सरकारी वकील : अब कुख्यात अपराधी भी हाईकोर्ट में करेंगे यूपी सरकार की ओर से पैरवी

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इलाहाबाद हाईकोर्ट में सरकार की ओर से पैरवी करने वालों में बैंडबाजा और कैंटीन चलाने वाले ही नहीं बल्कि संज्ञेय अपराधों के आरोपी भी नजर आएंगे। इसके अलावा मध्य प्रदेश (एमपी) के वकील भी अदालतों में बहस करते दिखेंगे। 

 

एक अगस्त को जारी सूची में एमपी बार काउंसिल में रजिस्टर्ड अधिवक्ता को भी पैनल में शामिल कर लिया गया है। जबकि, एमपी के अधिवक्ता यूपी बार कौंसिल और इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्य भी नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारी इसे नियम विरुद्ध कह रहे हैं।

यूपी सरकार ने एक अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट और उसकी लखनऊ खंडपीठ में अपने केसों की पैरवी कराने के लिए एक अपर महाधिवक्ता, 27 अपर मुख्य स्थायी महाधिवक्ता सहित 841 राज्य विधि अधिकारियों (सरकारी वकील) को हटाकर 586 नए राज्य विधि अधिकारी तैनात किए थे। इसको लेकर बीजेपी और उसके अनुषांगिक संगठनों से जुड़े अधिवक्ताओं ने कड़ी आपत्ति जताई है और इसकी शिकायत भी मुख्यमंत्री तक पहुंचाई है। 

इन सबके बीच अब जैसे-जैसे नए अधिवक्ताओं की ड्यूटी कोर्टों में लगाई जा रही है, वैसे-वैसे नए तथ्य सामने आ रहे हैं। यूपी सरकार की ओर से जारी सूची में एमपी बार कौंसिल में रजिस्टर्ड अधिवक्ता को जगह दी गई है। सूची में उनका नाम भी देखा जा सकता है। कहा जा रहा है कि उनकी नियुक्ति के लिए एक बड़े ओहदे पर तैनात व्यक्ति द्वारा सिफारिश की गई थी। विधि मंत्रालय की ओर से इस पर आपत्ति भी उठाई गई, लेकिन उन सबको दरकिनार करते हुए उन्हें सरकारी अधिवक्ता बना दिया गया। 

इसके अलावा जारी सूची में दर्जन भर से अधिक ऐसे अधिवक्ताओं के नाम भी शामिल किए गए हैं, जिनका आपराधिक रिकॉर्ड है। उन पर लगे आरोप कोई सियासी या मारपीट केसामान्य तौर पर नहीं है। हत्या और दुष्कर्म जैसे संगीन आरोपों के हैं। उनके ट्रायल भी निचली अदालतों में चल रहे हैं। जबकि, विधि मंत्रालय ने अभी कुछ दिनों पहले सरकारी अधिवक्ताओं से इस बात की अंडर टेकिंग ली थी कि उन पर कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है। 

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अपराधियों को पैनल में शामिल करना गंभीर बात
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राकेश पांडेय कहते हैं कि सरकार को अपराधियाें को अपने पैनल में शामिल करने की क्या जरूरत है। यूपी में चार लाख अधिवक्ता हैं। सरकार आपराधिक या दूसरे प्रदेशों के अधिवक्ताओं को यहां अपने पैनल में शामिल करती है तो गंभीर बात है। यह सामान्य तौर पर नियम के खिलाफ है।
 

नियुक्ति प्रक्रि या गलत
दूसरे राज्यों के अधिवक्ताओं को प्रैक्टिस करने के लिए उस राज्य की बार काउंसिल से नॉन आब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना जरूरी है। उसके बाद ही वह यूपी में प्रैक्टिस कर सकता है। हाईकोर्ट में किसी ऐसे अधिवक्ता को सरकारी पैनल में शामिल किया गया है तो गलत है। ऐसे ही आपराधिक रिकॉर्ड रखने वालों को पैनल में शामिल करने का भी मामला है। किसी अधिवक्ता पर आरोप लगते हैंतो इसकी सूचना उसे बार कौंसिल को देनी होती है। बिना दिए अगर कोई सरकारी अधिवक्ता बनता है तो वह भी गलत है।
देवेंद्र मिश्र नगरहा, प्रदेश बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट में सरकार की ओर से पैरवी करने वालों में बैंडबाजा और कैंटीन चलाने वाले ही नहीं बल्कि संज्ञेय अपराधों के आरोपी भी नजर आएंगे। इसके अलावा मध्य प्रदेश (एमपी) के वकील भी अदालतों में बहस करते दिखेंगे। 

 


एक अगस्त को जारी सूची में एमपी बार काउंसिल में रजिस्टर्ड अधिवक्ता को भी पैनल में शामिल कर लिया गया है। जबकि, एमपी के अधिवक्ता यूपी बार कौंसिल और इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्य भी नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारी इसे नियम विरुद्ध कह रहे हैं।

यूपी सरकार ने एक अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट और उसकी लखनऊ खंडपीठ में अपने केसों की पैरवी कराने के लिए एक अपर महाधिवक्ता, 27 अपर मुख्य स्थायी महाधिवक्ता सहित 841 राज्य विधि अधिकारियों (सरकारी वकील) को हटाकर 586 नए राज्य विधि अधिकारी तैनात किए थे। इसको लेकर बीजेपी और उसके अनुषांगिक संगठनों से जुड़े अधिवक्ताओं ने कड़ी आपत्ति जताई है और इसकी शिकायत भी मुख्यमंत्री तक पहुंचाई है। 

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