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अमर उजाला ब्यूरो, आगरा
Published by: मुकेश कुमार
Updated Tue, 08 Mar 2022 12:37 PM IST
सार
डॉ.ऊषा यादव को बाल साहित्य भारती सहित 10 से अधिक प्रमुख सम्मान मिल चुके हैं। बीते साल उन्हें पद्म सम्मान से सम्मानित किया गया।
नौ साल की उम्र में ही अपनी लेखनी से प्रतिभा दिखाने वाली डॉ. ऊषा यादव को पिछले साल पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। आगरा की नार्थ ईदगाह की रहने वाली हिंदी साहित्यकार को 100 से ज्यादा पुस्तकें लिखने के लिए इस सम्मान से नवाजा गया। वह 30 साल तक अध्ययन से जुड़ी रहीं। ऊषा यादव डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के केएमआई और केंद्रीय हिंदी संस्थान में भी प्रोफेसर रहीं।
डॉ. ऊषा बताती हैं कि लेखन की शैली उन्हें विरासत में मिली हुई है। उनके पिता डॉ. चंद्रपाल सिंह मयंक बाल साहित्यकार थे। नौ साल की उम्र में उनकी पहली कविता स्कूल की पुस्तक में प्रकाशित हुई थी। डॉ. उषा यादव के उपन्यास धूप के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने महात्मा गांधी द्विवार्षिक हिंदी लेखन पुरस्कार दिया। बाल साहित्य भारती पुरस्कार, मीरा स्मृति सम्मान, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी की ओर से भी पुरस्कृत किया जा चुका है।
भारतीय संस्कृति का पूनम ने विदेश में बजाया डंका
बचपन से ही कथक में रूचि रखने वाली पूनम शर्मा ने विदेश में भी भारतीय संस्कृति का डंका बजाया है। शास्त्रीपुरम की रहने वाली 43 वर्षीय पूनम ने बताया कि उन्हें भारत सरकार की ओर से 2019 में इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस के तहत कजाकिस्तान भेजा गया था। इसके अलावा उन्होंने क्लासिकल नृत्य में कई पुरस्कार अपने नाम किए।
पूनम ने बताया कि सब हासिल करना इतना आसान नहीं था। घरवालों को नृत्य करना बिल्कुल पसंद नहीं था। स्कूल से समय निकालकर नृत्य की शिक्षा लेने जाती थी। स्कूल जाने के लिए बस का किराए देने के लिए उन्हें घर से एक रुपया मिलता था। उसमें से कुछ पैसे बचाकर उन्होंने अपने लिए घुंघरू खरीदे। गुरु रमन सिंह धाकर और पति ओमदीप शर्मा ने उनका साथ दिया। वह वर्तमान में बच्चों को क्लासिकल की शिक्षा दे रही हैं।
पूनम का कहना है वे ऐसी लड़कियों को कथक की शिक्षा देना चाहती है, जो कथक तो सीखना चाहती है, लेकिन उनके पास फीस देने के लिए पैसे नहीं हैं।
विस्तार
नौ साल की उम्र में ही अपनी लेखनी से प्रतिभा दिखाने वाली डॉ. ऊषा यादव को पिछले साल पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। आगरा की नार्थ ईदगाह की रहने वाली हिंदी साहित्यकार को 100 से ज्यादा पुस्तकें लिखने के लिए इस सम्मान से नवाजा गया। वह 30 साल तक अध्ययन से जुड़ी रहीं। ऊषा यादव डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के केएमआई और केंद्रीय हिंदी संस्थान में भी प्रोफेसर रहीं।
डॉ. ऊषा बताती हैं कि लेखन की शैली उन्हें विरासत में मिली हुई है। उनके पिता डॉ. चंद्रपाल सिंह मयंक बाल साहित्यकार थे। नौ साल की उम्र में उनकी पहली कविता स्कूल की पुस्तक में प्रकाशित हुई थी। डॉ. उषा यादव के उपन्यास धूप के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने महात्मा गांधी द्विवार्षिक हिंदी लेखन पुरस्कार दिया। बाल साहित्य भारती पुरस्कार, मीरा स्मृति सम्मान, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी की ओर से भी पुरस्कृत किया जा चुका है।
भारतीय संस्कृति का पूनम ने विदेश में बजाया डंका
बचपन से ही कथक में रूचि रखने वाली पूनम शर्मा ने विदेश में भी भारतीय संस्कृति का डंका बजाया है। शास्त्रीपुरम की रहने वाली 43 वर्षीय पूनम ने बताया कि उन्हें भारत सरकार की ओर से 2019 में इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस के तहत कजाकिस्तान भेजा गया था। इसके अलावा उन्होंने क्लासिकल नृत्य में कई पुरस्कार अपने नाम किए।
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