मां शक्ति की आराधना के लिए नवरात्र बहुत ही विशेष अवसर होता है। नवरात्र संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है नौ रातें। इन दिनों में महाकाली, महालक्ष्मी और मां सरस्वती की तथा दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है।
इन्हें नवदुर्गा कहते हैं। आज शहर के सभी देवी मंदिर, देवी शक्तिपीठ और अन्य देवालयों सहित घरों में घट स्थापना के बाद देवी मां की आराधना की जाएगी। नौ दिन मां भगवती के व्रत रखे जाएंगे। आज से ही हिंदू नववर्ष का भी शुभारंभ हो रहा हैं। शहर में जिमखाना मैदान में महायज्ञ का आयोजन किया जाएगा। आचार्य कौशल वत्स के अनुसार नवरात्रि बुधवार से शुरू होने के चलते इस बार मां भगवती नाव पर सवार होकर आएंगी।
द्विस्वभाव लग्न में पूजा शुभ
इंडियन काउंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंस के सचिव आचार्य कौशल वत्स ने बताया कि नवरात्रि पूजन द्विस्वभाव लग्न में करना शुभ होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मिथुन, कन्या, धनु तथा कुंभ राशि द्विस्वभाव राशि है। अत: इसी लग्न में पूजा प्रारंभ करनी चाहिए। बुधवार 22 मार्च चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन उत्तराभाद्रपद नक्षत्र और शुक्ल व ब्रह्म योग होने के कारण बेहद शुभ होगा। मिथुन द्विस्वभाव लग्न ज्योतिष शास्त्र में स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया है।
घट स्थापना देती है सुख समृद्धि
ज्योतिषाचार्य विनोद त्यागी ने बताया कि धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कालिका पुराण के अनुसार कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं। कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।
क्यों बोया जाता है नवरात्र में जौ
नवरात्रि में पूजा स्थल के पास जौ बोने की परंपरा होती है। इसके पीछे का कारण यह कि जौ को ब्रह्रा स्वरुप और पृथ्वी की पहली फसल जौ को माना गया है। यदि नवरात्रि सोमवार या रविवार से शुरू हो रही है तो मां का वाहन हाथी होता है जो अधिक वर्षा के संकेत देता है। वहीं यदि नवरात्रि मंगलवार और शनिवार शुरू होती है, तो मां का वाहन घोड़ा होता है, जो सत्ता परिवर्तन का संकेत देता है। इसके अलावा गुरुवार या शुक्रवार से शुरू होने पर मां दुर्गा डोली में बैठकर आती हैं जो रक्तपात, तांडव, जन-धन हानि का संकेत बताता है। वहीं बुधवार के दिन से नवरात्रि की शुरुआत होती है, तो मां नाव पर सवार होकर आती हैं और अपने भक्तों के सारे कष्ट को हर लेती हैं।
यह चाहिए पूजन सामग्री
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र, शुद्ध साफ की हुई मिटटी, पात्र में बोने के लिए जौ, घट स्थापना के लिए कलश, कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल, रोली, मोली, इत्र, साबुत सुपारी, लौंग, इलायची, पान, दूर्वा, कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के, पंचरत्न, अशोक या आम के 5 पत्ते, कलश ढकने के लिए ढक्कन, ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल, घट स्थापना के साथ दीपक की स्थापना भी की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं तथा उसका गंध, चावल व पुष्प से पूजन करना चाहिए।
हाथी पर ही सवार होकर मां जगदंबे करेंगी प्रस्थान
इस बार नवरात्र का समापन बुधवार के दिन को होगा। मान्यता के अनुसार, बुधवार और शुक्रवार को माता रानी के प्रस्थान की सवारी हाथी ही होती है। जब माता रानी हाथी पर प्रस्थान करती हैं तो देश में अधिक बरसात होने की संभावना बनती है।