हाईकोर्ट का अहम फैसला : आरोपी के खुलासे पर हथियार की खोज अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं

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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Tue, 12 Apr 2022 05:38 AM IST

सार

मामले में आईपीसी की धारा 302 के तहत 30 अप्रैल 2014 को पत्नी की हत्या के मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफएफआईआर दर्ज कराई गई थी। जांच में याची ने जांच अधिकारी को बताया कि उसने घटना को अंजाम देने केबाद कुल्हाड़ी को पास में छिपा दिया था।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी के खुलासे पर हथियार की खोज अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी के कहने पर हथियार की खोज करना महत्वपूर्ण है, लेकिन इस तरह के खुलासे से यह निष्कर्ष नहीं निकला जा सकता है कि आरोपी ने अपराध किया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने छत्तू चेरो की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने मामले में याची को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा को रद्द कर दिया और उसे तुरंत छोड़ने का आदेश दिया।

मामले में आईपीसी की धारा 302 के तहत 30 अप्रैल 2014 को पत्नी की हत्या के मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफएफआईआर दर्ज कराई गई थी। जांच में याची ने जांच अधिकारी को बताया कि उसने घटना को अंजाम देने केबाद कुल्हाड़ी को पास में छिपा दिया था। उसके बाद याची को हिरासत में ले लिया गया और उसके कहने पर कुल्हाड़ी बरामद की गई। फारेंसिक लैब की रिपोर्ट में कहा गया कि कुल्हाड़ी, कथरी, खाट की रस्सी, ब्लॉउज और कांच की चूड़ियों पर खून पाया गया था। निचली अदालत ने गवाहों के बयान, दस्तावेजी साक्ष्य और हथियार (कुल्हाड़ी) की बरामदगी पर विचार किया। 

पत्नी की हत्या में उम्रकैद की सजा काट रहे आरोपी को किया बरी

निचली अदालत ने आरोपी को दोषी पाते हुए उम्रकैद की  सजा सुनाई। याची ने निचली अदालत केफैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा कि अपराध स्थल के साइट प्लान के अनुसार सड़क से लगा होने के कारण मृतक का कमरा किसी भी व्यक्ति के लिए सुलभ था और खुली जमीन से घिरा हुआ था और उसी जमीन पर दरवाजा भी खुलता था।

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कोर्ट ने यह भी नोट किया कि आरोपी को मृतक के कमरे तक पहुंचने के लिए घर के बाहर से यानी खुली जमीन की दूरी तय करनी होती। क्योंकि, जिस कमरे में आरोपी सो रहा था और जिस कमरे में मृतक सो रही थी। वह आपस में जुड़े नहीं थे। इसी आधार पर कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष घटना को अंजाम देने के मामले में याची की उपस्थिति को साबित नहीं कर सका।

अभियोजन मामले के अनुसार याची के साथ कई लोग घर में मौजूद थे। याची को उसके इकबालिया बयान और उसके कहने पर हथियार की बरामदगी पर दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने कहा साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के संबंध में महत्वपूर्ण यह है कि अभियुक्त के कहने पर हत्या में प्रयुक्त हथियार की खोज की जा सकती है लेकिन उससे यह साबित नहीं होता कि याची ने अपराध किया है।

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी के खुलासे पर हथियार की खोज अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी के कहने पर हथियार की खोज करना महत्वपूर्ण है, लेकिन इस तरह के खुलासे से यह निष्कर्ष नहीं निकला जा सकता है कि आरोपी ने अपराध किया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने छत्तू चेरो की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने मामले में याची को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा को रद्द कर दिया और उसे तुरंत छोड़ने का आदेश दिया।

मामले में आईपीसी की धारा 302 के तहत 30 अप्रैल 2014 को पत्नी की हत्या के मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफएफआईआर दर्ज कराई गई थी। जांच में याची ने जांच अधिकारी को बताया कि उसने घटना को अंजाम देने केबाद कुल्हाड़ी को पास में छिपा दिया था। उसके बाद याची को हिरासत में ले लिया गया और उसके कहने पर कुल्हाड़ी बरामद की गई। फारेंसिक लैब की रिपोर्ट में कहा गया कि कुल्हाड़ी, कथरी, खाट की रस्सी, ब्लॉउज और कांच की चूड़ियों पर खून पाया गया था। निचली अदालत ने गवाहों के बयान, दस्तावेजी साक्ष्य और हथियार (कुल्हाड़ी) की बरामदगी पर विचार किया। 

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