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सार
मामला बदायूं जिले के सहसवां थाने का है। 16 मई 1980 को बारह व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। आरोप लगाया गया कि रात करीब नौ बजे वादी मुकदमा ने अपने भाई राम सिंह (मृतक) और उसके बेटे रणबीर सिंह की आवाजें सुनीं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 42 साल पुराने डकैती के मामले में चारों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने माना कि मामले में आरोपियों को झूठा फंसाया गया। तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता ने गांव में पड़ी डकैती का इस्तेमाल याचियों को झूठा फंसाने के लिए किया है, जिनके साथ उनकी पुरानी दुश्मनी थी। यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने प्रेम व अन्य की याचिका स्वीकार करते हुए दिया है।
मामला बदायूं जिले के सहसवां थाने का है। 16 मई 1980 को बारह व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। आरोप लगाया गया कि रात करीब नौ बजे वादी मुकदमा ने अपने भाई राम सिंह (मृतक) और उसके बेटे रणबीर सिंह की आवाजें सुनीं।
मशाल की रोशनी में की थी आरोपियों की पहचान
वादी मुकदमा के मुताबिक वह और उसके भाई धन सिंह मौके पर गए और वहां उन्होंने देखा कि राम सिंह और उसके बेटे के साथ 10-12 लोग मारपीट कर रहे थे। जिनके पास बंदूकें, पिस्तौल, बल्लम थे। जब शिकायतकर्ता पक्ष ने उन्हें चुनौती दी तो बदमाशों में से एक ने बल्लम से एक गवाह पर हमला किया और एक हमलावर ने राम सिंह को गोली मार दी और वादी मुकदमा पक्ष को निशाना बनाया। जिससे वादी घबरा गई और वह डर से अपने घर चली गई।
शिकायतकर्ता के घर में लूटपाट करने के बाद डकैत सौदान सिंह, हरि राम, नरेश पाल और बाबूराम के घर गए और सामान लूट लिया। आरोप था कि डकैत हरि राम की घोड़ी ले गए। सामान लूटने के बाद डकैत पश्चिम की ओर चले गए। उपरोक्त आरोप के बाद यह बताया गया कि डकैती करने वाले 12 व्यक्तियों में से वादी ने मशाल आदि की रोशनी में आठ की पहचान की। जिनके नाम गजराम, प्रेम, मोहर सिंह, रमेश, बनवारी, भगवान सिंह, राजेंद्र और राजपाल थे।
आरोपियों ने कहा- जानबूझकर फंसाया गया
आठ नामित व्यक्तियों में से सात के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया। आईपीसी की धारा 396 के तहत दोषी ठहराया गया। चूंकि जांच के दौरान गजराम की मौत हो गई थी। इसलिए उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं की गई। यह अपील सात आरोपियों प्रेम, मोहर सिंह, रमेश, बनवारी, भगवान सिंह, राजेंद्र और राजपाल ने दायर की थी। उनमें से प्रेम, रमेश और बनवारी की मृत्यु हो गई है। इस वजह से उनकी अपील समाप्त कर दी गई है।
याचियों की ओर से तर्क दिया गया कि चूंकि वादी मुकदमा से उनकी पुरानी दुश्मनी थी। इस वजह से उन्हें जानबूझकर फंसाया गया है। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के कृत्य को स्पष्ट रूप से साबित करने में सफल नहीं रहा।
डकैतों की संख्या और उनकी पहचान भी स्पष्ट नहीं हो सका। डकैतों द्वारा गांव में कई घरों में लूटपाट की गई और डकैतों के जाने के बाद गांव वाले एक जगह जमा हो गए। इससे पता चलता है कि स्वतंत्र गवाह भी थे जो डकैती से प्रभावित थे, लेकिन अभियोजन पक्ष ने जानबूझकर उनकी जांच नहीं करने का फैसला किया। इन तथ्यों और साक्ष्यों को देखते हुए कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए आरोपियों को बरी कर दिया।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 42 साल पुराने डकैती के मामले में चारों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने माना कि मामले में आरोपियों को झूठा फंसाया गया। तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता ने गांव में पड़ी डकैती का इस्तेमाल याचियों को झूठा फंसाने के लिए किया है, जिनके साथ उनकी पुरानी दुश्मनी थी। यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने प्रेम व अन्य की याचिका स्वीकार करते हुए दिया है।
मामला बदायूं जिले के सहसवां थाने का है। 16 मई 1980 को बारह व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। आरोप लगाया गया कि रात करीब नौ बजे वादी मुकदमा ने अपने भाई राम सिंह (मृतक) और उसके बेटे रणबीर सिंह की आवाजें सुनीं।
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