उत्तर प्रदेश का बिजनौर आज भी तमाम प्राचीन धरोहर को संजोए हुए हैं। महाभारत काल से भी जिले की धरती का जुड़ाव रहा हैं। प्राचीन स्थल जिले में आज भी मौजूद है। कुछ के निशान बाकी रह गए हैं तो कुछ अभी भी सही सलामत खड़े हैं, जिन्हें संरक्षण की जरुरत है। बिजनौर का सैंदवार गांव महाभारत काल का सैन्य द्वार कहा जाता है। यहां पर गुरु द्रोणाचार्य का आश्रम था, जहां पर कौरव और पांडवों ने शिक्षा ली। इस गांव में एक तालाब को आज भी द्रोण ताल के नाम से पुकारा जाता है।
धराशायी हो रही चार मीनार
नजीबाबाद में नवाब नजीबुद्दौला ने चार मीनार का भी निर्माण कराया था। चार मीनार के बीच का गुंबद धराशायी हो चुका है, लेकिन चार मीनार अभी भी खड़ी हुई है जो नजीबाबाद के सुंदर अतीत की गवाही देती है। हालांकि ये भी भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरेख में शामिल थी।
पारसनाथ किला
बढ़ापुर के पास काशीवाला के खेतों में आज भी पारसनाथ किले के अवशेष निकलते हैं। खुदाई के दौरान जैन धर्म से जुड़ी खंडित मूर्तियां, मंदिरों और किले अवशेष निकलते हैं। प्राचीन समय में यह जैन आचार्यों की स्थली रहा है। या किसी जैन राजा का साम्राज्य होने की गवाही देते हैं। फिलहाल यहां जैन धर्म का मंदिर बना हुआ है।
मुगलकाल की गवाही देते हैं सती मठ
रेहड़ के पास मुगलकाल में बने सती मठ आज जर्जर हालत में है। बताया जाता है कि मुगलकाल में यहां के राजा की रानियां सती हो गई थीं। रेहड़ रियासत के राजाओं ने मुगलसेना से संघर्ष किया था। वहीं ये मठ सैकड़ों साल पुराने बताए जाते हैं।