हाईकोर्ट : अपराध भले ही गंभीर हो लेकिन आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई से वंचित करना गलत

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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Fri, 25 Feb 2022 01:24 AM IST

सार

मामले में याची की पत्नी (पीड़िता) ने याची और उसकेसात परिजनाें के खिलाफ मेरठ जिले के टीपी नगर थाने में दहेज उत्पीड़न सहित आईपीसी की अन्य धाराओं में 2013 में एफआईआर दर्ज कराई थी।

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि जिस आरोपी पर गंभीर अपराध के आरोप लगे हों, उसे निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो यह कानून की उचित प्रक्रिया की अवधारणा का खंडन होगा। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी मेरठ जिले के याची सुनील उर्फ मोनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए की है। 

मामले में याची की पत्नी (पीड़िता) ने याची और उसकेसात परिजनाें के खिलाफ मेरठ जिले के टीपी नगर थाने में दहेज उत्पीड़न सहित आईपीसी की अन्य धाराओं में 2013 में एफआईआर दर्ज कराई थी। पत्नी ने आरोप लगाया था कि  उसकी शादीयाची सुनील उर्फ मोनी से हुई थी। याची और उसके परिजन दहेज से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए वह अतिरिक्त दहेज के लिए उस पर दबाव बनाते थे।

नशे की हालत में पति और देवर ने उसकेसाथ रेप किया। मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में शुरू हुई। जिरह में याची का अधिवक्ता पीड़िता से जिरह नहीं कर सका और इसलिए पीड़िता से जिरह करने का अवसर बंद हो गया। याची ने जिरह करने केलिए गवाह (नंबर एक) को वापस बुलाने केलिए कोर्ट केसमक्ष अर्जी दी। कोर्ट ने कहा कि याची को जिरह का एक अवसर दिया जाना चाहिए।  

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विस्तार

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि जिस आरोपी पर गंभीर अपराध के आरोप लगे हों, उसे निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो यह कानून की उचित प्रक्रिया की अवधारणा का खंडन होगा। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी मेरठ जिले के याची सुनील उर्फ मोनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए की है। 

मामले में याची की पत्नी (पीड़िता) ने याची और उसकेसात परिजनाें के खिलाफ मेरठ जिले के टीपी नगर थाने में दहेज उत्पीड़न सहित आईपीसी की अन्य धाराओं में 2013 में एफआईआर दर्ज कराई थी। पत्नी ने आरोप लगाया था कि  उसकी शादीयाची सुनील उर्फ मोनी से हुई थी। याची और उसके परिजन दहेज से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए वह अतिरिक्त दहेज के लिए उस पर दबाव बनाते थे।

नशे की हालत में पति और देवर ने उसकेसाथ रेप किया। मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में शुरू हुई। जिरह में याची का अधिवक्ता पीड़िता से जिरह नहीं कर सका और इसलिए पीड़िता से जिरह करने का अवसर बंद हो गया। याची ने जिरह करने केलिए गवाह (नंबर एक) को वापस बुलाने केलिए कोर्ट केसमक्ष अर्जी दी। कोर्ट ने कहा कि याची को जिरह का एक अवसर दिया जाना चाहिए।  

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