हाईकोर्ट का अहम फैसला : अल्पसंख्यक संस्थानों को कर्मचारियों की नियुक्ति का है विशेषाधिकार

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक अहम आदेश में कहा है कि सरकारी वित्तीय सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के तहत विशेष अधिकार प्राप्त है। इस अधिकार के तहत वह अपने यहां कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकते हैं, उसमें राज्य सरकार की ओर से हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने मामले में अलीगढ़ स्थित अल्पसंख्यक संस्थान श्री उदय सिंह जैन कन्या इंटर कॉलेज में कार्य लिपिक मनोज कुमार जैन की नियुक्ति को सही करार दिया और जिला विद्यालय निरीक्षक को मामले में फिर से निर्णय लेने का आदेश पारित किया।

यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने मनोज कुमार जैन की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। याचिका में कहा गया कि विद्यालय प्रबंध समिति ने याची की लिपिक संवर्ग में नियुक्ति जनवरी 2018 में की थी, जिस पर जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) ने वित्तीय स्वीकृति प्रदान करने से मना कर दिया था।

याची ने वर्ष 2018 में डीआईओएस के आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें कोर्ट ने जिला विद्यालय निरीक्षक के आदेश को निरस्त करते हुए पुन: आदेश जारी करने का निर्देश दिया था। किंतु जिला विद्यालय निरीक्षक ने दूसरी बार भी वित्तीय स्वीकृति प्रदान करने में अपनी असहमति जताई थी।

शिक्षा विभाग ने विज्ञापन पर उठाए थे सवाल
माध्यमिक शिक्षा विभाग ने अपने प्रतिशपथ पत्र में बताया कि विद्यालय प्रबंधन समिति द्वारा लिपिक पद हेतु दिए गए विज्ञापन की न तो विभाग से अनुमति ली गई थी और न ही विज्ञापन में न्यूनतम आवश्यक योग्यता, आयु सीमा और वेतनमान का वर्णन किया गया था। विभाग का कहना था कि विद्यालय प्रबंधन ने चयन समिति में जिला अधिकारी द्वारा नामित सदस्य एवं आरक्षित वर्ग के सदस्य के स्थान पर विद्यालय के प्रधानाचार्य एवं सहायक अध्यापक को सदस्य के रूप में शामिल किया गया, जो कि चयन समिति की निष्पक्षता एवं पारदर्शिता पर संदेह उत्पन्न करते हैं।

याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि वित्त पोषित अल्पसंख्यक माध्यमिक विद्यालय में लिपिक संवर्ग में भर्ती हेतु जिला विद्यालय निरीक्षक की पूर्व अनुमति आवश्यक नहीं है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के पश्चात कहा कि सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक विद्यालयों में लिपिक भर्ती हेतु जिला विद्यालय निरीक्षक का पूर्व अनुमोदन आवश्यक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थानों की नियुक्ति के मामले में चयन समिति में जिला अधिकारी द्वारा नामित एवं आरक्षित वर्ग के सदस्य को शामिल करना भी आवश्यक नहीं है । 

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अल्पसंख्यक संस्थानों की स्वायत्तता भंग नहीं कर सकती सरकार
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार अल्पसंख्यक संस्थानों पर प्रशासनिक अधिकार के नियम थोपकर उनकी स्वायत्तता भंग नहीं कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि जिला विद्यालय निरीक्षक चयनित अभ्यर्थी की नियुक्ति को बिना अर्हता पाए जाने पर ही अवैध ठहरा सकता है। कोर्ट ने कहा कि जिला विद्यालय निरीक्षक ने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था को संविधान द्वारा प्रदत्त विशेष अधिकारों की उपेक्षा कर दो बार आदेश दिया है।

 

डीआईओएस का आदेश निरस्त, करना होगा वेतन का भुगतान
कोर्ट ने जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा लिपिक को वित्तीय सहमति न प्रदान करने संबंधी आदेश को निरस्त करते हुए याची को वर्ष 2018 से वित्तीय सहमति प्रदान करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने याची को अगले तीन महीनों में वर्ष 2018 से अद्यतन अवधि तक का वेतन भुगतान करने का निर्देश दिया, साथ ही अगले 3 महीनों में एरियर भुगतान न होने की स्थिति में याची को 12 फीसदी ब्याज के साथ भुगतान करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही राज्य को भुगतान में देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारी से ब्याज की वसूली करने की छूट दी है।

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक अहम आदेश में कहा है कि सरकारी वित्तीय सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के तहत विशेष अधिकार प्राप्त है। इस अधिकार के तहत वह अपने यहां कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकते हैं, उसमें राज्य सरकार की ओर से हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने मामले में अलीगढ़ स्थित अल्पसंख्यक संस्थान श्री उदय सिंह जैन कन्या इंटर कॉलेज में कार्य लिपिक मनोज कुमार जैन की नियुक्ति को सही करार दिया और जिला विद्यालय निरीक्षक को मामले में फिर से निर्णय लेने का आदेश पारित किया।

यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने मनोज कुमार जैन की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। याचिका में कहा गया कि विद्यालय प्रबंध समिति ने याची की लिपिक संवर्ग में नियुक्ति जनवरी 2018 में की थी, जिस पर जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) ने वित्तीय स्वीकृति प्रदान करने से मना कर दिया था।

याची ने वर्ष 2018 में डीआईओएस के आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें कोर्ट ने जिला विद्यालय निरीक्षक के आदेश को निरस्त करते हुए पुन: आदेश जारी करने का निर्देश दिया था। किंतु जिला विद्यालय निरीक्षक ने दूसरी बार भी वित्तीय स्वीकृति प्रदान करने में अपनी असहमति जताई थी।

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