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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 372 के तहत पीड़ित सजा बढ़ाने के लिए अपील दायर नहीं कर सकता है। इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता या किसी अन्य कानून से अपील नहीं हो सकती है, ऐसे में पीड़ित की ओर से सजा बढ़ाने की कोई अपील नहीं की जा सकती है।
यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति विकास की खंडपीठ ने बुधवार को अर्चना देवी की अपील खारिज करते हुए दिया। कोर्ट अभियुक्त प्रतिवादियों की सजा बढ़ाने की अपील पर विचार कर रही थी। आरोपी के वकील का तर्क था कि सीआरपीसी की धारा 372 के तहत सजा बढ़ाने की अपील सुनवाई योग्य नहीं है।
पीठ के समक्ष मुद्दा था कि क्या पीड़ित की ओर से सजा बढ़ाने की अपील पोषणीय है। पीठ ने परविंदर कंसल बनाम दिल्ली के एनसीटी राज्य और अन्य के मामले पर भरोसा किया। जहां यह प्रस्तुत किया गया था कि दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अध्याय 29 में अपील से संबंधित है। धारा 372 यह स्पष्ट करती है कि कोई भी अपील पोषणीय नहीं है, जब तक कि अन्यथा कोड या किसी अन्य कानून की ओर से प्रदान नहीं की जाती है।
यह विवाद नहीं है कि वर्तमान मामले में अपीलकर्ता ने केवल सीआरपीसी की धारा 372 के तहत अपील को प्राथमिकता दी है। हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि यह अपील स्वयं सुनवाई योग्य नहीं है, इसलिए विलंब माफी आवेदन पर विचार करने का कोई सवाल ही नहीं है। कोर्ट ने विलंब माफी और अपील दोनों को खारिज कर दिया।
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