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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Wed, 16 Mar 2022 01:55 AM IST
सार
याची को जुलाई 2014 में शराब के नशे में निजी रसोइए के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता ने आरोपों का जवाब नहीं दिया था और जांच के दौरान तय की गई तारीखों पर पेश नहीं हुआ था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जौनपुर केपुलिस अधिकारी की बर्खास्तगी को रद्द करते हुए कहा है कि अभियोजन पक्ष को स्वयं के साक्ष्य के आधार पर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए और घरेलू जांच में भी संदेह को सबूत की जगह लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की पीठ ने संग्राम यादव की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
याची को जुलाई 2014 में शराब के नशे में निजी रसोइए के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता ने आरोपों का जवाब नहीं दिया था और जांच के दौरान तय की गई तारीखों पर पेश नहीं हुआ था।
जांच अधिकारी का कर्तव्य था कि वह यह देखता कि जिन साक्ष्यों को प्रस्तुत किया गया था, उसके आधार पर क्या आरोप सही साबित हुए। याची को दोषी सिद्ध करने केलिए कोई मेडिकल रिपोर्ट भी नहीं थी। मामले में चश्मदीद की जांच नहीं की गई।
मामले में पुलिस अधीक्षक ग्रामीण की ओर से जून 2017 में जांच पूरी की गई थी। उसी आधार पर याची पर आरोप पत्र दिया गया था। याची की अपील अक्तूबर 2018 में खारिज कर दी गई थी और इसके बाद विशेष याचिका को भी निरस्त कर दिया गया था।
इस पर याची ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। याची का तर्क था कि जांच दिखावटी थी, क्योंकि जांच जौनपुर में हो रही थी। याची वाराणसी में तैनात था, जहां से उसे जांच में शामिल होने केलिए छुट्टी भी नहीं मिल रही थी।
विस्तार
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जौनपुर केपुलिस अधिकारी की बर्खास्तगी को रद्द करते हुए कहा है कि अभियोजन पक्ष को स्वयं के साक्ष्य के आधार पर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए और घरेलू जांच में भी संदेह को सबूत की जगह लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की पीठ ने संग्राम यादव की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
याची को जुलाई 2014 में शराब के नशे में निजी रसोइए के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता ने आरोपों का जवाब नहीं दिया था और जांच के दौरान तय की गई तारीखों पर पेश नहीं हुआ था।
जांच अधिकारी का कर्तव्य था कि वह यह देखता कि जिन साक्ष्यों को प्रस्तुत किया गया था, उसके आधार पर क्या आरोप सही साबित हुए। याची को दोषी सिद्ध करने केलिए कोई मेडिकल रिपोर्ट भी नहीं थी। मामले में चश्मदीद की जांच नहीं की गई।
मामले में पुलिस अधीक्षक ग्रामीण की ओर से जून 2017 में जांच पूरी की गई थी। उसी आधार पर याची पर आरोप पत्र दिया गया था। याची की अपील अक्तूबर 2018 में खारिज कर दी गई थी और इसके बाद विशेष याचिका को भी निरस्त कर दिया गया था।
इस पर याची ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। याची का तर्क था कि जांच दिखावटी थी, क्योंकि जांच जौनपुर में हो रही थी। याची वाराणसी में तैनात था, जहां से उसे जांच में शामिल होने केलिए छुट्टी भी नहीं मिल रही थी।
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