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सार
मानवी ने कहा कि ओडेशा शहर रूसी सेना के कब्जे में होने के कारण बस को रोक लिया गया। सेना ने गाड़ी को चेक किया। पासपोर्ट देखे तब जाने दिया।
यूक्रेन के खारकीव शहर से लौटी फिरोजाबाद की मानवी गुप्ता ने बताया कि वहां सिर्फ बमों के धमाके सुनाई दे रहे थे। मिसाइलें गिर रहीं थी। बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, मेडिकल कॉलेज की बिल्डिंग भी ध्वस्त हो गई थी। जान बचाने को लोग भूखे प्यासे बंकरों में छिपे रहे। खारकीव मिलेट्री एरिया है। इसलिए रूसी सेना के निशाने पर है। खारकीव से निकलने के लिए हमें पैसा देना पड़ा। मानवी गुप्ता ने वहां के हालात बयां किए तो लोग सिहर उठे।
शहर के बाग छिंगामल निवासी अजय गुप्ता की बेटी मानवी गुप्ता ने बताया कि मुझे तो बस चारों ओर धमाके ही धमाके सुनाई दे रहे थे। मानवी घर पहुंची तो मां ने गले लगाया, दादी बोली मौत की मुंह से लौटकर आई है मेरी पोती और गुलाब की माला पहना दी। मानवी ने कहा कि हम 28 फरवरी को खारकीव शहर से सात लोग चले थे। खारकीव रेलवे स्टेशन से ओडेशा तक जाने के लिए हमसे यूक्रेन गर्वमेंट ने सौ डालर यानि आठ हजार रुपये लिए।
रूसी सेना ने बस को रोका
मानवी ने कहा कि ओडेशा शहर रूसी सेना के कब्जे में होने के कारण बस को रोक लिया गया। सेना ने गाड़ी को चेक किया। पासपोर्ट देखे तब जाने दिया। इसके बाद रोमानिया बार्डर तक जाने के लिए 400 ग्रेविन (करीब 14 हजार रुपये) चुकाने पड़े। इस गाड़ी ने यूक्रेन के बार्डर से करीब दो किलोमीटर पहले ही छोड़ दिया। बॉर्डर तक जाने के लिए दो किलोमीटर तक पैदल चले। सर्दी बहुत थी। रोमानिया बॉर्डर पहुंचने पर भारतीय दूतावास ने बहुत मदद की।
सेल्टर होम मुहैया कराया, पहनने, ओढ़ने को गरम कपड़े दिए। पेस्ट, साबुन के साथ अन्य सामान दिया। इसके बाद हमें फ्लाइट मिली और यहां से हम लोग दिल्ली पहुंचे। दिल्ली से घर तक आने के लिए टैक्सी की। घर पहुंची मानवी गुप्ता को मां पायल गुप्ता ने गले लगा लिया। ताई नीता गुप्ता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पिता अजय गुप्ता बोले साहब बेटी मौत के मुंह से निकलकर आई है। हम दोनों ने कई दिनों से खाना तक नहीं खाया था चिंता यही थी किसी तरह बेटी घर आ जाए।
दो किमी पैदल चलकर बॉर्डर पर पहुंची
मानवी गुप्ता ने कहा कि यूक्रेन की सेना यूक्रेनियन की मदद कर रहे हैं। भारतीय सहित अन्य देशों के छात्र-छात्राओं को निकलने का बाद में मौका दे रहे हैं। इस तरह के हालात बॉर्डर पर थे। रोमानिया बार्डर पर काफी बर्फवारी थी। घर वापसी के लिए करीब दो किलोमीटर पैदल हम लोग चलने को मजबूर हुए।
अनंत सिंह भी खारकीव से लौटे
यूक्रेन के खारकीव में नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में सैफ का काम करने वाले खैरगढ़ के गांव बरौली निवासी अनंत सिंह शनिवार रात को घर लौट आए। वहां के हालात याद कर वह अब भी सिहर उठते हैं। उन्होंने बताया कि खारकीव में सिर्फ धमाके सुनाई दे रहे हैं। गांव आने पर परिजन ने ढोल नगाड़े के साथ स्वागत किया। अनंत सिंह के घर पहुंचते ही मां सुनीता देवी ने उन्हें गले लगाया। बेटी निधि चौहान पिता के पास पहुंच गई।
विस्तार
यूक्रेन के खारकीव शहर से लौटी फिरोजाबाद की मानवी गुप्ता ने बताया कि वहां सिर्फ बमों के धमाके सुनाई दे रहे थे। मिसाइलें गिर रहीं थी। बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, मेडिकल कॉलेज की बिल्डिंग भी ध्वस्त हो गई थी। जान बचाने को लोग भूखे प्यासे बंकरों में छिपे रहे। खारकीव मिलेट्री एरिया है। इसलिए रूसी सेना के निशाने पर है। खारकीव से निकलने के लिए हमें पैसा देना पड़ा। मानवी गुप्ता ने वहां के हालात बयां किए तो लोग सिहर उठे।
शहर के बाग छिंगामल निवासी अजय गुप्ता की बेटी मानवी गुप्ता ने बताया कि मुझे तो बस चारों ओर धमाके ही धमाके सुनाई दे रहे थे। मानवी घर पहुंची तो मां ने गले लगाया, दादी बोली मौत की मुंह से लौटकर आई है मेरी पोती और गुलाब की माला पहना दी। मानवी ने कहा कि हम 28 फरवरी को खारकीव शहर से सात लोग चले थे। खारकीव रेलवे स्टेशन से ओडेशा तक जाने के लिए हमसे यूक्रेन गर्वमेंट ने सौ डालर यानि आठ हजार रुपये लिए।
रूसी सेना ने बस को रोका
मानवी ने कहा कि ओडेशा शहर रूसी सेना के कब्जे में होने के कारण बस को रोक लिया गया। सेना ने गाड़ी को चेक किया। पासपोर्ट देखे तब जाने दिया। इसके बाद रोमानिया बार्डर तक जाने के लिए 400 ग्रेविन (करीब 14 हजार रुपये) चुकाने पड़े। इस गाड़ी ने यूक्रेन के बार्डर से करीब दो किलोमीटर पहले ही छोड़ दिया। बॉर्डर तक जाने के लिए दो किलोमीटर तक पैदल चले। सर्दी बहुत थी। रोमानिया बॉर्डर पहुंचने पर भारतीय दूतावास ने बहुत मदद की।
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