बसपा प्रमुख मायावती ने सपा के साथ-साथ राजस्थान की कांग्रेस सरकार को भी निशाने पर लिया। वह भी काफी सख्त तरीके से। राष्ट्रपति शासन तक की मांग कर डाली। लिखा, ‘राजस्थान कांग्रेस सरकार में दलितों व आदिवासियों पर अत्याचार की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है। हाल ही में डीडवाना व धौलपुर में दलित युवतियों के साथ बलात्कार व अलवर में दलित युवक की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या व जोधपुर के पाली में दलित युवक की हत्या ने दलित समाज को झकझोर दिया है।’ 

आगे लिखा, ‘इससे यह स्पष्ट है कि राजस्थान में खासकर दलितों व आदिवासियों की सुरक्षा करने में वहां की कांग्रेसी सरकार पूरी तरह से विफल रही है। अतः यह उचित होगा कि इस सरकार को बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। बीएसपी की यह मांग।’
1. भाजपा का वोटबैंक अलग मानती हैं मायावती : राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय सिंह कहते हैं, ‘मायावती यह जानती हैं कि उनका और भाजपा का वोटबैंक अलग-अलग है। दलित और मुस्लिम को वह अपना कोर वोटबैंक मानती हैं। बसपा को यह पता है कि अगर कुछ दलित वोटर्स भाजपा के साथ चले भी गए तो वह आसानी से वापस आ सकते हैं। वहीं, मुस्लिम वोटर्स की समाजवादी पार्टी के साथ चले गए हैं। ऐसी स्थिति में वह बार-बार सपा को टारगेट करके मुस्लिम वोटर्स को यह बताना चाहती हैं कि भाजपा को अकेले बसपा ही हरा सकती है। इसके लिए दलित-मुस्लिम गठजोड़ जरूरी है।’

2.  बसपा के ज्यादातर नेताओं को सपा ने तोड़ा : बहुजन समाज पार्टी ने जिन नेताओं को तैयार किया, उनमें से ज्यादातर को समाजवादी पार्टी ने तोड़ लिया। अब वही नेता बसपा के खिलाफ ग्राउंड पर माहौल बना रहे हैं। ऐसे में मायावती अपनी सियासी चाल के जरिए उन नेताओं को या तो वापस पार्टी में शामिल कराना चाहती हैं या फिर उन्हें इतना कमजोर कर देना चाहती हैं कि वह बसपा के खिलाफ खड़े न हो पाएं।

3. भाजपा पर हमला उल्टा पड़ने का डर : प्रो. सिंह के मुताबिक, ‘बसपा यह भी जानती है कि मौजूदा हालात में भाजपा को टारगेट करना उन्हें उल्टा पड़ सकता है। भाजपा इन दिनों राष्ट्रवाद, हिंदूवादी जैसे मुद्दों उठा रही है। ऐसी स्थिति में भाजपा के खिलाफ कुछ कठोर कहना, बसपा को उल्टा पड़ सकता है। इसलिए वह भाजपा पर ज्यादा आक्रामक नहीं हैं।’

विस्तार

10 मार्च को यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आए। भाजपा दोबारा सत्ता पर काबिज हुई। समावजादी पार्टी की स्थिति में भी पिछली बार के मुकाबले सुधार हुआ, लेकिन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को काफी नुकसान हुआ। 

साल 2007 में 206 सीटों के साथ सरकार बनाने वाली बसपा को 2012 में 80 सीटें मिलीं थी। 2017 में यह घटकर 19 हो गई। इस बार यानी 2022 चुनाव में बसपा महज एक सीट जीत सकी। बुरी हार के बाद भी सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी पर बसपा ज्यादा आक्रामक नहीं है। हां, समाजवादी पार्टी जरूर निशाने पर है।

सियासी गलियारे में इसको लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। बसपा पर भाजपा के साथ मिलीभगत का आरोप लगा, लेकिन हर बार मायावती ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। दरअसल बसपा के ऐसे करने के पीछे रणनीतिक चाल बताई जा रही है। आइए समझते हैं कि भाजपा पर सॉफ्ट होकर समाजवादी पार्टी को घेरने के पीछे क्या कारण हैं? 

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